ये नया भारत है, पंगा लोगे तो वैश्विक स्तर पर ‘निर्वस्त्र’ कर दिए जाओगे। वर्तमान परिदृश्य में देखें तो भारतीय कूटनीति वैश्विक स्तर पर सबसे बेहतरीन और बेजोड़ मानी जा रही है और इसकी वजह हैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। यह वो नाम है जिसकी गूंज आज उनकी गैरमौजूदगी में भी दुनिया के कथित शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्षों के मुख से निकलती है। वहीं, जो लोग भारत को सदैव नीचा दिखाकर त्वरित लाभ लेने का प्रयास करते थे, उन्हें भी भारत की सख्ती के समक्ष अपने घुटने टेकने पड़े हैं। इसका सबसे नवीनतम और बड़ा उदाहरण तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन हैं, जो सदैव ही कश्मीर को लेकर जहर उगला करते थे परंतु ऐसा प्रतीत होने लगा है कि भारत की सख्ती के बाद उनके भी सुर बदलने लगे हैं।
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कश्मीर पर बदल गए सुर
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी हैसियत अपना फटा सिलने की नहीं होती लेकिन वे सदैव दूसरे के फटे में पैर डालने की कोशिश करते हैं और इसका परिणाम यह होता है कि उनकी सार्वजनिक बेइज्जती हो जाती है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन भी कुछ ऐसे ही हैं, जिनका पाकिस्तान प्रेम खत्म नहीं होता। एक बार फिर एर्दोगन ने जम्मू-कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ में उठा दिया। हालांकि, इस बार तैयप साहब के सुर कुछ बदले-बदले नजर आए हैं।
दरअसल, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए एक बार फिर कश्मीर का राग अलापा। वैसे तो वो कश्मीर को लेकर हमेशा से ही पाकिस्तान के पक्ष में बयान देते आए हैं परंतु इस बार कुछ अलग हुआ और वह यह कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे को लेकर किसी का पक्ष लेने की जगह केवल शांति की ही बातें कही, जो पाकिस्तान के लिए किसी झटके से कम नहीं है। एर्दोगन ने कहा, “भारत और पाकिस्तान 75 वर्ष पहले अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता स्थापित करने के बाद भी अब तक एक-दूसरे के बीच शांति और एकजुटता कायम नहीं कर पाए हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। हम कश्मीर में स्थायी शांति और समृद्धि कायम होने की आशा और कामना करते हैं।”
Erdogan, UNGA & Kashmir: Key quotes
2019: residents of Jammu and Kashmir are "virtually under blockade"
2020: Kashmir a "burning issue". Removal of art 370, "complicates the issues"
2021: backs resolving Kashmir via "United Nations resolutions"
2022: "Permanent peace in Kashmir" https://t.co/JqTpwjT8xn— Sidhant Sibal (@sidhant) September 20, 2022
क्या भारत ने तुर्की की ‘कमजोर नस’ दबा दी है?
कश्मीर को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा की गई इस टिप्पणी से माना जा रहा है कि वो अब लीग से हटकर कश्मीर पर एक नयी रणनीति को अपना सकते हैं। परंतु अब ऐसे में यहां कई प्रश्न भी उठते हैं कि एर्दोगन को इतनी अक्ल आई, तो आखिर आई कैसे? ऐसा क्या हुआ कि कश्मीर पर हमेशा आक्रामक रहने वाले एर्दोगन के सुर अचानक से बदल गए और इसमें इतनी नरमी देखने को मिली? इसके पीछे का कारण है भारत की वो कुशल रणनीति जिसके कारण ऐसा लगता है कि हम तुर्की को घुटने पर लाने में कामयाब रहे। तुर्की को उसी के अंदाज में जवाब देने के लिए भारत ने उसकी कमजोर नस को दबाना शुरू कर दिया है, जिसके कारण उसकी अक्ल ठिकाने आई है।
दरअसल, भारत अब उस मुद्दे को उठा रहा है जिससे तुर्की हमेशा से ही जवाब देने से बचता आया है और वो है साइप्रस का मुद्दा। बुधवार को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लू के साथ एक बैठक की थी। बैठक के पश्चात जयशंकर ने ट्वीट कर बताया कि इस बैठक में जिन मुद्दों को लेकर बातचीत हुई, उसमें साइप्रस का मुद्दा भी शामिल रहा। हमने साइप्रस मुद्दे पर समाधान को लेकर जानकारी ली। साइप्रस और तुर्की के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1974 में तब हुई थी, जब तुर्की ने हमला करके उसके उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया था। भारत हमेशा से ही संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के बारे में बात करता आया है। भारत द्वारा इस कमजोर नस को दबाए जाने के कारण ही लगता है कि तुर्की को समझ आने लगा है कि भारत से पंगा लेना उसे बहुत भारी पड़ेगा।
इससे पूर्व हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद SCO समिट हुआ था। इस दौरान समरकंद में एर्दोगन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का भी अनुरोध किया था। दोनों देशों के बीच संबंधों को देखते हुए तुर्की की तरफ से द्विपक्षीय मुलाकात का प्रस्ताव वाकई चौंकाने वाला था। तुर्की के इन हालिया कदमों से तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि वह भारत के प्रति अपना रुख बदलने पर विवश हो गया है।
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भारत विरोधी रहा है तुर्की का रूख
वैसे इससे पहले देखें तो मुख्य तौर पर कश्मीर को लेकर तो तुर्की का रूख भारत विरोधी ही रहा है। वर्ष 2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बड़ा निर्णय लिया था तो पाकिस्तान को आए अटैक का असर रेसेप तैयप एर्दोगन पर भी हुआ था। भारत ने सुरक्षा की दृष्टि से कश्मीर में प्रतिबंध लगाए तो वर्ष 2019 में एर्दोगन ने कश्मीरी लोगों को बंद करने का मुद्दा उठाया और भारत की आलोचना की थी। इसके बाद वर्ष 2020 में उन्होंने कश्मीर को एक “ज्वलंत मुद्दा” बताया और यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 के हटने से आग और भड़क गई है।
वहीं, पिछले वर्ष 2021 में जब कोरोना काल के समय पूरी दुनिया परेशान थी तो उस दौरान भी एर्दोगन ने प्रोपेगेंडा चलाया कि भाई कश्मीर का मुद्दा अब संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिए हल कराओ। हालांकि, वो बात अलग थी कि तुर्की के राष्ट्रपति ने जब-जब भी कश्मीर मुद्दे को उठाया तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी बेइज्जती ही हुई। बावजूद इसके तुर्की की इन हरकतों से कम से कम पाकिस्तान के मन में तो यह आत्मविश्वास आ जाता था कि उसके साथ कोई देश खड़ा है। लेकिन भारत की वैश्विक कूटनीति और तुर्की के खिलाफ मोर्चाबंदी का परिणाम यह है कि एर्दोगन ने सीधे तौर पर यह कह दिया है पाकिस्तान और भारत अपने आप ये मामला हल करे। वर्ष-दर-वर्ष एर्दोगन के बयानों के पैटर्न का यदि विश्लेषण करें तो अगले वर्ष कहीं एर्दोगन यह भी कह सकते हैं कि कश्मीर भारत का मुद्दा है और पाकिस्तान अपनी हद में रहें और अगर उनकी ओर से ऐसा बयान आता है तो यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी।
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