चीन दुनिया का सबसे बेकार, कुंठित, कपटी और दोगला राष्ट्र है। इसकी विस्तारवादी नीति से पूरी दुनिया परिचित है। पहले यह छोटे देशों को ऋण जाल में फंसाता है, उन्हें जमकर लोन देता है और न चुका पाने की स्थिति में उनके संसाधनों पर कब्जा जमाना शुरु कर देता है। वुहान वायरस प्रकरण के बाद चीन पूरी दुनिया में अलग थलग पड़ गया है। वैश्विक स्तर पर तमाम देश चीन को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते हैं लेकिन चीन अभी भी अपनी चालबाजी से बाज आता नहीं दिख रहा है। अपने पड़ोसियों को परेशान करना इस धूर्त राष्ट्र की आदतों में शुमार है लेकिन नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, ताइवान और मंगोलिया जैसे देशों के नाक में दम करने वाला चीन अगर किसी से डरता है तो वह भारत है। चीन का डरना लाजमी भी है क्योंकि इस पूरे रीजन में भारत ही इकलौता ऐसा देश है जो हर मोर्चे पर चीन की बैंड बजाते आया है। इसी बीच भारत के केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन के उत्तरी सीमा से सटे राष्ट्र मंगोलिया पहुंचे और वहां के राष्ट्रपति उखनांगी खुरेलसुखो से मुलाक़ात की।
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मंगोलिया पहुंचने वाले पहले रक्षा मंत्री बने राजनाथ सिंह
मंगोलियन राष्ट्रपति ने राजनाथ सिंह के सम्मान में एक डिनर का आयोजन भी किया। इस दौरे के तहत बातचीत का जो एजेंडा है उसमें 1.2 अरब डॉलर से बनने वाली ऑयल रिफाइनरी सबसे मुख्य है। यह मंगोलिया की सबसे बड़ी ऑयल रिफाइनरी होगी जो डोर्नोगोवी प्रांत में तैयार होगी। यह वर्ष 2025 तक बनकर तैयार हो जाएगी और इससे देश की 75 फीसदी जरूरतें पूरी हो सकेंगी। राजनाथ सिंह पहले ऐसे भारतीय रक्षा मंत्री बने हैं जो मंगोलिया पहुंचे हैं। ध्यान देने वाली बात है कि भारत ने मंंगोलिया के साथ अपने राजनीतिक रिश्तों की शुरुआत 1955 में की थी। दूसरी ओर चीन को हमेशा इस बात से मिर्ची लग जाती है कि भारत और मंगोलिया साथ क्यों आते हैं। वर्ष 2016 में चीन की तरफ से तो मंगोलिया को चेतावनी तक दे दी गई थी। इस बार भी राजनाथ सिंह के दौरे को लेकर चीन बौखलाया हुआ है और राजनाथ सिंह की यात्रा पर नजर बनाए हुए है।
चीन की बौखलाहट का कारण क्या है?
आपको बताते चलें कि मंगोलिया हमेशा से ही भारत को अपना ‘तीसरा’ और ‘आध्यात्मिक पड़ोसी’ कहता आया है। कहते हैं कि इसी विचारधारा के साथ मंगोलिया अपने बाकी दोनों पड़ोसियों, चीन और रूस के साथ रिश्तों को संतुलित करता आया है। चीन को मंगोलिया से क्या दिक्कत है, इसे जानने के लिए इसका इतिहास जानना जरूरी है। वर्ष 1911 में किंग राजशाही के पतन के बाद मंगोलिया ने आजादी का ऐलान कर दिया। 1921 आते-आते मंगोलिया सोवियत संघ का एक सैटेलाईट राज्य बन गया था। बाद में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी चीन ने तक़रीबन 11 वर्षों तक मंगोलिया को एक स्वतंत्र देश की मान्यता नही दी थी। चीन का मंगोलिया के साथ इनर मंगोलिया क्षेत्र को लेकर विवाद है और चीन ये बात भली भांति जानता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और साथ ही साथ मंगोलिया चीन के साथ लगभग 4600 किमी सीमा साझा करता है।
तभी तो वर्ष 2016 में जब चीन द्वारा उसके वस्तुओं पर टैरिफ लगाए जाने के बाद ख़राब हुए आर्थिक स्थिति को लेकर मंगोलिया ने भारत से मदद मांगी तो चीन ने उसे जमकर धमकाया था। चीन यह बात भली भांति जानता है कि जैसे उसने भारत को घेरने के क्रम में String of Pearls नीति को अपनाया वैसे ही कहीं भारत की मंगोलिया में मौजूदगी उसके ऊपरी सीमा को घेरने की शुरुआत न हो। इसके साथ ही चीन 2600 किमी की पॉवर ऑफ़ सर्बिया-2 नामक गैस पाइपलाइन का निर्माण कर रहा है, जो यूरोप बाउंड प्राकृतिक गैस को वेस्टर्न साइबेरियन क्षेत्र से मंगोलिया होते हुए चीन ले आएगा।
ऐसे में भारत की मोंगोलिया में उपस्थिति चीन की ऊर्जा सुरक्षा के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती उत्पन्न कर सकता है जिसे लेकर चीन काफ़ी चिंतित दिखाई पड़ रहा है। ध्यातव्य रहे कि चीन की ऊर्जा सुरक्षा की पूर्ति या तो मध्य एशिया में मंगोलिया के रास्ते पूरी होती है या तो मलक्का जलडमरु के माध्यम से। अब मलक्का क्षेत्र में भारत की ज़बरदस्त उपस्थिति है, वहां भारत आसानी से मलक्का जलडमरु को चोक कर सकता है। ब्लू नेवी होने के नाते भारत के प्रशांत महासागर में प्रचंड उपस्थिति है किंतु अब अगर मंगोलिया में भारत की उपस्थिति हो जाती है तो चीन घिर जाएगा। ज़ाहिर सी बात है कि चीन आने वाले समय में इसका पूरा विरोध करेगा। भारत के इस कदम से चीन बैकफुट पर तो अवश्य होगा लेकिन साथ ही भारत के पास भी ऑप्शन होगा कि जब कभी भी चीन के साथ भारत की किसी विषय पर चर्चा हो तो भारत भी अपनी इन उपस्थितियों का फायदा उठा कर अपने अनुसार शर्तों को रख सके।
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