शीघ्र ही भारत के soverign bond वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में होंगे शामिल, परंतु पश्चिम नहीं भारत तय करेगा कब और कैसे

बॉन्ड बाज़ार में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए तैयार है भारत

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भारत अब अपने वर्चस्व को बॉन्ड बाज़ार में भी बढ़ाने के क्रम में आगे बाढ़ चुका है, संप्रभु बॉन्ड के संदर्भ में भारत एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है। रिपोर्ट्स की माने तो अगर वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में सम्मिलित होते हैं एवं वैश्विक मंच पर कारोबार करते हैं तो उनका निपटारा घरेलू बाज़ार में ही हो, जिससे भारतीय बॉन्ड बाज़ार का विकास बाधित न हो, साथ ही उसका व्यापक प्रसार भी हो यदि ऐसा होता है तो कराधान संबंधी प्रावधानों में कोई बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी जिससे जटिलता उत्पन्न नहीं होगी। हालांकि सरकार ने पूर्व में हुए वैश्विक बाज़ारों में लेन-देन में कर से संबंधित स्थिति पर फ़ैसला करना अभी बाकी है।

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भारत के संप्रभु बॉन्ड के लिए झाव मांगे गये

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो यह कहा जा रहा है की पिछले हफ़्ते के शुरुआत में ही जेपी मोर्गन ने भारत के संप्रभु बॉन्ड को अपने GBI-EM ग्लोबल डाइवर्सिफ़ायड बॉन्ड इंडेक्स में शामिल करने के लिए विशेषज्ञों की टीम से सुझाव मांगे थे। यदि ऐसा हुआ तो इस कदम से देश के संप्रभु बॉन्ड बाज़ार में भारी संख्या में तरलता आने एवं बाज़ार में विदेशी पूंजी लाने की उम्मीद है, इसके चलते न सिर्फ़ भारतीय बॉन्ड बाज़ार को फ़ायदा होगा, अपितु भारत अपने चालू खाते घाटे को भी काफी हद तक पाट पाने में सक्षम हो सकेगा।

आमतौर पर जो बॉन्ड वैश्विक बॉन्ड सूचकांक जैसे जेपी मोर्गन सूचकांक में सम्मिलित होते हैं उनका निबटारा यूरोक्लीयर जैसे बाहरी प्लेटफ़ॉर्म पर होता है, जिस पर बाहरी या यूं कहें कि पश्चिमी कंपनियों का आधिपत्य होता है। वैसे भी बात करें भारत के ऐसे किसी अनुभव की तो SGX निफ़्टी डेरिवेटिव्ज का पूर्व में अनुभव खट्टा ही रहा है। यही कारण है की भारत संप्रभु बॉन्ड के लेन-देन संबंधी निपटारा वैश्विक बाज़ार में न करके घरेलू बाज़ार में करने पर ज़ोर दे रहा है।

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स्थानीय नियमों में आवश्यक बदलाव की आवश्यकता है

विदेशी सूचकांकों में भारतीय बॉन्ड को शामिल करने की सुविधा के लिए स्थानीय नियमों में आवश्यक बदलावों पर भारत सरकार और नियामक अधिकारी 2013 से वैश्विक निपटान मंच यूरोक्लियर के संपर्क में हैं। इससे न सिर्फ़ ये पश्चिमी कंपनियां अपने मन माने तारीकों से नियमन एवं प्रबंधन से बचेंगी बल्कि भारत को अपनी घरेलू कर संबंधी नीतियों में भी परिवर्तन नहीं करना पड़ेगा। इस कदम से भारत अपने हितों को ध्यान में रखकर घरेलू बाज़ार में अपनी आवश्यकता एवं शर्तों के हिसाब से नियमों का निर्माण करेगा।

तो इसी के साथ पश्चिमी देशों की दादागिरी भी भारत के सामने नहीं चलेगी यानी एक पंथ दो काज। यदि भारत ऐसा करने में सफल रहता है तो वह न सिर्फ़ अपने बॉन्ड बाज़ार को नया आयाम देगा अपितु चालू खाते घाटे को पाटने के साथ-साथ पश्चिमी देशों का वैश्विक बॉन्ड बाज़ार निपटारे पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम करेगा जिससे भारत की स्थिति विश्व पटल पर और सुदृढ़ होगी, तो वहीं भारत की अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था तो बेहतर होगी ही साथ-साथ बड़े बड़े इन्फ़्रस्ट्रक्चर जुटाने के लिए भी भारत तो सक्षम बनाएगा।

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