राजा विक्रमादित्य कौन थे?
राजा विक्रमादित्य (Raja vikramaditya)- विक्रमादित्य (Raja vikramaditya) उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने पूरे एशिया पर अपना शासन व्यवस्थित किया था। भारत का इतिहास सदैव से ही महापुरुषों की जीवनगाथा का प्रमाण रहा है। उनका जन्म 102 ई. पू. के आसपास हुआ था। इनके जन्म को लेकर विभिन किवदंतियाँ प्रचलित है।
एक जैन साधु महेसरा सूरी की कथा के अनुसार उज्जैन के एक शासक गर्दभिल्ला या गर्धववेष ने अपने बाहुबल के उपयोग से एक सन्यासिनी का अपहरण किया था जिसके भाई की गुहार पर शकों ने सन्यासिनी को गर्दभिल्ला के चंगुल से मुक्त कराया और गर्दाभिल्ला को जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया भारत के इतिहास, समाज एवं संस्कृति पर देश के महापुरुषों का व्यापक प्रभाव रहा है।
दो हजार वर्ष पूर्व हमारे देश में एक ऐसे ही महान राजा, राजा विक्रमादित्य ने राज किया था जिन्होंने अपने बाहुबल से भारतवर्ष की सीमाएं जम्बूद्वीप के बाहर तक विस्तृत कर दी थी विक्रमादित्य के पिता महाराज गंधर्वसेन थे और उनकी दो पत्नियां थीं। एक पत्नी के पुत्र विक्रमादित्य और दूसरी पत्नी के पुत्र थे भर्तृहरि। अपने साहस एवं दयालुता के अतिरिक्त अपनी न्यायप्रियता के कारण राजा विक्रमादित्य जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय थे।
कहा जाता है की जो शासक, राजा विक्रमादित्य के समान दयालु एवं न्यायप्रिय हो वही विक्रमादित्य की उपाधि की धारण करने का पात्र होता था। अनेक किवदंतियों के अनुसार राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए स्वयं छदम वेश में नगर के भ्रमण पर जाते थे एवं प्रजा के सुख-दुखो के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे।
राजा विक्रमादित्य के नैतिक शिक्षाओं का संकलन बृहत्कथा, बेताल पच्चीसी एवं सिंहासन बतीसी जैसे अमूल्य ग्रंथो से प्रकट होता हैविक्रमादित्य की मृत्यु के बारे में इक्कतीस वी पुतली कौशल्या ने बताया। जब सम्राट विक्रमादित्य वृद्धावस्था में आ गए थे तो उन्होंने अपने योग बल से यह जान लिया था कि उनका अंतिम समय अब निकट है। महाराज विक्रमादित्य राज कार्य तथा धर्म में स्वयं को लगाए रखते थे और उन्होंने वन में साधना के लिए एक कुटिया बनाई थी।
राजा विक्रमादित्य (Raja vikramaditya)के नव रत्न –
बेताल भट्ट – बेताल भट्ट राजा विक्रमादित्य (Raja vikramaditya) के प्रमुख रत्नों में से एक थे। बेताल भट्ट का अर्थ है कि भूत पिशाच और साधना में लीन रहने वाला व्यक्ति।
शंकु – बहुत सारे विद्वान् इन्हें ज्योतिषी मानते हैं।
कालिदास – कालिदास अपने समय के एक महाकवि और विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक थे
वररुचि – यह भी विक्रमादित्य (Raja vikramaditya) के प्रमुख रत्नों में से एक थे। यह जिस भी बात को सुन लेते थे उसे वैसे का वैसा ही दोहरा देते थे।
क्षपणक – जैन साधुओं के लिए क्षपणक शब्द का उपयोग किया जाता था। मुद्राक्षस में भी क्षपणक की स्थिति का ब्यान किया गया है।
अमरसिंह – अमरसिंह एक महान विद्वान थे जो कि राजा सचिव भी थे। संस्कृत का सर्वपर्थम कोष अमर सिंह द्वारा ही रचा गया है जो
घटकपर्रर – इन्होने अपना बुढ़ापा चन्द्रगुप्त के दरबार में बिताया था। यह भी राजा विक्रमादित्य (Raja vikramaditya) के आवश्यक रत्न थे।
धन्वंतरि –धन्वंतरि एक अच्छे चिकित्स्क माने जाते थे।
वरामिहिर-वरामिहिर ज्योतिष विद्या में रूचि रखते थे।
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FAQs About Raja vikramaditya
Ques- राजा विक्रमादित्य कौन थे?
Ans- राजा विक्रमादित्य उज्जैन राज्य के न्यायप्रिय, दयालु एवं प्रजा हितैषी राजा थे।
Ques- राजा विक्रमादित्य की गौरव गाथाएं किन ग्रंथों में संकलित है?
Ans –बृहत्कथा, बेताल पच्चीसी एवं सिंहासन बतीसी नीतिकथा ग्रंथो में संकलित है।
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