2012 के बाद से कांग्रेस हाईकमान की कोई नहीं सुनता, सीएम, मिनी पीएम बनकर बैठे हैं

कांग्रेस हाईकमान को गहलोत ने भी लॉलीपॉप दे दिया!

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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर चर्चा में है। यह दिखाने का प्रयास हो रहा है कि पार्टी में अभी भी लोकतंत्र जीवित है। एक तरफ राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी अपने लोकतांत्रिक मूल्यों का दम भर रही है। भले ही कांग्रेस नये सिरे से खड़ा होने का प्रयास करने का दिखावा कर रही हो लेकिन वास्तविकता यह है कि कांग्रेस के नेता अब गांधी परिवार तक की नहीं सुनते हैं। विशेष यह है कि यह पैटर्न आज से नहीं बल्कि साल 2014 से चला आ रहा है और पार्टी की स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि उसके मुख्यमंत्री तक गांधी परिवार की बातों को अहमियत नहीं देते हैं।

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गांधी परिवार के विरुद्ध ही विद्रोह

कांग्रेस का आलाकमान यानी गांधी परिवार यह चाहता था कि पार्टी के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हमी भरें। गहलोत ने हामी भर भी दी थी लेकिन उनकी मांग केवल इतनी थी कि वह मुख्यमंत्री रहने के साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालना चाहते थे। अब कांग्रेस की दिक्कत यह है कि गांधी परिवार ने साल 2018 में विधानसभा चुनाव जिता कर पार्टी को सत्ता दिलाने वाले सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर दिया लेकिन गहलोत को यह बात हजम नहीं हुई है।

जिस दिन अशोक गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए यह मांग की थी कि वे मुख्यमंत्री भी रहना चाहते हैं उसी दिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया था कि उदयपुर के अधिवेशन के मुताबिक पार्टी एक व्यक्ति एक पद का पालन करेगी और इसके तहत अशोक गहलोत को इस्तीफा देना होगा। राहुल गांधी की यह बात उस समय तो अशोक गहलोत ने मान ली थी लेकिन जब मुख्यमंत्री का नाम तय करने को लेकर कथित आलाकमान यानी गांधी परिवार ने प्रक्रिया शुरू की तो अशोक गहलोत ने अपने विचारों और चमचों की मदद से गांधी परिवार के विरुद्ध ही विद्रोह कर दिया है।

इसका नतीजा यह है कि पार्टी आलाकमान अशोक गहलोत से काफी खफा है और माना जा रहा है कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इन सब के विपरीत भले ही अशोक गहलोत अब यह कह रहे हों कि वे आलाकमान की सारी बातें मानेंगे किंतु यह माना जा रहा है कि सचिन पायलट के मुद्दे पर अशोक गहलोत ने सीधे तौर पर गांधी परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब गांधी परिवार के खिलाफ बगावत की गई हो बल्कि इससे पहले भी ऐसा हो चुका है।

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भ्रष्टाचार से जुड़े आरोप

कांग्रेस पार्टी साल 2010 के बाद लगातार भ्रष्टाचार से जुड़े आरोपों में गिरती नजर आयी है। इसके चलते केंद्रीय कांग्रेस से जहां देश का मोहभंग हो रहा था तो वहीं इसका सीधा असर राज्य की राजनीति पर भी पड़ सकता था और यह बात राज्यों के मुख्यमंत्री अच्छे से जानते थे। इसी का नतीजा है कि साल 2012 में जब नरेंद्र मोदी की गुजरात में जीत हुई और यह संकेत मिलने लगे कि साल 2014 में चुनाव लड़ेंगे तो कांग्रेस के ही मुख्यमंत्रियों ने गांधी परिवार और केंद्रीय आलाकमान से दूरियां बनानी शुरू कर दी क्योंकि उन्हें कांग्रेस की हार का अंदाजा हो गया था।

