उगते हुए सूरज को पूरी दुनिया सलाम करती है, कभी ग़ुलामी की बेड़ियों से जकड़ा हुआ भारत आज उसी सूरज की भांति चमक रहा है। क्या अमरीका, क्या ब्रिटेन, क्या फ़्रान्स और क्या रूस खुद को सो कॉल्ड सभ्य कहने वाले ये देश भारत को अपने-अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर तन कर खड़ें भारत से आज के समय में कोई भी पंगा लेना तो कतई नहीं चाहता है। सब के सब भारत से बनाकर रखना चाहते हैं, उनके लिए न जाने कौन से लाभ का कारण बन जाए भारत। इसी क्रम में अमेरिका के प्रतिबंधों के बोझ तले दबे ईरान ने भी भारत से सहायता मांगी है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे ईरान ने भारत से औपचारिक रूप से रुपया–रियाल मॉडल का आग्रह किया है।
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भारत को झुकाने का बहुत प्रयास किया गया
यह अब किसी से छुपा नहीं है कि वैश्विक स्तर पर भारत का क़द बढ़ता जा रहा है लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध के बाद उसके क़द में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत द्वारा अपने हितों को ध्यान में रखकर लिए गए निर्णय से भारत का मज़बूत पक्ष पूरे विश्व के सामने आया है। यूक्रेन से युद्ध के क्रम में पश्चिमी देशों ने रूस पर भर-भर के प्रतिबंध लगाए जिससे उसकी आर्थिक व्यवस्था लचर हो गयी, जिसे उभारने के प्रयासों में रूस ने डिस्काउंट रेट्स पर अपने सहयोगी देशों को तेल देना प्रारम्भ किया, किंतु पश्चिमी देशों के दबाव के कारण अन्य कोई भी देश रूस से तेल ख़रीदने को तैयार नहीं हुआ। लेकिन भारत ने अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए भारी मात्रा में रूस से डिस्काउंट रेट पर तेल ख़रीदा। इसी क्रम में रूस और भारत के बीच रुपया-रूबल समझौता भी हुआ। भारत और रूस रुपया-रूबल में व्यापार करने लगे, जिससे पश्चिमी देशों के प्रतिबंध की बत्ती बन गयी। तत्पश्चात् इन देशों ने भारत को साम, दाम. दण्ड, भेद के माध्यम से रूसी तेल नहीं ख़रीदने के लिए बहुत मनाया किंतु असफल रहे।
अपने अगले प्रयास में पश्चिमी देशों ने भारत को नैतिकता और मानवता का पाठ पढ़ाकर रूस से तेल नहीं लेने की बात कही किंतु एस जयशंकर ने उलटा उन्हें ही स्वयं के भीतर झांकने की नसीहत दे दी। बस फिर क्या था बोलती बंद हो गयी। भारत की हिम्मत को ईराक़ भी देख रहा था, जब उसने भारत की यह शक्ति देखी तो उसने भारत से रिश्तों को बनाए रखना ही सही समझा। दूसरा कारण बाज़ार भी है, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल का आयातक है। इन सबको ध्यान में रखते हुए ईराक़ ने भी भारत को सस्ते दर पर तेल देने का प्रस्ताव दिया।
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पहले ईराक और अब ईरान
भारत विश्व पटल पर जिस शक्ति के साथ उभर रहा है उसका नमूना उसने G7 देशों के ऑल प्राइस कैप को सिरे से नकार दिया। विश्व पटल पर अपना वर्चस्व स्थापित कर चुके भारत से कभी मुंह मोड़ने वाला ईरान भी अब भारत के समक्ष सहायता पाने के लिए खड़ा है। रूस की तरह ईरान भी अमेरिका द्वारा प्रतिबंध के बोझ तले दबा है, उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है, इस संकट से जूझ रहे ईरान को टोमान नामक नई करेन्सी लानी पड़ी थी, जहां पहले ईरान भारत को कमतर आंक कर उसे चाबहार को लेकर भी ना नुकूर करने लगा था, वही ईरान भारत के ऊपर मेहरबान हो गया है, उसने चाबहार को लेकर भी बहुत नरमी दिखायी है।
इसी क्रम में ईरान के नये राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने भारत से अनुरोध किया कि जिस तरह भारत रूस के साथ रुपया रूबल भुगतान तंत्र अपनाकर व्यापार कर रहा है, उसी तरह वह ईरान के साथ भी रुपया-रियाल समझौता कर एक भुगतान प्रणाली विकसित करके व्यापार करे। भारत पहले ईरान से कच्चे तेल ख़रीदता था, किंतु भारत कई बार अपने विदेशी मुद्रा भंडार के कोष को सुचारूु रूप से बनाए रखने के लिए ईरान से रुपया-रियाल में व्यापार करने का प्रस्ताव रखा था किंतु ईरान तो डॉलर में ही व्यापार करने पर अड़ा रहता था। आज वही ईरान स्वयं ही भारत को रुपया-रियाल समझौता करने का आग्रह कर रहा है, मूलतः ईरान को पता है अगर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को निष्क्रिय करना है तो भारत ही है जो उसकी नाव को घाट तक पहुंचा सकता है।
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