अज़रबैजान, पोप कमेटी और SCO विश्व में भारत का बढ़ता कद दिखाता है

इसको विस्तार से समझना बहुत आवश्यक है!

अज़रबैजान भारत

अज़रबैजान ने भारत का किया स्वागत: कभी-कभी आपको अपना आधार स्थापित करने के लिए किसी तुष्टीकरण, किसी सेवा सुश्रुषा की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि आपकी जीवटता, आपका धैर्य एवं सबसे महत्वपूर्ण आपका स्पष्ट दृष्टिकोण आपके भाग्य को बनाने के लिए पर्याप्त है। आज भारत को अपने निर्णयों हेतु किसी वैश्विक मान्यता की आवश्यकता नहीं है अपितु वैश्विक देशों को भारत की मान्यता की आवश्यकता है, यह अपने आप में भारत की शक्ति का परिचायक है।

अज़रबैजान ने भारत का स्वागत किया

इसका हाल ही में प्रमाण देखने को मिला, जब अज़रबैजान और आर्मेनिया के संघर्ष में आश्चर्यजनक रूप से अज़रबैजान ने भारत के कथित शांतिवार्ता का स्वागत किया और कहा कि यदि भारत ऐसा कोई कदम उठाए तो वह निस्संदेह स्वागत करेगा।

अज़रबैजान ने हाल ही में बताया कि वह आर्मेनिया के साथ बातचीत के लिए तैयार है, यदि भारत इस क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए कुछ प्रस्ताव करता है, तो वह ऐसे किसी पहल का स्वागत करेगा। अज़रबैजान ने दोनों कट्टर प्रतिद्वंद्वियों के बीच संघर्ष विराम समझौता होने के कुछ घंटों के बाद यह टिप्पणी की है।

अज़रबैजान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता लेयला अब्दुल्लायेवा ने पीटीआई के साथ एक वीडियो साक्षात्कार में कहा, “हम बातचीत के लिए तैयार हैं और हम उन सभी पहलों का स्वागत करेंगे जो (दोनों पक्षों के बीच) संबंधों को सामान्य बनाने के लिए तथा क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता के इरादे से की जाती हैं।”

अब्दुल्लायेवा ने आगे ये भी कहा कि “अज़रबैजान का भारत के साथ आर्थिक, मानवीय, सांस्कृतिक और पर्यटन सहित विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा सहयोग और अच्छे द्विपक्षीय संबंध हैं। भारत के साथ हम संयुक्त राष्ट्र, गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों और संगठनों के भीतर भी सहयोग कर रहे हैं। अगर भारतीय पक्ष का मदद करने का इरादा है या वह कोई प्रस्ताव करता है, तो जैसा मैंने कहा, अज़रबैजान इस तरह की किसी पहल के लिए हमेशा तैयार है।”

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने मंगलवार को कहा था कि भारत का मानना है कि द्विपक्षीय विवादों का कूटनीति और बातचीत के जरिए हल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमारा मानना है कि द्विपक्षीय विवादों का समाधान कूटनीति और बातचीत के जरिए किया जाना चाहिए। किसी भी टकराव का कोई सैन्य हल नहीं हो सकता। हम दोनों पक्षों को स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत की खातिर प्रोत्साहित करते हैं।”

यह निस्संदेह रूप से बढ़ते वैश्विक शौर्य और कूटनीतिक पराक्रम को परिलक्षित करता है। परंतु यही एक उदाहरण नहीं है जिसके लिए भारत ने अपनी कूटनीति का लोहा मनवाया। रूस एवं यूक्रेन के बीच तनातनी ने जो हिंसक रूप धारण किया, उससे अब कोई भी अनभिज्ञ नहीं होगा।

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वैश्विक स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छा गए

