देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान। अगर आज मोहनदास करमचंद गांधी जीवित होते तो उक्त कथन उन पर सटीक बैठता। जब किसी को दिशा प्रदान करने वाला मान लेते हैं तो उसके प्रति जो भावना होती है वो आस्था से कम नहीं होती। सामान्यतः महात्मा गांधी को भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और अहिंसा की प्रतिमूर्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, पर क्या सत्य यहीं तक सीमित है? नहीं! मोहनदास करमचंद गांधी के जीवन से जुड़े अन्य कई अध्याय हैं जिनके बारे में कम बात की जाती है पर उनकी वास्तविकता और सत्यता उतनी ही है जितनी यह कि महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता हैं।
गांधी के जीवन के विवादास्पद अध्याय
यूं तो हर किसी के जीवन के कई पहलू होते हैं, उसी तरह महात्मा गांधी के जीवन में भी कुछ ऐसा ही था। लेकिन उनके जीवन के विवादास्पद अध्याय की चर्चा मात्र इसलिए न हो क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता उपरांत स्वतंत्रता का सबसे बड़ा नायक पाया गया था तो यह अन्याय कहलाएगा। बात हो रही है महात्मा गांधी के जीवन के विवादास्पद अध्याय की, इनमें सबसे विवादास्पद है उनके ‘ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग’। हां, सत्य के साथ मेरे प्रयोग- My experiments with truth, भी महात्मा गांधी की चर्चित रचना में से एक है पर उससे मिलती जुलती एक और रचना है ‘ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग’।
2 अक्टूबर 1869 को जन्मे गांधी का विवाह मई 1883 में 13 वर्ष की आयु में हुआ था। स्कूली शिक्षा के दौरान, उनकी शादी 14 वर्षीय कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया से हुई थी। शादीशुदा होने के बावजूद दोनों को दूर रखा गया। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि “हमारे विवाहित जीवन के पहले पांच वर्षों (13 से 18 वर्ष की आयु से) के दौरान, हम तीन साल की कुल अवधि से अधिक समय तक एक साथ नहीं रह सकते थे। हमने मुश्किल से छह महीने एक साथ बिताए होंगे। उन अवधियों और अपनी युवा विवाहिता के प्रति अपनी कामुक भावनाओं के बारे में उन्होंने लिखा, “स्कूल में भी मैं उसके बारे में सोचता था और रात होने का विचार और हमारी बाद की मुलाकात मुझे हमेशा सताती थी।”
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गांधी ने अपनी पुस्तक ‘यरवदा मंदिर’ में भारतीयों को जीवन में 11 कृत्यों का पालन करने के लिए कहा है। वो 11 कृत्य निम्न प्रकार से हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (आत्म-अनुशासन), आसनग्रह (अपरिग्रह), शरिरश्रम (रोटी श्रम), अश्वदा (तालु पर नियंत्रण), सर्वत्र भयवर्जन (निडरता), सर्व धर्म सामंत (सभी धर्मों की समानता), स्वदेशी (स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करें), स्पर्शभावन (अस्पृश्यता दूर करें)। इनमें ब्रह्मचर्य सबसे विवादास्पद है। इस ब्रह्मचर्य का प्रयोग उन्होंने कई महिलाओं के साथ किया।
यही नहीं ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग के लिए क्या-क्या तरीके अमल में लाए गए उनको बताते हुए भारतीय मूल के अमेरिकी लेखक वेद मेहता की किताब Mahatma Gandhi and his Apostles में सबकुछ बताया गया है। वेद मेहता ने अपनी किताब की पृष्ठ संख्या 211 पर लिखा, “69 साल के महात्मा गांधी, 24 साल की सुशीला नैयर के साथ नग्न अवस्था में स्नान किया करते थे। इसी प्रयोग की वजह से सन् 1938 में उनके सेवाग्राम आश्रम में बगावत हो गयी थी। इस पर सफाई देते हुए गांधी ने एक गुप्त पत्र लिखकर कहा था कि जब मैं नहा रहा होता हूं उसी समय सुशीला को भी नहाने देता हूं। नहाते समय मैं अपने शरीर को उसकी साड़ी से ढक लेता हूं। सुशीला हमाम (जिसमें गांधी नहाते थे) के पीछे नहाती है जब वह नहा रही होती है तो उस समय मैं अपनी आंखें दूर से बंद कर लेता हूं। मैं आवाज से बस यह अनुमान लगा पाता हूं कि वो साबुन का इस्तेमाल कर रही है।”
इन तथ्यों की पुष्टि स्वयं गांधी भी करते हैं
इस बात पर असहमति हो सकती है कि यह तो वेद मेहता ने लिखा है पर इसकी पुष्टि स्वयं गांधी करते थे। अगर कोई संशय है तो लोगों को गांधी की उन बातों को पढ़ना चाहिए जिसमें उन्होंने स्वयं स्वीकार किया था कि सुशीला उनके साथ स्नान करती थीं।
