लद्दाख: चालबाज चीन की चाल से बचे भारत, सुरक्षा में कटौती हो सकती है घातक

लद्दाख में जो हो रहा है, उसके पीछे की साज़िश को आपको समझना बहुत आवश्यक है।

Jinping, Modi and Rajnath singh

Source- TFI

पाकिस्तान और चीन, भारत के दो ऐसे पड़ोसी हैं जो भारत के प्रति अपनी कुंठा के चक्कर में अपना सबकुछ बर्बाद कर रहे हैं। आतंकपरस्त पाकिस्तान तो पहले ही बर्बाद हो चुका है लेकिन चीन अभी भी भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है। बात वर्ष 2020 की है जब भारत और चीनी सैनिक गलवान में आमने सामने आ गए थे। जिसके बाद दोनो देशों ने घाटी में सैनिकों की संख्या बढ़ा दी, बातचीत के कई चरण चले किंतु धूर्त चीन ने अपनी धूर्तता नही छोड़ी, उसने सैनिक पीछे नहीं हटाए और परिणाम स्वरूप भारत ने भी उसी स्थान पर अपने सैनिकों की तैनाती जारी रखी। इस घटना के बाद से ही भारत और चीन के संबंध काफी खराब हो चुके हैं। किंतु अब खबर आ रही है कि भारत और चीन अपने अपने सैनिकों को वापस बुला रहे हैं।

और पढ़ें: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मंगोलिया यात्रा ने चीन को अंदर तक झंकझोर दिया है

पीछे हटी दोनों देशों की सेनाएं

भारत एवं चीन ने गुरुवार को संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि अब पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पेट्रोलिंग प्वाइंट-15 से दोनों देशों की सेनाओं ने हटना शुरू कर दिया है। इसे वर्ष 2020 से चले आ रहे गतिरोध को समाप्त करने के लिए एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि 08 सितंबर, 2022 को चीन कोर कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी सहमति के अनुसार, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स (पीपी-15) के क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित और योजनाबद्ध तरीके से हटना प्रारंभ कर दिया है।

बैठक में दोनों पक्ष संपर्क में रहने, सैन्य एवं राजनयिक माध्यमों की मदद से बातचीत बनाए रखने और शेष मुद्दों को पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर जल्द से जल्द काम करने पर सहमत हुए थे। भारत और चीन के बीच 16वें दौर की सैन्य वार्ता करीब साढ़े बारह घंटे तक चली थी। इस दौरान भारत ने फिर से चीन पर दबाव डाला कि वह पूर्वी लद्दाख के विवाद वाले क्षेत्रों से सेना पूरी तरह पीछे हटाए।

दोनों पक्षों ने इस क्षेत्र (गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स) में आगे की तैनाती को रोकने के लिए सहमति व्यक्त की है। यही कारण है कि अब दोनों पक्षों के सैनिक अपने-अपने क्षेत्रों में वापस लौट रहे हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि दोनों पक्षों ने शेष मुद्दों को सुलझाने और भारत-चीन सीमावर्ती इलाकों में एलएसी के पास शांति बहाल करने पर भी दोनों देश सहमत हैं। विदेश मंत्रालय ने बताया है कि इस विवादित इलाके से पीछे हटने के बाद दोनों देश एलएसी पर अब स्टैंड-ऑफ से पहले यानी अप्रैल 2020 जैसी स्थिति पर फिर से लौट आएंगे। साथ ही दोनों देश इस बात की तस्दीक भी करेंगे कि वाकई डिसइंगेजमेंट हुआ या नहीं। ध्यान देने वाली बात है कि यह कदम उज्बेकिस्तान में अगले सप्ताह होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से पहले आया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों भाग ले रहे हैं।

चीन पर भरोसा किया ही नहीं जा सकता

हालांकि, दोनो देशों द्वारा उठाया गया यह कदम ज़्यादा दिनों तक शांति स्थापित करेगा इसकी आशंका कम है। इस शांति को भंग करने का कारण भी स्वयं चीन ही होगा क्योंकि वस्तुतः खुद को कॉम्युनिस्ट कहने वाले चीन के मूल स्वभाव में ही विस्तारवाद है। इसका प्रतिबिंब चीन के उसके पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद के रूप में देखा जा सकता है। चीन अपने छल, कपट एवं दोगलेपन के लिए मशहूर है। दुनिया पर राज करने की महत्वाकांक्षा रखने वाले चीन की नज़र लद्दाख पर बहुत पहले से ही है। मूलतः भारत के आसपास के क्षेत्र को चीन वन पॉम एंड फाइव फ़िंगर के अंतर्गत देखता है। वस्तुतः तिब्बत की पांच उंगलियां एक चीनी विदेश नीति है जिसका श्रेय माओत्से तुंग को दिया जाता है, जो तिब्बत को चीन की दाहिनी हथेली मानता है, जिसकी परिधि पर पांच उंगलियां हैं: लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान, और नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी!

ऐसे में चीन की मंशा को जानते हुए भी उसपर भरोसा दिखाना भारत के हित में नही होगा क्योंकि अगर चीन दोबारा ऐसा कृत्य करता है तो भारत की भूमि पर चीनी सैनिक आगे बढ़ सकते हैं। अक्साई चिन पर पहले से ही चीनी ने अवैध तरीके से कब्जा जमा रखा है। दूसरा कारण है भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था, जिसने चीन के कान खड़े कर दिए हैं। चीन यह कभी नही चाहेगा कि भारत जैसा बड़ा देश जो कि उसके पड़ोस में स्थिति है वह आर्थिक रूप से मज़बूत हो। तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं की रिपोर्ट यह कह रही है कि भारत विकास की नयी रफ़्तार पकड़ने वाला है, ऐसे में चीन भारत को उलझाए रखने के लिए ऐसे कृत्य करने की कोशिश अवश्य करेगा।

वहीं, भारत स्वयं को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करना चाहता है, जिसकी पहली सीढ़ी अपने देश से सारी मुसीबतों जैसे ग़रीबी, बेरोज़गारी इत्यादि को जड़ से ख़त्म करना है, ऐसे में यदि भारत चीन के साथ उलझा रहता है तो भारत आर्थिक और मनोवैज्ञानिक दोनो रूप से परेशान होगा। जो भारत के लक्ष्य प्राप्ति में बाधा उत्पन्न कर सकता है। ऐसे में भारत द्वारा घाटी से सैनिकों को हटाने का निर्णय सही है या गलत यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

और पढ़ें: चीन लंका-लंका कर रहा था, भारत ने ताइवान में उसकी लंका लगा दी

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Exit mobile version