कहते हैं कि जब आपकी इच्छा बलवान और उचित हो तब आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए अलौकिक ताक़त पा सकते हैं, भारत के परिप्रेक्ष में यह बिल्कुल सही प्रतीत होता है। भारत शुरू से ही अपने विकास को लेकर महत्वकांक्षी रहा है, किंतु अपनी महत्वकांक्षा के क्रम में उसने कभी किसी देश का शोषण नहीं किया है। भारत विश्व के उन देशों में शामिल है जो शक्ति होते हुए भी शांति के मार्ग पर चलते रहे हैं। लेकिन लगता है भारत की इसी अच्छाई को अन्य देश कमजोरी मान बैठे हैं किंतु भारत ने अपनी पुरानी नीतियों के इतर किसी की भी गीदड़ भभकी से डरना छोड़ दिया है। आज का भारत अपने आर्थिक हितों से समझौता नहीं करता है जिसका ज्वलंत उदाहरण उसके द्वारा श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यक के लिए उठायी गयी आवाज है।
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श्रीलंका और चीन की निकटता
वस्तुतः श्रीलंका भारत का अच्छा पड़ोसी है किंतु कुछ समय से उसकी निकटता चीन के साथ बढ़ती जा रही थी। श्रीलंका ने स्वयं के विकास के लिए चीन को बुलाया था, जहां पर चीन ने बंदरगाह, एयरपोर्ट समेत अन्य विकास संबंधी निर्माण किए। यह अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि चीन के साथ श्रीलंका की बढ़ती निकटता भारत के लिए परेशानी भी खड़ा कर सकती है क्योंकि चीन भारत का दुश्मन है, इसलिए भारत अपने आस-पास के देशों में चीन की मौजूदगी नहीं चाहेगा। किंतु भारत के मना करने के बाद भी श्रीलंका ने चीन के ख़ूफ़िया जहाज़ को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की अनुमति प्रदान कर दी। श्रीलंका ने ऐसा कृत्य तब किया जब भारत ने उसे एक दिन पहले ही डोर्नीयर विमान दिया था। इतना ही नहीं, जब श्रीलंका आर्थिक संकट से जूझ रहा था तो एक सच्चा मित्र होने के नाते भारत ने श्रीलंका को उल्लेखनीय सहायता दी थी। लेकिन अब और नहीं, क्योंकि अब भारत ने भी श्रीलंका को पाठ पढ़ाने का फ़ैसला लिया।
श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों का विषय किसी से छिपा नहीं है, श्रीलंका में तमिलों के साथ बहुत बुरा व्यवहार हुआ था, हालांकि भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को अब तक उठाया नहीं था। किंतु श्रीलंका के बदले हावभाव और उसके कृत्यों को देखते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद(UNHRC) के 51वें सत्र में श्रीलंका में सुलह, जवाबदेही, मानवाधिकार को बढ़ावा देने पर संयुक्त राष्ट्र मानवधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट पर हुए एक परिचर्चा के दौरान तमिल अल्पसंख्यकों का मुद्दा उठाया। भारत ने कहा कि मनवाधिकारों को बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना तथा संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के अनुरूप रचनात्मक अंतरराष्ट्रीय वार्ता एवं सहयोग करने में उसका सदा विश्वास रहा है। भारत द्वारा उठाए गए इस कदम से श्रीलंका पहली बार इस मुद्दे पर घिर गया है।
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भारत ने एक तीर से दो निशाने लगाए हैं
समझना होगा कि भारत ने ऐसा कर एक तीर से दो निशाने लगाए हैं, उसने श्रीलंका को तो चारों खाने चित्त किया ही है साथ ही तुर्रम खां बने चीन को भी कड़ा संदेश दिया है कि अगर वह भारत के हितों के विरुद्ध कार्य करेंगा तो हम भी उसके काले चिट्ठे पूरी दुनिया के समक्ष खोल सकते हैं। भारत द्वारा उठाए गए इस कदम से चीन भी सावधान हो गया होगा क्योंकि चीन भी तो भारत की अच्छाईयों का लाभ उठाता है। यदि भारत ने चीन द्वारा उइगर मुसलमानों पर किए जा रहे अमानवीय कृत्यों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा दिया तो चीन के समक्ष बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। अतः चीन भी अब भारत से उलझना नहीं चाहेगा।
भारत द्वारा उठाया गया यह कदम वास्तव में भारत की शक्ति दिखाता हैं, ग़ुलामी के ज़ंजीर से जकड़े भारत ने आज आज़ादी के 75 साल बाद जो अकल्पनीय ऊंचाइयां हासिल की हैं वह वास्तव में भारत के मज़बूत मनोबल एवं आधारशिला को दिखता है। आज पूरे विश्व में भारत की ठसक है, अन्य देश भारत के साथ दोस्ती बनाए रखना चाहते हैं।
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