मुआवजा मुंह बंद करने के लिए या फिर राजनीति साधने के लिए दिया जाता है

मुआवजे के पीछे का गणित समझ लीजिए!

Muaawza

भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है जो बहुत बड़ी मात्रा में निजी-सार्वजनिक भागीदारी प्रदान करती है। एक राष्ट्र के रूप में यह अपने नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक भलाई की रक्षा और बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करता है। इसलिए भारत के नेताओं ने प्रारम्भ से ही ‘जनकल्याण’ की नीतियों को प्रमुखता से रखा है इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि भारत का प्रत्येक नागरिक कम से कम एक गरिमापूर्ण जीवन के लिए आवश्यक न्यूनतम प्रावधानों का लाभ उठाने में सक्षम हों।

हालांकि, अप्रत्याशित घटनाएं कभी-कभी उन परिवारों की आजीविका को पंगु बना देती हैं जो पहले अपने दम पर अच्छी तरह से काम कर रहे थे, इसीलिए जरूरतमंदों को मुआवजा आवंटित करना हमेशा से ही कल्याण का साधन रहा है। लेकिन क्या हो अगर जनकल्याणवाद ही कुटिल राजनेताओं का राजनीतिक एजेंडा मात्र बनकर रह जाए।

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आख़िर मुआवजा पॉलिटिक्स क्यों?

वस्तुतः मृत्यु एक परम सत्य है और हम इसके साथ जीते हैं  लेकिन किसी सदस्य की असामयिक मृत्यु परिवार की आजीविका को खतरे में डाल सकती है। उन परिवारों के लिए स्थिति विकट हो जाती है जो दिहाड़ी मजदूरी पर जीवनयापन करते हैं या जिनके पास बचत के नाम पर बहुत कम धनराशि होती है। अतः तभी समाज कल्याण की योजनाएं प्रारम्भ होती हैं। प्रायः कई सरकारें पीड़ित परिवारों को मुआवजा राशि, नौकरी और अन्य विशेष लाभ आवंटित करती रही हैं ताकि पीड़ित परिवार को सांत्वना दी जा सके और उसके बुनियादी जीवन स्तर की रक्षा की जा सके। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह जरूरी नहीं कि यह केवल मृत्यु से ही जुड़ा हो। यह कुछ अन्य दुर्भाग्यपूर्ण और अप्रत्याशित मामलों के लिए किया गया है जो पीड़ितों के परिवार के जीवन और आजीविका को प्रभावित कर सकते हैं।

इसी क्रम में फरवरी 2022 में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने हिट एंड रन सड़क दुर्घटना पीड़ितों के मुआवजे के लिए एक नई योजना अधिसूचित की। इसने गंभीर चोट के लिए मुआवजे को 12,500 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया। जबकि घातक चोटों या मृत्यु के मामलों में, इसने मुआवजे को 25,000 रुपये से बढ़ाकर 2,00,000 रुपये कर दिया। इसके अतिरिक्त, प्रक्रिया में आ रही बाधाओं को कम किया और पीड़ितों के लिए मुआवजे की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया।

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सामाजिक सुरक्षा

इसी तरह, समय-समय पर केंद्र के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों ने मृत व्यक्तियों के परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए नियमित रूप से मौद्रिक और नौकरी के लाभ की घोषणा भी करती रही है। ध्यातव्य हो तो योगी सरकार ने तीन तलाक के पीड़ितों को ₹ 6,000 रुपये की वार्षिक सहायता राशि देने की घोषणा की थी। यह उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया कि उन्हें राज्य सरकार की ओर से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी।

समझना होगा कि यदि पीड़ित परिवार को ये प्रतिपूरक लाभ प्रदान नहीं किए जाते हैं, तो दुर्भाग्यपूर्ण घटना उन्हें निराशा और दरिद्रता के रास्ते पर छोड़ सकती है।

यदि पीड़ित परिवार के लिए ये प्रतिपूरक लाभ प्रदान नहीं किए जाते हैं, तो उनके जीवन में घटित हुई कोई भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना उन्हें निराशा और दरिद्रता के रास्ते पर ले जाकर उन्हें अकेला छोड़ सकती है, जो उनके लिए काफ़ी कष्टदायक हो सकता है।

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मुआवजा क्या सही अर्थों में मुआवजा ही है?

कल्याणकारी योजनाओं के नकारात्मक अर्थ भी होते हैं। उदाहरण के लिए यदि राजनेता अपनी ओच्छी  राजनीति और लाभों के लिए ‘कल्याणवाद’ का उपयोग करना शुरू कर देते हैं तो यह इन कल्याणकारी नीतियों के मूल उद्देश्य को विफल करना शुरू कर देता है। ऐसे में यह करदाताओं के पैसे से न्याय का मजाक बन जाता है। यह कई मौकों पर देखा गया है, विशेष रूप से सांप्रदायिक झड़पों, दंगों या राजनीति से प्रेरित मामलों में जहां राजनीतिक दल पीड़ित-उत्पीड़क जोड़े में अपने पूर्वाग्रह के परिणामस्वरूप मुआवजे को स्वीकार या अवहेलना करते हैं।

मुजफ्फरनगर दंगों के भीषण प्रकरण में मुआवजा की राजनीति बड़े स्तर पर होती देखी गयी जब तब की यूपी सरकार ने दंगा पीड़ितों के लिए मुआवजा आवंटित कर अपनी राजनीति चमकाने का पूरा प्रयास किया है। मुआवजे का ये मामला इतना बड़ा हो चला था कि सुप्रीम कोर्ट को इसके लिए अखिलेश यादव सरकार तक लगानी पड़ी थी। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की अधिसूचना पर कड़ा रुख अपनाया, जिसमें हाल के मुजफ्फरनगर दंगों में पुनर्वास के लिए प्रभावित केवल मुसलमानों को 5 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया गया था। ऐसे ही कई और उदाहरण बहुत आसानी से देखने को मिल जाएंगे।

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तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनेता मुआवजा बांटते हैं ताकि अपनी वोट बैंक की राजनीति को संवार सकें। वे ऐसा अनवरत करते ही रहते हैं जैसे कि उन्हें इस बात से कोई अंतर ही नहीं पड़ता कि वो करदाताओं के पैसे को किस तरह उड़ा रहे हैं, केवल और केवल अपने लाभ के लिए।

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