घटिया कप्तानी, महाघटिया चयन, वीवीआईपी संस्कृति और भी बहुत कुछ – भारतीय क्रिकेट टीम की दर्दनाक कथा

केवल और केवल एक त्रासदी बनकर रह गयी है भारतीय क्रिकेट टीम

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एक फिल्म थी, बचपन में देखी थी, ‘चैन कुली की मैन कुली”। उसमें जब भारतीय क्रिकेट टीम निरंतर घटिया प्रदर्शन करती जा रही थी तो उसे उलाहना देते हुए उनके कोच कहते हैं, “मैं उस टीम को कोच करने वाला था जिसमें वर्ल्ड की बेस्ट टीम होने की काबिलियत है। पर अफसोस, लगन, बिल्कुल नहीं। वी हैव द बेस्ट विद अस [हमारे पास सर्वश्रेष्ठ लोग हैं], लेकिन आपकी यह परफ़ॉर्मेंस देखकर लगता है कि गली क्रिकेट खेलने वाले बच्चे तुमसे अच्छे हैं। कम से कम वो हर शॉट में अपनी जान तो लगा देते हैं!” वर्तमान में भारतीय क्रिकेट टीम पर भी शत प्रतिशत फिट बैठती है।

हाल ही में टीम इंडिया एशिया कप से मुंह उठाकर चलती बनी है। न कोई उत्साह, न कोई जिजीविषा, ऐसा लग रहा था मानो बस खानापूर्ति के लिए यह टीम टूर्नामेंट खेलने आयी थी। परंतु इसके लिए दोषी कौन है? इसके पीछे अनेक कारण है जिनका विश्लेषण करना अति आवश्यक है।

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सर्वप्रथम है टीम की कप्तानी

टीम की कप्तानी में कोई परिवर्तन नहीं आया है। जब विराट कोहली के हाथ से कप्तानी लेकर रोहित शर्मा के हाथ में दी गयी थी तो ऐसा प्रतीत हुआ था कि परिवर्तन आएगा परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उलटे विराट कोहली ने जितना टीम इंडिया का विनाश किया था, स्थिति वही ढाक के तीन पात रही। विराट कोहली के कप्तानी छोड़ने के बाद कप्तान के रूप में रोहित शर्मा ने कुछ विशेष नहीं करके टीम इंडिया की काफी नाक कटवायी है।

एशिया कप में जिस प्रकार से उन्होंने टीम इंडिया का नेतृत्व किया है, उसमें स्पष्ट तौर पर अपरिपक्वता और उद्दंडता झलकती है। फिटनेस पर जितना कम कहें उतना ही अच्छा होगा। परंतु जिस प्रकार से वे अपने जूनियर खिलाड़ियों के साथ बर्ताव करते हैं वो भी अपने आप में इस बात का परिचायक है कि वे कुछ भी हों लेकिन एक अच्छे कप्तान तो निस्संदेह नहीं है। अभी यह हाल है तो आगामी टी-20 विश्व कप में क्या होगा, जो अक्टूबर माह में प्रारंभ होने जा रहा है।

अब आते हैं चयन पर, जब आपके द्वारा एक निर्णय गलत ले लिया गया हो तो आप सुनिश्चित करते हैं कि आप उससे सीख लेकर एक अच्छा निर्णय लेंगे। परंतु अर्शदीप से अगर एक कैच छूटा तो उसे ऐसे दुरदुराया गया, मानो उसने गोली मार दी हो और भुवनेश्वर कुमार पर निकाली गयी खीझ को हम कैसे भूल कैसे सकते हैं?

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अगला कारण है वीवीआईपी कल्चर

जब लोग अफगानिस्तान जैसे देश की तुलना भारत से करने लगे, जो परिपक्वता, शक्ति, और संसाधन में कई गुना बड़ा है, तो समझ जाइए कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है। गड़बड़ है टीम की वीवीआईपी कल्चर में, जहां देश से बड़ा टीम के खिलाड़ियों के लिए उनका प्रोफ़ाइल, उनका इमेज और धनबल है। इस संस्कृति को भारत के ऊपर थोपने वाला और कोई नहीं, भारत के पूर्व कप्तान, वोक शिरोमणि, विराट कोहली हैं, जो अभी भी जोंक की तरह टीम इंडिया से चिपके हुए हैं।

