वामपंथियों के गुरुओं की गलतियां गिनाने लगीं कविता कृष्णन

पार्टी के सभी पद छोड़ते ही कविता कृष्णन अपने ही वामपंथी गुट की आलोचना करने लगीं

Kavita Krishnan

वामपंथी कब किसके प्रति अपना व्यवहार बदल लें कहना मुश्किल है। कुछ ऐसा ही हाल भारत में वामपंथ का झंड़ा बुलंद करने वाली सीपीआई (एमएल) की चर्चित नेता रहीं कविता कृष्णन का है। वामपन्थियों का क्या है वो तो हमेशा से ही अपने कृत्यों के लिए विवादों में रहे हैं और इसी तरह कविता कृष्णन भी चर्चाओं में आ गयी हैं। दरअसल हुआ ये है कि कविता कृष्णन ने जब पार्टी के सभी पद छोड़े तो अपने आकाओं के सारे राज खोलने शुरू कर दिए। उन्होंने वामपंथी गुरुओं की मान्यताओं तक की खुलकर आलोचना कर दी।

कविता का सभी पदों से इस्तीफा

दरअसल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन में अपने सभी पदों और जिम्मेदारियों को छोड़ते हुए पार्टी की महिला विंग अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की सचिव और पार्टी की पत्रिका “लिबरेशन” की संपादक पद से इस्तीफा दे दिया है। कविता कृष्णन ने कहा कि उन्हें “कुछ परेशान करने वाले सवालों का पीछा करने” की जरूरत है जो कि उनकी पार्टी में खोजना संभव नहीं था। इसलिए उन्हें पार्टी को छोड़ना पड़ा है।

गौरतलब है कि एक प्रमुख मार्क्सवादी नारीवादी और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता कृष्णन द्वारा उजागर किए गए सवाल भारतीय कम्युनिस्टों की असंगतता से संबंधित हैं। जुलाई महीने में ही उन्होंने कहा था कि स्टालिन के तहत “यूक्रेन के किसानों को हिंसक रूप से गुलाम बनाकर” सोवियत संघ (यूएसएसआर) का औद्योगीकरण हुआ।

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कृष्णन ने कहा कि इन तथ्यों को स्वीकार करने में वैश्विक वामपंथी विफल रहा। इसीलिए वामपंथियों ने यूक्रेन का समर्थन नहीं किया और यह एक आलोचनात्मक स्थिति है। उन्होंने कहा है कि वे अब अपने लेखन के माध्यम से सवाल उठाएंगी क्योंकि अगर वह पार्टी के पदों पर रहीं तो वह ऐसा नहीं कर सकती थीं। उन्होंने फेसबुक पर लिखा, “यह पहचानने की जरूरत है कि सोवियत संघ के दौरान स्टालिन के शासन की या फिर विफल चीनी समाजवाद की चर्चा करना अब पर्याप्त नहीं है बल्कि वे दुनिया के कुछ सबसे खराब सत्तावादी थे जो हर जगह सत्तावादी शासन के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर रहे हैं।”

वह अपने हालिया सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए भी इन सवालों को उठाती रही हैं जिनके बारे में उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा है। कविता कृष्णन ने लिख,”न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में सत्तावादी और बहुसंख्यक लोकलुभावनवाद के बढ़ते रूपों के खिलाफ उदार लोकतंत्रों को उनकी सभी खामियों के साथ बचाव के महत्व को पहचानने की आवश्यकता है।”

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लोकतंत्र के लिए हमारी लड़ाई सुसंगत हो

कविता ने कहा कि भारत में फासीवाद और बढ़ते अधिनायकवाद के खिलाफ लोकतंत्र के लिए हमारी लड़ाई सुसंगत हो इसके लिए हमें अतीत और वर्तमान के समाजवादी अधिनायकवादी शासन के विषयों सहित दुनिया भर के सभी लोगों के लिए समान लोकतांत्रिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्वीकार करना चाहिए।

आपको बता दें कि भारत में कविता कृष्णन पार्टी का एक बड़ा चेहरा रही हैं जिन्होंने CPI (ML) को राजनीतिक तौर पर मजबूत संगठन बनाने के हजारों प्रयास किए हैं। एक तो कविता ने पार्टी छोड़कर वामपंथी विचारधारा को झटका दिया है, दूसरा यह कि उन्होंने वामपंथी नेताओं की सोच में लोकतंत्र को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं जिनके जवाब देना रूस और चीन दोनों के लिए मुश्किल है। रूस और चीन तो छोड़िए भारत में वामपंथ का चेहरा बनकर बैठे नेताओं के सामने न जाने कौन से सवाल कृष्णन रख दे कहा नहीं जा सकता है। उनका इस तरह सुर बदलना उनके ही गुट के लिए सही नहीं है।

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