HAL विनिर्माण में शानदार काम करती है, लेकिन मार्केटिंग में पीछे छूट जाती है

मलेशिया हमारा तेजस खरीदते-खरीदते रह गया!

HAL

वो दिन लद गए जब अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत अन्य देशों का मुंह ताकता था। रक्षा क्षेत्र में अब न केवल भारत आत्मनिर्भर बन रहा है, बल्कि रक्षा उपकरणों के एक बड़े निर्यातक देश के रूप में भी उभर रहा है। वर्तमान स्थिति को देखें तो आज कई देश भारत में बने रक्षा उपकरण खरीदने के लिए पंक्ति में खड़े दिखायी देते हैं।

सब मार्केटिंग का मामला है

इसमें महत्वपूर्ण योगदान हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का भी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि HAL उत्कृष्ट लड़ाकू विमानों का निर्माण करती है परंतु कंपनी द्वारा विपणन यानी मार्केटिंग में कमी रह जाती है। शायद यही कारण रहा होगा कि मलेशिया ने HAL द्वारा निर्मित लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट तेजस को नकार दिया और इसकी जगह दक्षिण कोरिया के F-20 जेट खरीदने में रुचि दिखायी है।

वैसे तो HAL द्वारा निर्मित तेजस का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। कई बड़े-बड़े देश तेजस में अपनी रुचि भी दिखाते हैं। इसमें दो राय नहीं कि तेजस विश्व के सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमानों की सूची में आता है। परंतु मलेशिया ने भारत को झटका देते हुए तेजस की जगह दक्षिण कोरियाई लड़ाकू विमान F-50 पर अपना भरोसा दिखाया है और इसे खरीदने की तैयारी भी कर रहा है।

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दरअसल, हाल ही में मलेशिया ने एयरक्राफ्ट खरीदने की प्रक्रिया तेज की थी। वो अपने पुराने रूसी लड़ाकू विमान को बदलने के लिए कॉम्बेट एयरक्राफ्ट खरीदना चाह रहा था। इसके अलावा रूस के दो विमान, पाकिस्तान, चीन और तुर्की के लड़ाकू विमान भी इस प्रतिस्पर्धा में शामिल थे। तमाम रिपोर्ट्स यह दावा कर रही थीं कि भारतीय तेजस और दक्षिण कोरिया के F-50 में से किसी एक को चुनने पर विचार किया जा रहा है। मलेशियाई वायुसेना द्वारा 18 तेजस खरीदने के लिए HAL को प्रस्‍ताव दिया गया था। हालांकि अब अंत में इस दौड़ में दक्षिण कोरिया एरोस्‍पेस इंडस्‍ट्रीज (KAI) बाजी मारता दिख रहा है।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट की एक रिपोर्ट के अनुसार लड़ाकू विमान को लेकर मलेशिया और दक्षिण कोरिया के बीच समझौता अपने निर्णायक दौर में पहुंच चुका है। मलेशिया वायेसुना में दक्षिण कोरियाई विमान शामिल कराने की तैयारी में है। यह भारत के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि तेजस को इस समझौते में शीर्ष पर माना जा रहा था। रिपार्ट्स के अनुसार भारत ने मलेशिया को एक पैकेज समझौने की पेशकश की थी। भारत ने कहा था कि वो सुखोई-30 लड़ाकू विमान के लिए मलेशिया में एक एमआरओ (रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल) फैसिलिटी लगाने को तैयार है।

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तेजस कई मायनों में दक्षिण कोरियाई F-50 से बेहतर है

देखा जाए तो भारतीय तेजस कई मायनों में दक्षिण कोरियाई F-50 से बेहतर है। दक्षिण कोरिया के विमान की तुलना में यह सस्ता भी है। परंतु फिर भी मलेशिया के साथ समझौते में यह पिछड़ रहा है। इसके पीछे का बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि HAL मार्केटिंग के मामले में टक्कर देने में कहीं न कहीं पिछड़ गयी है। दक्षिण कोरिया पीआर मशीनरी और लॉबिंग के कारण समझौते को अपने पाले में करने में सफल रही।

देखा जाए तो पिछले कुछ समय से HAL ने विमानन क्षेत्र में ऑर्डर सुनिश्चित करने के लिए मार्केटिंग या लॉबी समूहों का सहारा नहीं लिया। तेजस कई वर्षों से उड़ान भर रहा है। इसके बाद भी HAL द्वारा इसके प्रचार और दुनिया को इसकी ताकत दिखाने के लिए कोई वीडियो या डॉक्यूमेंट्री नहीं बनायी है। न तो मार्केटिंग के लिए कुछ खास काम किया। इस मामले में HAL पिछड़ जाती है।

इसकी तुलना में विश्व की अन्य बड़ी एयरोस्पेस कंपनियों को देखेंगे तो वो इस मामले में कहीं आगे निकलती नजर आती हैं। अमेरिका की दिग्गज कंपनियों बोइंग और लॉकहीड मार्टिन को ही देख लीजिए, ये अपने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए तमाम मार्केटिंग रणनीतियों का सहारा लेती हैं। विभिन्न मीडिया का प्रयोग कर यह अपने उत्पादों का खूब प्रचार करती हैं, जिस कारण विश्वभर में इनकी चर्चाएं हैं।

अब आप जब इतने उत्कृष्ट उपकरणों का निर्माण कर रहे हैं, परंतु सही प्रकार से अगर इसकी मार्केटिंग ही न कर पाएं तो उससे होने वाली क्षति को भुगतना तो पड़ेगा ही। ऐसा ही कुछ वर्तमान में HAL के साथ भी हो रहा हैं। 1940 में HAL की स्थापना हुई थी और यह बहुत बड़ी एयरोस्पेस और रक्षा कंपनियों में से एक है। अपने 80 से अधिक सालों के इतिहास में HAL ने एक से बढ़कर एक कीर्तिमान स्थापित किए। HAL द्वारा निर्मित तेजस का बोलबाला पूरी दुनिया में रहा है।

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दुश्मन को मिनटों में धूल चटाने में यह विमान सक्षम है। इस कारण ही अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया जैसे तमाम देश इसे खरीदने में रुचि दिखाते हैं। दुनिया के कई देश HAL के ग्राहक भी हैं। हालांकि अब आवश्यकता है तो HAL को अपनी मार्केटिंग रणनीति मजबूत करने की, जिससे आने वाले समय में किसी भी रक्षा निर्यात के मामले में भारत नये आयामों को छू सके।

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