परंतु मेक्सिको के राष्ट्राध्यक्ष के एक बयान ने ये सिद्ध किया कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का वास्तविक कद क्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कद दुनिया में बढ़ता ही चला जा रहा है। पीएम मोदी अब सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि एक वैश्विक नेता बन चुके हैं। अब विश्व शांति दूत तक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सामने आने लगा है। दरअसल, मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर चाहते हैं कि वैश्विक शांति के लिए एक आयोग का गठन किया जाए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसका हिस्सा बनें। मैक्सिको के राष्ट्रपति इस संबंध में एक लिखित प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पेश करने की योजना बना रहे हैं। प्रस्ताव के अनुसार विश्व में शांति लाने के लिए पांच साल की अवधि के लिए वो आयोग बनाने की मांग करेंगे। उन्होंने इस आयोग के लिए दुनिया के तीन नेताओं के नाम प्रस्तावित किए हैं जिनके नेतृत्व में आयोग बनाने की मांग की जाएगी। इन नेताओं की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस शामिल हैं।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैक्सिकन राष्ट्रपति ओब्रेडोर ने कहा कि आयोग का उद्देश्य दुनिया भर में युद्धों को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पेश करना होगा। कमीशन का लक्ष्य होगा कि वह दुनियाभर में युद्ध को रोकने के लिए जो प्रस्ताव पेश करे वह अमल में आए और कम से कम 5 वर्ष के लिए एक शांति समझौता हो। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि मीडिया इस बारे में जानकारी फैलाने में हमारी मदद करेगा। ओब्रडोर ने कहा कि यह स्पष्ट है कि युद्धों में निर्दोष लोगों की जान जा रही है और इसके लिए सभी को शांति कायम करने के प्रयास करने जरूरी है।

सोचिए, यहाँ बड़े से बड़े नेता का नाम लिया जा सकता था, स्वयं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और शिनज़ो आबे (जीवित रहने के दौरान) जैसे नेता भी हो सकते थे। परंतु नरेंद्र मोदी ही क्यों? इसका प्रमाण उनके सरकार के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के बयान में स्पष्ट झलकता है। लातों के भूत बातों से नहीं मानते। परंतु ये बात कुछ लोगों को हजम नहीं होती और बार-बार उन्हें स्मरण कराना पड़ता है। इस बात को सार्वजनिक करते हुए विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि रूस के साथ उसके जो भी संबंध है, उससे किसी को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए और उसके लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सम्पूर्ण पश्चिमी जगत को खरी खोटी भी सुनाई है। विदेश मंत्रालय ने मीडिया को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया, “देखिए, हमारे निर्णय, चाहे तेल को लेकर हों या फिर किसी अन्य वस्तु को लेकर, जैसे ऊर्जा, सुरक्षा आवश्यकता इत्यादि, वो सभी हमारे दृष्टिकोण पर आधारित होगा।”

मंत्रालय ने अप्रत्यक्ष रूप से पाश्चात्य जगत को भारत की रूस से निकटता पर आलोचना के लिए आड़े हाथों लेते हुए कहा, “हम जो भी कुछ कर रहे हैं, अपनी इच्छा अनुसार कर रहे हैं और हमें नहीं लगता है कि हमें इसके लिए किसी की आज्ञा की आवश्यकता है या हम पर किसी प्रकार के दबाव का आभास है।” ज्ञात हो कि ये प्रथम ऐसा अवसर नहीं है जब विदेश मंत्रालय ने पाश्चात्य जगत को उसके दोहरे मापदंडों के लिए खरी खोटी सुनाई है। वन चाइना पॉलिसी पर भारत के विचारों के लिए भी भारत ने स्पष्ट किया कि उसको जो कहना था, वो कह चुका है और बार-बार स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है।

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SCO सम्मेलन में मोदी-मोदी

ये तो कुछ भी नहीं है। अभी हाल ही में SCO के सम्मेलन में भारत ने अपने वैश्विक प्रभुत्व को जो स्थापित किया, उससे सिद्ध होता है कि भारत ने वैश्विक स्तर पर अपने प्रभुत्व का किस स्तर पर लोहा मनवाया है।

उदाहरण के तौर पर

SCO सम्मेलन में मोदी ने पुतिन को धोया

यूक्रेन युद्ध पर मोदी ने पुतिन को सुनाई खरी-खरी जैसी अनेक ख़बरें, कई तड़कती-भड़कती हैडलाइन्स, कई पोस्टर्स, कई पोस्ट, कई ट्वीट, आप सोशल मीडिया पर देख रहे होंगे और वैश्विक मीडिया, विशेषकर अमेरिकन मीडिया भी इसी तरह की ख़बरें चला रहा है, परंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है।

