सही ही कहा गया है कि सच लाख छुपाने से भी नहीं छुप सकता। भले ही भारी मन के साथ ही क्यों न लेकिन आपको एक न एक दिन इसे स्वीकार करना ही पड़ता है। जो वामपंथी मीडिया भारत के विरुद्ध जहर उगलने का कोई मौका नहीं छोड़ती वो केवल इसी तलाश में रहती है कि किसी भी तरह भारत को नीचा दिखा सके। वहीं वामपंथी मीडिया अब भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था से शायद इस वक्त सदमे में अवश्य होगी। परंतु क्या ही करें, परिस्थिति ही कुछ ऐसी है कि आधे-अधूरे मन के साथ ही सही परंतु उन्हें सत्य को स्वीकारने के लिए विवश होना पड़ रहा है।
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न्यूयॉर्क टाइम्स ने अंततः सत्य स्वीकारा
दरअसल, अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनिच्छा से भरकर यह बात मानी है कि इस समय जब कथित महाशक्तियों अमेरिका और चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्था मंदी के कारण चिंताओं से जूझ रही है वहीं भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो इस स्थिति में नहीं है। हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था- “अमेरिका से लेकर चीन तक बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ठप हैं, लेकिन भारत नहीं।”
इसके साथ ही न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने लेख में यह भी बताया कि वर्तमान समय में वैश्विक आर्थिक विकास धीमा पड़ा हुआ है। कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चिंताओं से जूझ रही हैं, परंतु इस दौरान एक विशिष्ट अपवाद रहा है: भारत। लेख में आगे कहा गया कि भारत सरकार ने अनुमान जताया है कि इस वर्ष देश की अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत या फिर उससे अधिक बढ़ने की राह पर है, जो कि वैश्विक विकास अनुमानों का दोगुना है।
इस दौरान एक इंडियन रेटिंग एंड रिसर्च के प्रमुख अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने ब्रिटेन को पीछे छोड़कर भारत के विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने पर अपनी खुशी जाहिर की। सुनील सिन्हा ने कहा- “जिन्होंने हम पर 250 साल राज किया, हमने उन्हें विश्व की अर्थव्यवस्था में पीछे छोड़ दिया है। छठे से पांचवें स्थान पर जाने से अधिक खुशी इसी में थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- हम हजारों साल की गुलामी से बाहर आए हैं; अब अवसर है। हम रुकेंगे नहीं।“
बस यही पर न्यूयॉर्क टाइम्स की कुंठा दिख गयी। इस वामपंथी मीडिया ने भारत की अर्थव्यवस्था पांचवें नंबर पर पहुंचने पर अपनी खुन्नस निकालते हुए लिखा- “हालांकि यह अनकहा छोड़ दिया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था को 1.4 अरब लोगों का समर्थन करना है, जबकि ब्रिटेन के पास जनसंख्या 67 मिलियन है। इसलिए जैसा कि भारत सरकार ने पिछले हफ्ते रिपोर्ट किया था कि अप्रैल से जून तिमाही में अर्थव्यवस्था 13.5 प्रतिशत बढ़ी है, यह अभी भी एक राष्ट्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है। जबकि भारत द्वारा शीघ्र ही चीन को दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में पार करने की उम्मीद है।“
न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत की प्रशंसा की
न्यूयॉर्क टाइम्स ने आगे यह भी लिखा- “निजी रेटिंग एजेंसियों ने इस वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अपने विकास अनुमानों को एक प्रतिशत या उससे अधिक तक घटा दिया है, लेकिन उनके पूर्वानुमान मोटे तौर पर भारत सरकार की अपेक्षाओं के बॉलपार्क में बने हुए हैं। अगले साल विकास दर धीमी होकर लगभग 6 प्रतिशत रहने का अनुमान है।”
इस पूरे लेख में भारी मन के साथ ही सही परंतु न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत की प्रशंसा की और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण भी गिनाए, परंतु साथ ही इस पर अपनी घृणा भी दिखा दी। अपने लेख में उसने विश्लेषकों के हवाले से आगे यह भी कहा- “भारतीय अर्थव्यवस्था अपने घर पर कामकाजी लोगों की विशाल आबादी के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर पैदा करने में असमर्थ है। करोड़ों भारतीय अभी भी सरकारी राशन पर निर्भर हैं और किसी भी एक झटके की चपेट में हैं।“
समय का फेर तो देखिए, जो न्यूयॉर्क टाइम्स पहले भारत की कोविड नीतियों को लेकर लगातार प्रश्न खड़े कर रहा था, अब वही भारत के कोविड टीकाकरण अभियान की प्रशंसा करने पर विवश हुआ। लेख में उसने कहा- “इन सबके बावजूद विश्व स्तर पर भारत एक उज्ज्वल स्थान पर बना हुआ है, जो खपत और निवेश में एक पलटाव द्वारा उठाया गया। यह विशाल कोविड टीकाकरण अभियान द्वारा शुरू किया गया था, जो कि दुनिया के सबसे बड़े निर्माता के रूप में देश की क्षमता पर निर्भर था।“
न्यूयॉर्क टाइम्स के इस लेख से साफ है कि उसे अनिच्छा से ही यह स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ा है कि भारत की अर्थव्यवस्था इस वक्त पूरे विश्व में सबसे बेहतर प्रदर्शन कर रही है। हालांकि इसी दौरान उसने कथित तौर पर दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था माने जाने वाले देशों की हालत भी बता दी। न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि इस वर्ष उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि तेजी से घटकर 2.6 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो साल 2021 की दर से लगभग आधी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार इस वर्ष अमेरिकी अर्थव्यवस्था के 2.3 प्रतिशत और अगले वर्ष 1 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। वहीं IMF ने इस साल चीन में 3.3 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है जो महामारी से पहले के चार दशकों में सबसे कम है।
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