कुर्सी का खेल बड़ा ही निराला होता है और जब कुर्सी राजनीतिक रण वाली हो तब तो मामला और रोमांचक हो जाता है। हालांकि किसी भी शासक का एक तय समय होता है, जिसके अनुरूप उसे कुर्सी का मोह स्वयं छोड़कर उसे नये दावेदार को सौंपनी चाहिए। इससे उस शासक के पद-प्रतिष्ठा में ही वृद्धि होगी कि उन्होंने स्वेच्छा से कुर्सी सौंपी है।
अब बात मध्य प्रदेश की करें तो यहां वर्ष 2003 से करीब-करीब शिवराज सिंह चौहान ही सत्ता संभाल रहे हैं। परंतु अब समय आ गया है कि वो अपने इस मुख्यमंत्री पद को अन्य किसी योग्य साथी को सौंप मध्य प्रदेश की राजनीति से संन्यास लेकर केंद्रीय राजनीति को ओर कदम बढ़ाए, जो अमूमन किसी भी वरिष्ठ राजनेता के राजनीतिक जीवन का अगला पड़ाव होता है। शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में एक नायक के रूप में याद किए जाने के लिए काफी समय तक सेवा की है, अब समय है एक सुंदर निकास का जो ही उनके लिए उचित होगा।
भाजपा के कुछ गढ़ हमेशा से सलामत रहे हैं, फिर चाहे केंद्र में उनकी सरकार रही हो या न रही हो। उन्हीं में से एक राज्य है मध्य प्रदेश, जहां देखा जाए तो अधिकतर समय भाजपा की ही सरकार सत्ता पर काबिज रही है। मध्य प्रदेश में वर्ष 2003 में भाजपा ने सरकार बनाई और तब से अब तक इस राज्य को भाजपा के अजेय ख़िताब की तरह देखा जाता है। कुछ समय के लिए राज्य में कांग्रेस की सरकार अवश्य आई थी, परंतु वो ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई।
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जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने थे
एक समय पर उमा भारती जैसे नेताओं का निर्माण करने और उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने वाले इस राज्य और राज्य की जनता ने कांग्रेस के नामी नेता दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री से पूर्व मुख्यमंत्री बनाया था। यह बात 2003 की ही है जब दो बार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को तो जीत हासिल हो गई थीं पर उनकी पार्टी बहुमत प्राप्त न कर सकी थी। परिणामस्वरूप उस समय भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती जो राम मंदिर आंदोलन के बाद एक प्रखर हिंदूवादी नेत्री बनकर सामने आईं थीं उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।
यह दिग्विजय सिंह का ही शासन था जब मध्य प्रदेश की राजनीति में शिक्षा-स्वास्थ्य का बोलबाला पंचायत स्तर तक था। पर जैसे की सत्ता कभी स्थायी नहीं रहती कुछ ऐसा ही हुआ और 2003 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार चली गई और शासन आया उमा भारती के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पास। यह उमा भारती की किस्मत का लिखा कहा जाए या भाग्य का मिटा, उन्हें सीएम की कुर्सी तो मिली पर राज्य की सत्ता अधिक समय तक हाथ में न रह पाई और उन्हें अगस्त 2004 को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक बाबूलाल गौर को सीएम बनाया गया जो उस समय रिक्तता को भरने के लिए ही मुख्यमंत्री बनाए गए थे ताकि सरकार अस्थिर न हो जाए। कुछ समय बाद वो समय आया जिसने राज्य की राजनीति को शिव”राज” दिया।
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शिवराज सिंह चौहान बने थे मुख्यमंत्री
29 नवंबर 2005 को बाबूलाल गौर का इस्तीफा हुआ और 30 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस दिन से मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज से लेकर “मामा” तक का सफर तय करते हुए शिवराज सिंह चौहान चार बार मुख्यमंत्री बने और तीन चुनाव में बहुमत पाकर जीतने के बाद वर्ष 2018 के चुनाव में हार का सामना किया। परंतु शिवराज ज्यादा समय तक सत्ता से दूर नहीं रहे। वर्ष 2020 में उनकी सत्ता में पुनः वापसी हुई। सरकार बना सीएम बनकर शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की राजनीति के बाज़ीगर होने का तमगा भी हासिल कर लिया।
जिस भाजपा ने सुंदर लाल पटवा, उमा भारती, बाबूलाल गौर जैसे सीएम मध्य प्रदेश को दिए, जिस राज्य में अनेक ऐसे भाजपा नेता हैं जो 2014 से केंद्रीय राजनीति में मोदी सरकार में मंत्री हैं, इसके बावजूद कोई भी शिवराज सिंह चौहान को हटा नहीं पाया क्योंकि वो काम में अनुकूल और जनता के मनोमस्तिष्क में हैं। 15 साल से ऊपर उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए प्रेरक होता है। लेकिन 2018 की हार के बाद यह अटकलें लगने लगी थीं कि अगला चुनाव मामा अर्थात शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में नहीं लड़ा जाएगा और कहीं न कहीं यह बात जायज़ भी है।
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जब शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली बुलाया गया
जिस प्रकार 2018 की हार के तुरंत बाद शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली बुलाया गया और संगठन की राजनीति के तहत तीनों राज्यों राजस्थान-मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के नेताओं अर्थात शिवराज समेत वसुंधरा राजे और रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। तब कहानी यही होने वाली थी कि अब शिवराज को राज्य की राजनीति से देश की राजनीति पर शिफ्ट किया जाएगा पर 2020 में मार्च माह में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर कमलनाथ की सरकार गिरा भाजपा की सरकार में वापसी करा दी। इस समय भाजपा आलाकमान के हाथ में और कोई विकल्प न बचने पर पुनः शिवराज सिंह चौहान को सीएम बना दिया गया और ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्यसभा से होते हुए मोदी मंत्रिमंडल में नागरिक उड्डयन मंत्री बनाए गए।
लेकिन यथास्थिति पर गौर किया जाए तो बीते वर्ष जब एक-एक कर भाजपा शासित राज्यों में सीएम बदलीकरण की मुहिम उफान पर थी तब भी यह कहा जा रहा था कि अगला नंबर शिवराज सिंह चौहान का हो सकता है। ऐसे में यह भी सत्य है कि 2005 से लेकर आज तक राज्य की राजनीति काफी हद तक परिवर्तित ही चुकी है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के कई प्रतिद्वंद्वी उन्हीं की पार्टी से तैयार हो चुके हैं, इस मामले में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम सबसे ऊपर आता है। ऐसे में यही सही समय है कि शिवराज सिंह चौहान को राज्य की राजनीति से स्वयं विदाई सुनिश्चित करते हुए अब केंद्रीय राजनीति की ओर बढ़ना चाहिए। इससे वो एक मिसाल तो पेश करेंगे ही साथ ही आगामी भविष्य में एक सफल राजनीतिज्ञ के रूप में इंगित होंगे।
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