कूटनीति दो और दो के जोड़ जितना सरल नहीं, ये बात नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पुतिन हमसे बेहतर जानते हैं, इसीलिए कूटनीति की चालें जितनी कैमरों के आगे चली जाती हैं- इससे कहीं ज्यादा कैमरों के पीछे चलती हैं। अब पीएम मोदी ने जो कहा और रूस ने जो उत्तर दिया वो कोई भारत और रूस के बीच में खटास पैदा करने वाला नहीं था, क्योंकि न ही भारत ने रूस को सुनाया था, न ही भारत ने यूक्रेन के मुद्दे पर अपना स्टैंड बदला है, ना ही सार्वजनिक तौर पर पीएम मोदी ने पुतिन को अपमानित किया है, ऐसा कुछ नहीं हुआ है बल्कि भारत ने SCO के मंच पर वही बोला जो पीएम मोदी पुतिन से फोन पर बोल चुके हैं। पुतिन ने भी वहां वही बोला जोकि भारत सुनना चाहता है, विश्व की दो प्रभावशाली और मैत्रीपूर्ण शक्तियों के बीच में इसी तरह से कूटनीति होती है। अब इसे अगर वाशिंगटन पोस्ट, न्यू यॉर्क टाइम्स, सीएनएन अपने एजेंडे के तहत रूस के विरुद्ध चलाना चाहते हैं तो चला सकते हैं।

अब वहीं पर भारत ने SCO के माध्यम से एक ऐसा अस्त्र चलाया कि फ्री मार्केट कथित पुरोधा तिलमिला कर रह गए, वो न घर के रहे, न घाट के।

वो कैसे? असल में विश्वभर में रूस-यूक्रेन युद्ध के पश्चात् परिस्थितियां बदल गयी हैं, एक तरफ जहां पश्चिमी देशों ने रूस पर भर-भर के प्रतिबंध लगाए हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अन्य देशों को रूस से व्यापार करने के लिए मना भी किया। अब देखिए इनका पाखंड, मूलतः ये पश्चिमी देश जिस भी देश के साथ व्यापार समझौता करते हैं वहां यह मुक्त व्यापार यानी फ़्री ट्रेड के झंडे को सबसे पहले आगे करते हैं और तो और इन सो कॉल्ड फ़्री ट्रेड प्रमोटर देशों ने तो फ़्री ट्रेड एवं ओपन मार्केट को बढ़ावा देने के लिए पूरा का पूरा एक संगठन ही बना दिया है जिसे WTO के नाम से जाना जाता है।

अब यह बात तो सबको पता है कि यह विश्व व्यापार संगठन इन देशों के लिए मात्र कठपुतली है इसके अलावा कुछ भी नहीं है। लेकिन मानना पड़ेगा कि ये देश इतनी चालाकी से अपनी चाल चलते हैं कि बेचारे अल्पविकसित एवं विकासशील देश इनके झांसे में आ जाते हैं, तत्पश्चात् अपनी घरेलू नीतियों का निर्माण इस प्रकार से कर लेते हैं कि उनका स्वयं का ही नुकसान हो जाता है। किंतु मुक्त व्यापार एवं खुले बाजार की बात करने वाले इन देशों की भारत ने इस बार लंका ही लगा दी है।

इसी क्रम में उज़बेकिस्तान में चल रहे शंघाई सहयोग संगठन सम्ममेलन में जब मीडिया द्वारा भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा से रूसी तेल को ख़रीदने के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने जो जवाब दिया उसे सुनकर पश्चिमी देशों के कान से खून निकल आए होंगे। क्वात्रा ने पश्चिमी देशों की मुक्त व्यापार और खुले बाजार की नीतियों का ज़िक्र कर उन्हीं को चुप करा दिया।

क्वात्रा ने मीडिया को जवाब देते हुए कहा कि तेल को ख़रीदने के क्रम में भारत सरकार कोई निर्णय नहीं लेती है। यह तेल कंपनियों के ऊपर निर्भर करता है कि वो कहां से तेल ख़रीद रही हैं और कहां से नहीं। यह वही बात थी जिसे उपयोग कर पश्चिमी देश अपने हितों की पूर्ति के लिए अन्य देशों के समक्ष किया करते थे। ओपन मार्केट का झंडा उठाने वाले ये पश्चिमी देश आज स्वयं ही अपने देशों में कंपनियों को क्रय-विक्रय के संबंध में निर्देशित कर रहे हैं।

अपने ही हितों को हानि पहुंचता देख ये पश्चिमी देश अपनी ही व्यवस्था में फंस कर रह गए हैं, ऊपर से एससीओ में भारत के इस बयान से पश्चिमी देशों का पाखंड सबके समक्ष आ गया है। अगर हम खुले बाज़ार एवं मुक्त व्यापार का तात्पर्य समझें तो ऐसी व्यवस्था में सरकार रेग्युलेटर न होकर फ़ैसिलिटेटर होती है अर्थात् सरकार व्यापार को सुगम बनाती है न कि उनको नियंत्रण करती है। ऐसे में अब भारत वो पहले वाला भारत नहीं भारत जो गुट निरपेक्षता के नाम पर दुनिया भर में नौटंकी करता था, अब भारत को चाहिए फुल सम्मान।

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