फॉर्म को लेकर काफी आलोचनाओं के बाद विराट कोहली को लगा, चलो कुछ अलग करते हैं और सच में उन्होंने किया। एशिया कप में पाकिस्तान के विरुद्ध उन्होंने 60 रन ठोंक दिए। इस पर उनके प्रशंसक उछल पड़े और सभी जगह किंग कोहली, कोहली रॉक्स के नारे लगाने लगे, वो और बात थी कि इस मैच को भारतीय टीम 5 विकेट से हार गयी। परंतु बात यहां तक सीमित रहती तो कोई दिक्कत नहीं थी। विराट कोहली को खुजली मची कि थोड़ी सहानुभूति बटोरी जाए।

विराट कोहली ने मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में एमएस धोनी के साथ अपने बॉन्ड को लेकर कहा“मैं आपको एक चीज बता सकता हूं कि जब मैंने टेस्ट कैप्टेंसी छोड़ी तो मेरे पास सिर्फ एक शख्स का मैसेज का आया, जिनके साथ मैं खेला हूं और वो थे एमएस धोनी। बहुत लोगों के पास मेरा नंबर है। मतलब बहुत लोग सजेशन देते हैं कि क्या करना है। उनके पास बोलने के लिए बहुत कुछ होता है लेकिन जिनके पास मेरा नंबर है। उनका एक भी मैसेज नहीं आया।” कोहली ने आगे कहा, “एक रिस्पेक्ट, एक कनेक्शन होता है किसी के साथ, वो जब ये कनेक्शन रियल होता है तो ये इस तरीके से दिखता है, क्योंकि दोनों तरफ सिक्योरिटी होती है, क्योंकि न उनको मुझसे कुछ चाहिए और न मुझे उनसे कुछ चाहिए। न मैं उनसे कभी इनसिक्योर था और न वो मुझसे कभी इनसिक्योर।”

विराट कोहली को यह समझना चाहिए कि उन्होंने विश्व कप या चैंपियंस ट्रॉफी में कोई मैच जिताऊ पारी नहीं खेली है, जो इतना उछल रहे हैं और न ही उन्होंने धोनी की तरह लहराते हुए छक्का जड़कर विश्व कप दिलाई है, जो हारे हुए मैच में 60 रन बनाकर इतना इतरा रहे हैं। जिस एमएस धोनी के कंधे पर बंदूक रखकर आप अपने हेटर्स पर निशाना साध रहे हैं, उनके नेतृत्व को अलग रख दें तो भी उनकी कप्तानी में एक बार भी भारत ने पाकिस्तान के समक्ष नाक नहीं कटवायी है। उनके करियर का प्रादुर्भाव ही विशाखापट्टनम में पाकिस्तान को कूटते हुए हुआ था। अभी तो हमने विश्व कप में उनके कालजयी परफ़ॉर्मेंस पर चर्चा भी प्रारंभ नहीं की है।

और आपने क्या किया? चैंपियंस ट्रॉफी 2017 हो, विश्व कप 2019 हो या फिर टी20 विश्व कप 2021, जहां पर भी पाकिस्तान के विरुद्ध इज्जत बचाने की बात आयी आप तो पतली गली से खिसकते बने! एशिया कप 2022 में भी आपने पाकिस्तान के विरुद्ध केवल अर्द्धशतक ही बनाया है और ये कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है। ये तो वही बात हो गयी कि गली क्रिकेट में तुक्के से चौका लगाने वाला वर्ल्ड कप क्रिकेट में टीम इंडिया के ट्रायल्स के लिए आवेदन की बात करे।

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राहुल द्रविड के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिह्न

अब इस बात से हमारे गुरुदेव, राहुल द्रविड के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिह्न लगते हैं– वे कर क्या रहे हैं? इन्हें तो टीम को दुरुस्त करने के लिए भेजा गया था न? या ये स्वयं टीम के लाइलाज रोग का इलाज निकालते निकालते स्वयं रोगी बन गए? यदि ऐसा है, तो राहुल द्रविड़ से बेटर उम्मीद की गयी थी, क्योंकि ये वही व्यक्ति थे जिन्होंने जूनियर क्रिकेट टीम के कुछ विश्वसनीय लोगों को टीम इंडिया में प्रवेश कराने का अवसर दिया। ऐसे में आज अगर टीम इंडिया भारतीयों के दृष्टि में गिर चुकी है, तो उसके लिए वे स्वयं दोषी हैं, कोई अन्य नहीं।

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