16 दिसंबर 2012, यह वो दिन है जिसे शायद ही देश की जनता कभी भूल पाएगी। कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जिनकी छाप हमेशा-हमेशा के लिए हमारे मन मस्तिष्क में बस जाती है। ऐसी ही एक घटना वर्ष 2012 में घटी थी, जिसे हम निर्भया गैंगरेप कांड के नाम से भी जानते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में एक युवा लड़की के साथ दरिंदगी की सारी सीमाएं पार कर दी गयीं। निर्भया गैंगरेप कांड ने हर किसी को भीतर तक झकझोर कर रख दिया था। इस घटना के विरुद्ध पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया और निर्भया को न्याय दिलाने की मुहिम शुरू कर दी। जगह-जगह प्रदर्शन हुए, कैंडल मार्च निकाले गए थे और अंत में वही हुआ जिसकी सभी को उम्मीद थी। देर-सबेर ही सही निर्भया को न्याय और उसके आरोपियों को अपने कृत्यों की सजा मिली।
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निर्भया गैंगरेप मामले को बीत चुके हैं 10 साल
आज निर्भया गैंगरेप कांड को 10 वर्ष बीत चुके हैं। परंतु इन दस सालों में निर्भया कांड के विरोध में सड़कों पर उतरने से लेकर बलात्कार के आरोपियों को क्षमादान देने तक आज बहुत कुछ परिवर्तित होता दिख रहा है। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि अब बलात्कारियों को क्षमादान देना और जमानत पर रिहा करना आम बात हो गयी है। ऐसा ही कुछ हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक निर्णय में भी देखने को मिला।
दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में दो वर्ष पूर्व सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले में एक आरोपी को जमानत दे दी। न्यायाधीश भारती डांगरे ने रिहा करते हुए यह कहा कि कानून तोड़ने वाला बच्चा अपने परिवार के साथ जुड़ने का हकदार है। बता दें कि वह सात वर्षीय एक मासूम बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म का आरोपी था। जब उसने इस घटना को अंजाम दिया तब वो नाबालिग था परंतु अब वो 18 वर्ष का हो चुका है।
अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए यह तर्क दिया था कि आवेदक अब वयस्क है। उसकी शिक्षा को और बंद नहीं किया जा सकता है। जान लें कि आरोपी ने अदालत में एक अर्जी के माध्यम से यह दावा किया था कि लंबे वक्त से निगरानी गृह में बंद होने के कारण उसके जीवन में बाधा उत्पन्न हुई है। उसे अगर सही अवसर, मार्गदर्शन और समर्थन दिया जाता है तो उसमें अच्छी संभावनाएं हैं।
न्यायमूर्ति डांगरे ने अपने आदेश में कहा कि ऑब्जरवेशन होम में रहते समय आवेदक ने पुनर्वास प्रयासों में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। वो अपने परिवार के साथ दोबारा जुड़ने और बहाल होने का हकदार है। यह उसके हित में होगा, जिससे वो पूरी क्षमता के साथ स्वयं को विकसित कर सके। आरोपी आवेदक पर भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत सामूहिक बलात्कार, आपराधिक हमला, पीछा करने, आपराधिक धमकी के साथ-साथ पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है
यह पहला ऐसा मामला नहीं है जब किसी बलात्कार के आरोपी को यूं छोड़ दिया गया हो। हाल ही में देशभर में बहस का मुद्दा बना बिलकिस बानो का मामला भी इसका एक उदाहरण है। वर्ष 2002 में गुजरात दंगों के दौरान ना केवल बिलकिस बानो के परिवार के सात लोगों की हत्या की गयी बल्कि इसके साथ ही आरोपियों ने गर्भवती बिलकिस बानो के साथ बलात्कार भी किया। परंतु इस वर्ष 15 अगस्त के दिन बिलकिस के आरोपियों को क्षमादान देते हुए रिहा कर दिया गया। इस निर्णय का चौतरफा विरोध और काफी आलोचना की जा रही है।
ऐसे कई मामले भी अक्सर सामने आते ही रहते हैं जब किसी बलात्कार के आरोपी को जमानत पर रिहा करने के बाद वो दोबारा पीड़िता के साथ गलत काम करने लगते हैं। बीते महीने एक ऐसा मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर में देखने को मिला था, जहां दो वर्ष पहले के बलात्कार मामले में आरोपी को जमानत पर रिहा किया गया था और बाहर आने के बाद उसने अपने दोस्त के साथ मिलकर पीड़िता के साथ दोबारा चाकू की नोंक पर बलात्कार किया और उस पर केस वापस लेने का दबाव भी बनाया था।
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ऐसे में प्रश्न उठते हैं कि आखिर बलात्कारियों को यूं जमानत या क्षमादान देकर छोड़ देने की यह प्रवृत्ति हमारे समाज के लिए आखिर कितनी खतरनाक साबित हो सकती है? कभी नाबालिग होने के कारण तो कभी किसी अन्य कारणों से बलात्कारियों को छोड़ने की बात कही जाती है। यह समझने की आवश्यकता है कि बलात्कार तो बलात्कार होता है और जो कोई भी इस तरह की घटनाओं को अंजाम देता है, वो क्षमा योग्य कैसे हो सकता है? अगर उसका जीवन है तो उस लड़की का भी तो अपना जीवन है जिसे अमुक आरोपी ने उसके साथ दरिंदगी करके पूरी तरह से बर्बाद कर दिया।
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