The Hindu: नाम से हिंदू, कर्म से गैर हिंदू और अर्थ से चीनी गुलाम

पूरी कथा यहां समझिए!

द हिन्दू

Source- TFIPOST

‘द हिंदू’ को पहले ज्ञान का सागर माना जाता था। बुद्धिजीवी वर्ग लोगों को इस समाचार पत्र को पढ़ने की सलाह देता था लेकिन धीरे-धीरे स्थिति बदली, हालात बदले और कभी लोगों का पसंदीदा रहा यह पेपर अपनी हिंदू विरोध और सीसीपी की भक्ति में खुद की लुटिया डुबो बैठा। ऐसे में अगर आप इसे अपने जीवन में आत्मसात करने के बारे में सोचते भी हैं तो विश्वास मानिए आपसे बड़ा मूर्ख संसार में कोई नहीं है। द हिन्दू उतना ही सनातनी और राष्ट्रभक्त है, जितना देशप्रेमी और निष्ठावान कन्हैया कुमार भारत के प्रति रहे हैं! इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे कभी देश के युवाओं की प्राथमिकता रहने वाला और देश के सभी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में उपयोग में लाया जाने वाला समाचार पत्र द हिन्दू की अब उतनी ही उपयोगिता है, जितनी राष्ट्रों में ग्रेट ब्रिटेन की, पत्रकारिता में एनडीटीवी की और राजनीति में CPI की।

कभी युवाओं के जीवन में द हिन्दू का वही कद था, जो वर्ष 2014 के पूर्व रवीश कुमार का और 90 के दशक में खान तिकड़ी का हुआ करता था। इसकी प्रतिबद्धता और इसके व्याकरण पर प्रश्न उठाना महापाप समान माना जाता था। इसीलिए हर प्रतिस्पर्धी परीक्षा के लिए यह सर्वप्रथम विकल्प माना जाता है और कुछ बुद्धिजीवियों के लिए यह आज भी ‘Das Kapital’ या ‘Bible’ से कम पवित्र नहीं है।

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द हिन्दू की उत्पत्ति कैसे हुई?

द हिन्दू एक साप्ताहिक पत्रिका के रूप में प्रकाशन हेतु वर्ष 1878 में आरंभ हुआ। यह दैनिक के रूप में वर्ष 1889 में आरंभ हुआ। यह भारत के शीर्ष दैनिक अंग्रेजी समाचार पत्रों में से एक है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण के 2014 के अनुसार, यह भारत में पढ़े जाने वाले अंग्रेजी समाचार पत्रों में तीसरे स्थान पर है। द हिन्दू मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पढ़ा जाता है और केरल एवं तमिलनाडु में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र है। वर्ष 2010 के आंकड़ों के अनुसार, इस उद्यम में 1,600 से अधिक लोगों को काम दिया गया है और इसकी वार्षिक आय $20 करोड़ से अधिक है। इसकी आय के मुख्य स्रोतों में अंशदान और विज्ञापन प्रमुख हैं। वर्ष 1995 में अपना ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध कराने वाला द हिन्दू प्रथम भारतीय समाचार पत्र है।

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि अभ्यर्थियों एवं युवाओं में पैठ बनाने वाला द हिन्दू धीरे धीरे ‘CCP के मुखपत्र’ के रूप में परिवर्तित हो गया?

लवपुरी या प्रयागराज एक दिन में बनकर तैयार नहीं हुआ था, परिश्रम लगता है, लगन लगती है। ऐसे ही द हिन्दू की लंका लगने में काफी परिश्रम लगा था, जिसके कारण एक ही थे- संपादक महोदय एन राम। इनकी कुंठा नेक्स्ट लेवल की थी- ‘मोदी सत्ता में आया, तो आया कैसे?’ पत्रकारिता जाए तेल लेने। हमें तो इन्हें नीचा दिखाना है और लग गए भाई साब फेक न्यूज फैलाने में और द हिन्दू में जो क्लास था, उसे नाले में फेंककर कचरे की सड़ांध पेश करने लगे। इन्हें देख एक ही प्रश्न मन में आता है कि जब ऐसे लोग साथ में हो तो शत्रुओं की क्या आवश्यकता?