साल 2012 में तरुण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन जैसे-जेसे कांग्रेस केंद्र की राजनीति में कमजोर होती गयी वैसे-वैसे पार्टी को असल में नुकसान होता गया। राज्य में नेता अपने हिसाब से राजनीति करने लगे और पार्टी में राज्य इकाई के स्तर पर ही बगावत हो गयी। साल 2016 में इसी बगावत को लेकर तरुण गोगोई के खिलाफ वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा जब कांग्रेस आलाकमान के पास पहुंचे तो उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली। हिमंता को महत्व मिलने की मुख्य वजह यह थी कि पार्टी आलाकमान तरुण गोगोई के सामने कमजोर था। तरुण गोगोई असम की राजनीति में मुख्यमंत्री नहीं बल्कि एक मिनी प्रधानमंत्री के तौर पर राज करने लगे और असम में कांग्रेस के आंतरिक टकरावों के चलते पार्टी की बड़ी हार हुई।

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साल 2010 से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को केंद्रीय आलाकमान से काफी नजदीकी वाले नेता माना जाता था लेकिन जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा को यह एहसास होने लगा कि केंद्रीय नेतृत्व अब अपने सबसे निचले स्तर पर जाने वाला है तो हुड्डा ने गांधी परिवार से दूरियां बनाना शुरू कर दी। गांधी परिवार हरियाणा में कुमारी शैलजा से लेकर रणदीप सिंह सुरजेवाला को मुख्य भूमिका में लाने के प्रयास करता रहा और इसके चलते गांधी परिवार का भूपेंद्र सिंह हुड्डा से एक बड़ा टकराव हुआ। 2014 में विधानसभा चुनाव होने तक भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस आलाकमान की कोई बात नहीं मानी और स्वतंत्र रूप से हरियाणा की सरकार चलाई और इसी टकराव के चलते पार्टी की 2014 के विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई।

कांग्रेस पार्टी पुदुचेरी में डीएमके के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार चला रही थी लेकिन मुख्यमंमंत्री वी नारायणसामी के खिलाफ कांग्रेस के अपने विधायकों का गुस्सा फूट रहा था। कमजोर गांधी परिवार विधायकों की नाराजगी के बहाने वी नारायणसामी पर कार्रवाई करने का प्रयास तो कर रहा था लेकिन वी नारायणस्वामी ने गांधी परिवार के आदेशों को नकारना शुरू कर दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के विधायकों ने पाला बदलते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया।‌ एक तरफ बीजेपी ने कांग्रेस का पुराना नेतृत्व हासिल कर पुदुचेरी में अपनी राजनैतिक आधार को मजबूत किया और फिर चुनाव जीतकर सरकार भी बना दी।

गांधी परिवार के खिलाफ पंजाब की राजनीति में सबसे मुखर रहने वाले व्यक्ति पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ही थे। कैप्टन जब तक पंजाब की राजनीति में सक्रिय रहे तब तक उन्होंने गांधी परिवार को पंजाब में किसी भी तरह से सक्रिय नहीं होने दिया वह पंजाब को अपनी राजनीतिक सूझबूझ के साथ चलाते थे। गांधी परिवार को उनकी यह स्वतंत्रता हमेशा खलती रही लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कभी भी गांधी परिवार के आगे घुटने नहीं टेके। 2017 के विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस को चार राज्यों में हार मिली तो केवल पंजाब में जीत मिली जिसकी वजह कैप्टन अमरिंदर सिंह थे।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि राहुल गांधी पंजाब में चुनाव प्रचार के लिए आएंगे तो पार्टी को नुक़सान होगा। नतीजे यह स्पष्ट कर रहे थे कि जिन चार राज्यों में राहुल गांधी चुनाव प्रचार के लिए गए वहां पार्टी की करारी हार हुई और पंजाब में राहुल नहीं गए तो कैप्टन के नेतृत्व कांग्रेस की सरकार बनी।

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यह चंद उदाहरण है जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि गांधी परिवार के कमजोर होने के बाद से ही कांग्रेस के चंद राज्यों में बचे मुख्यमंत्री अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए अपने दम पर फैसले लेते हैं और स्वतंत्रता से राज करते हैं, वर्तमान उदाहरण राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत है।

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