यह ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग यहीं तक सीमित नहीं हैं। इसकी श्रृंखला में अगला नाम है आभा गांधी का। आभा, महात्मा गांधी के भतीजे के बेटे कनूलाल गांधी की पत्नी थीं अर्थात वो करीबी रिश्ते से उनकी बहु थीं। आभा ने स्वयं इस बात का उल्लेख करते हुए लेखक वेद मेहता को बताया था कि जब वो मात्र 16 वर्ष की थीं तो उन्हें महात्मा गांधी के साथ सोने के आदेश दिए गए थे।
कम आयु की आभा को उस समय जितनी समझ थी उसके अनुसार उन्हें यह लगा था कि चूंकि महात्मा गांधी को ठिठुरन लग रही थी इसलिए उन्हें गर्माहट प्रदान करने के लिए उनके साथ सोने के आदेश दिए थे। लेखक वेद मेहता के सवालों के जवाब में आभा ने एक-एक बात बतायी थी। वेद मेहता का प्रश्न था कि, “क्या आप उस समय कपड़े पहने रहती थीं?” इस पर आभा का जवाब था कि “वह मुझसे कपड़े उतार देने के लिए ज़रूर कहते थे लेकिन जहां तक मुझे याद है कि मैं पेटिकोट और चोली पहने रहती थी।” वेद मेहता पूछते हैं कि “तब गांधी जी क्या पहने रहते थे?” इस पर आभा बेन का जवाब था कि “मुझे याद नहीं कि वह कोई कपड़ा पहने रहते थे या नहीं उसके बारे में मुझे सोचना अच्छा नहीं लगता।” इसका उल्लेख Mahatma Gandhi and his Apostles की पृष्ठ संख्या 211 पर किया गया है।
इसका तथ्य भी आधारभूत है। स्वयं महात्मा गांधी ने अपने एक विश्वस्त मुन्नालाल शाह को लिखे पत्र में इसका उल्लेख किया था कि कैसे आभा गांधी ने बाद में उनके साथ सोने के लिए इनकार कर दिया था। यह पत्र 6 मार्च 1945 को लिखा गया था और संपूर्ण गांधी वांग्मय में प्रकाशित भी है। इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाने से पूर्व कोई भी वह पत्र इसके माध्यम से पढ सकता है।
इस ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग की अगली पात्र बहुत नामी समाजवादी नेता रहे, उनकी पत्नी हैं। जी हां, बात हो रही है जयप्रकाश नारायण की जिन्हें जेपी के नाम से भी जाना जाता था। इन्हीं जेपी की पत्नी प्रभावती देवी इस ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग की एक पात्र थीं। यह महात्मा गांधी का ही असर था जो प्रभावती देवी ने अपनी शादी के तत्काल बाद ब्रह्मचर्य अपना लिया था।
परिणामस्वरूप जयप्रकाश नारायण को भी इस निर्णय के समक्ष झुकना पड़ा पर जेपी ने इस बात के लिए कभी महात्मा गांधी को माफ़ भी नहीं किया। उन्हें बच्चों से लगाव था पर प्रभावती देवी ने ब्रह्मचर्य अपना लिया था इस वजह से जेपी कभी पिता नहीं बन पाए। अपने और प्रभावती देवी के संबंध के बारे में बताते हुए मुन्नालाल शाह को 6 मार्च 1945 को लिखे पत्र में महात्मा गांधी ने कहा था कि “प्रभावती अनेक बार मुझे गर्मी पहुंचाने के लिए मेरे साथ सोई है। जब वो थर-थर कांपती हुई मेरे लिए जमीन पर पड़ी होती थी तो मैं उसे अपने में समेट लेता था। यह पुरानी-बहुत पुरानी बात है।” इस बात का उल्लेख संपूर्ण गांधी वांग्मय में खंड 79, पृष्ठ संख्या 229 में किया गया है।
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वह महिला जो ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग की पात्र बनीं
यह कहानी यहीं नहीं थमती, ऐसी अनेक पात्र हैं जो ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग की पात्र बनीं। वहीं ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग के ऐसे विवादित प्रसंगों पर जब सवाल उठे तो स्वयं महात्मा गांधी ने ब्रह्मचर्य की अपनी परिभाषा के बारे में बताया। ब्रह्मचर्य की यह परिभाषा महात्मा गांधी ने राजनकुमार अमृतकौर को बताते हुआ कहा था कि जो मनुष्य कामवासना से हमेशा दूर हो, जो सदा ईश्वर की भक्ति करते हुए, सुंदर से सुंदर नग्न स्त्री के साथ नग्न अवस्था में लेटे और उसके बाद भी उसे रत्ती भर भी यौन उत्तेजना न हो उसे ब्रह्मचारी कहते हैं।” इस परिभाषा का उल्लेख महात्मा गांधी पूर्णाहुति खंड 2 (प्यारेलाल) पेज नंबर 315 में किया गया है।
न जाने यह कौन सा ब्रह्मचर्य था जिसका पालन, जिसका प्रयोग मोहनदास करमचंद गांधी अपने जीवित रहते हुए कर रहे थे। अगर कोई ब्रह्मचारी है तो उसे नग्न स्त्री के साथ नग्न अवस्था में लेटना ही क्यों है? यह परिभाषा भी महात्मा गांधी के जीवन के विवादास्पद अध्याय की तरह विवादास्पद है क्योंकि आज अगर यह कहा जाए कि कोई ब्रह्मचर्य का पालन करने का मन बना चुका है या वो ब्रह्मचर्य जीवन आत्मसात कर रहा है तो उसका अर्थ होता है कि परमात्मा मे विचरना, सदा उसी का ध्यान करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है। लेकिन महात्मा गांधी का ब्रह्मचर्य के साथ प्रयोग एक अलग ही मोड़ पर था।
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