विश्वास नहीं होता तो राफेल से लेकर भारत-चीन संघर्ष, बालाकोट, गलवान घाटी, कोविड कुछ भी उठाकर देख लीजिए। द हिन्दू भारत के लिए कम और शत्रुओं के लिए बैटिंग अधिक करता प्रतीत हुआ है। उदाहरण के लिए 2020 में द हिन्दू ने पूर्व सांसद थुपस्टान चेवांग के हवाले से कहा, पैनगोंग त्सो झील के छोर पर चीन ने भारतीय सीमा में प्रवेश करते हुए नयी पोजीशन पर कब्जा जमा लिया है। चेवांग के अनुसार उन्हें यह जानकारी लद्दाख में LAC के निकट रह रहे निवासियों से मिली है। उनके अनुसार बॉर्डर पर स्थिति बहुत खराब है। चीनी सैनिकों ने न केवल हमारे क्षेत्रों में घुसपैठ की है बल्कि फिंगर 2 और फिंगर 3 जैसे इलाकों पर कब्ज़ा जमाया हुआ है। यहां तक कि Hot Springs क्षेत्र को भी पूरी तरह से खाली नहीं कराया गया है। यह सभी जानकारी हमें स्थानीय लोगों से मिली है।”

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। द हिन्दू ने इस रिपोर्ट में यहां तक दावा किया कि भारतीय सैनिक जिन टेंट्स में रह रहे हैं वह बेहद दोयम दर्जे के हैं, जो जीरो तापमान नहीं बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन उनका झूठ ज्यादा देर नहीं टिक पाया। आर्मी अफसरों ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए इसे भ्रामक खबर बताया। पूर्व आर्मी अफसर लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने स्वयं ट्वीट करते हुए इस दावे को पूर्णतया गलत और भ्रामक बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उक्त क्षेत्र में दूर-दूर तक कोई नागरिक नहीं रहता। ऐसे में स्थानीय लोगों के हवाले से सूचना देने की बात पूर्णतया गलत है।

निष्पक्ष पत्रकारिता का ढोंग

यह तो कुछ भी नहीं है। वर्ष 2021 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को अस्तित्व में आए 100 वर्ष पूरे हो गए। तो इसमें खास बात क्या है? इसमें खास बात है भारत के एक अखबार का चीनी प्रेम, जो न सिर्फ खुलकर जगजाहिर हुआ, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि एक व्यक्ति का विरोध करने के लिए कुछ लोग देश के शत्रुओं की किसी भी प्रकार से सेवा करने के लिए तैयार हो जाएंगे। पिछले वर्ष द हिन्दू में कम्युनिस्ट पार्टी के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर एक पूरे पेज का विज्ञापन सामने आया था।

कमाल की बात तो यह थी कि द हिन्दू के इसी विज्ञापन में भारत में स्थित चीनी राजदूत का संदेश भी लिखा हुआ था, जहां वो कहते हैं कि कैसे चीन के कारण आज विश्व प्रगति के पथ पर अग्रसर है और क्यों विश्व को चीन का आभारी होना चाहिए। वर्ष 2020 में इसी समाचार पत्र द हिन्दू ने चीन के नेशनल डे यानी एक अक्टूबर के अवसर पर एक लंबा चौड़ा विज्ञापन निकाला था, जहां पर चीन की भूरी भूरी प्रशंसा की गई थी। अगर चीन से इतना ही प्रेम है तो लिख लो छाती पर, आई लव जिनपिंग। ये निष्पक्ष पत्रकारिता का ढोंग अब न झेला जाएगा!

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