बिहार में बहार बा, नीतीशे कुमार बा! इसे कहेंगे अपने मुंह-मियां मिट्ठू बनना। अब वो नीतीश कुमार जो दलगत राजनीति को खो-खो समझकर खेलने के आदी हो चुके हैं। कुछ क्षण कहीं तो शेष क्षण कहीं गुज़ारने की जुगत में बिहार की जनता के साथ जो विश्वासघात करते हैं, अब वही नीतीश कुमार इसी ढर्रे पर चलकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए पीएम मटैरियल मुहिम को मूर्त रूप देने के लिए दिल्ली आ गये हैं। वहीं दिल्ली आने से पूर्व नीतीश ने भाजपा के साथ पुनः गठबंधन वापसी को मूर्खता और गलती करार दिया। ऐसे में नीतीश कुमार ने स्वयं यह साफ कर दिया कि अब जेडीयू के पतन की कहानी का अंतिम अध्याय वो लिख चुके हैं।
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नीतीश कुमार ने फिर भाजपा के संदर्भ में मुंह खोला है
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ अपने निरंतर तीखे हमले में कहा कि 2017 में एनडीए के साथ फिर से जुड़ने के बाद कई राज्यों के लोग जनता दल (यूनाइटेड) से अलग हो गए थे और अब जब पार्टी ने भाजपा से नाता तोड़ लिया है तो लोग ‘गुड गोइंग’ कह रहे हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार 4 सितंबर को पटना में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए यह सब बोल रहे थे।
नीतीश ने 2017 में एनडीए में वापसी को गलती करार देते हुए कहा कि, “यह हमारी मूर्खता थी।” नीतीश कुमार ने यह सब दिल्ली कूच करने से पूर्व कहा जहां वो भविष्य की नीति बनाने की चाह के साथ भाजपा विरोधी दलों से मिल रहे हैं। नीतीश कुमार की यह नीति कितनी सफल होती है हमेशा की भांति इस बार भी संशय बना हुआ है।
विपक्षी एकता का झंडा कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों ने लहराने का प्रयास किया पर परिणाम “निल-बटे-सन्नाटा” प्राप्त हुए। कभी एनसीपी प्रमुख शरद पवार उठ खड़े हुए तो कभी टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सपना सामने आया। नीतीश कुमार तो हर वर्ष “पीएम मैटेरियल” का एक उद्घोष अपनी पार्टी के नेताओं से लगवा ही देते हैं। दिल्ली के स्वघोषित मालिक और सीएम अरविंद केजरीवाल के भी मुंगेरीलाल के हसीन सपने किसी से छुपे नहीं हैं। लोकसभा में एक सांसद न होने के बावजूद आम आदमी पार्टी का यह दावा है कि वो राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष का अगला मज़बूत विकल्प है, यह किसी कपोलकल्पना से कम नहीं है। वहीं कांग्रेस के चश्मोचिराग राहुल गांधी तो ऑल-टाइम ऑल-वैदर पीएम पद के विपक्ष उम्मीदवार हैं ही।
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विपक्ष चेहरा ही नहीं तय कर पा रहा है
ऐसे में जहां विपक्ष का चेहरा कौन है वही तय नहीं है, उसमें भी नीतीश कुमार ये सपने संजो रहे हैं कि एनडीए को छोड़ उनकी पीएम पद पर की दावेदारी और प्रगाढ़ हो जाएगी यह नीतीश की अपरिपक्वता को दर्शाता है। वो भले ही जोड़-तोड़ करकर आधे-अधूरे कार्यकाल के साथ 8 बार बिहार की गद्दी पर मुख्यमंत्री बन बैठ गए हों पर शाश्वत सत्य तो यह है कि राष्ट्रीय राजनीति का सपना नीतीश कुमार के लिए सपना ही रह जाएगा।
एक राष्ट्रीय राजनेता बनने के लिए जिस ठहराव, एकाग्रता, सत्यनिष्ठ व्यवहार कुशलता की ज़रूरत होती है नीतीश कुमार उन सभी मायनों में पिछड़ते ही पाए गए हैं। ऐसे में आज भले ही वो 2017 में एनडीए के साथ वापसी को अपनी मूर्खता बता रहे हों पर जैसा नीतीश कुमार का इतिहास रहा है आज गरियाते हैं और कल वापसी कर शरण मांगने लगते हैं। ऐसे में कल को यदि महागठबंधन छोड़ पुनः नीतीश एनडीए में वापसी करना चाहें तो कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन इस बार यदि ऐसी स्थिति बनती है तो भाजपा ही स्वयं कहेगी कि “माफ़ कीजिए नीतीश बाबू! जेडीयू नॉट अलॉउड।”
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