‘संयुक्त राष्ट्र संघ’, नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह सभी देशों का एक अंतरराष्ट्रीय समूह है। इसका मुख्य उद्देश्य युद्धों को रोकना और विश्व में शांति, समृद्धि, एकता और मानव विकास के संदेश को बढ़ावा देना है। परंतु वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र की हालत कुछ ऐसी नजर आती है कि संयुक्त राष्ट्र अब लीग ऑफ नेशंस 2.0 बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। विश्व में शांति कायम करना तो दूर यह वैश्विक संगठन पश्चिमी देशों के हाथों की कठपुतली बन चुका है और उन्हीं के इशारों पर काम करता आ रहा है। खासतौर पर यूएन की डोर अमेरिका के हाथों में है और यह एक बार फिर सिद्ध होता हुआ नजर आ रहा है।
दरअसल, सिंतबर में ही संयुक्त राष्ट्र 77 वां सत्र आयोजित करने जा रहा है। इस सत्र में विश्व के तमाम देशों के बड़े नेताओं के शामिल होने की संभावनाएं हैं। वहीं, यूक्रेन के विरुद्ध छेड़े गए युद्ध में रूस को रोकने से पूरी तरह नाकाम होने वाला अमेरिका नया पैंतरा चलता हुआ नजर आ रहा है। अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र के इस सत्र से रूस को दूर रखने के प्रयासों में लगा हुआ है। ध्यान देने वाली बात है कि संयुक्त राष्ट्र के इस सत्र में शामिल होने के लिए रूसी अधिकारियों का वीजा अमेरिका जारी नहीं कर रहा है।
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रूस ने लिखा है संयुक्त राष्ट्र को पत्र
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित है और संयुक्त राष्ट्र सत्र में शामिल होने वाले सभी लोगों को अमेरिका ही पहुंचना है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के नेतृत्व वाली एक टीम को संयुक्त राष्ट्र के इस सत्र का हिस्सा बनने के लिए तैयार बैठी। सत्र में शामिल होने के लिए रूस ने विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और उनके प्रतिनिधिमंडल को न्यूयॉर्क जाने की अनुमति देने के लिए अमेरिका से 56 वीजा मांगे हैं। परंतु अमेरिका चालाकी दिखाते हुए रूस के सत्र में शामिल न होने के लिए अड़ंगा डाल रहा है और इसलिए उसने रूसी प्रतिनिधिमंडल के एक भी सदस्य को अभी तक अमेरिका में प्रवेश का वीजा जारी नहीं किया है।
यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वैसिली नेबेंजिया ने अमेरिका के इस बर्ताव पर चिंता जताई। रूसी राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को एक पत्र लिखकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र का मेजबान देश अमेरिका कानूनी रूप से वीजा जारी करता है। 19 सितंबर से शुरू हो रही संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठकों में शामिल होने की अर्जी मॉस्को द्वारा अमेरिकी दूतावास को सौंपी जा चुकी है परंतु अब तक अमेरिका ने एक भी वीजा जारी नहीं किया है।
नेबेंजिया ने कहा, “यह और भी अधिक ‘चिंताजनक’ है क्योंकि पिछले कई महीनों से अमेरिका के प्राधिकारी आधिकारिक संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए सौंपे गए कई रूसी प्रतिनिधियों को प्रवेश वीजा देने से लगातार इनकार कर रहे हैं।” राजदूत ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव गुटेरेस से आग्रह किया कि वो अमेरिकी प्राधिकारियों पर दबाव बनाए कि वे सभी रूसी प्रतिनिधियों और पत्रकारों समेत उनके साथ आ रहे लोगों का वीजा जल्द जारी करें।
हालांकि, रूस द्वारा लगाए गए इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी मिशन के प्रवक्ता ने कहा कि एक मेजबान देश होने के तौर पर हम अपने दायित्वों को गंभीरता से लेते हैं। हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों का हिस्सा बनने के लिए रूसी प्रतिनिधियों को सैंकड़ों वीजा जारी किए जाते हैं। समय से वीजा जारी करने के लिए हम बार-बार संयुक्त राष्ट्र में रूसी मिशन को याद दिलाते हैं कि अमेरिका को जल्द से जल्द आवेदन भेजे जाने चाहिए। रूस ने अपने यहां हमारे दूतावास के विरुद्ध अवांछित कार्रवाई की, जिससे हमारे कर्मचारियों की संख्या और वीजा जारी करने की हमारी क्षमता प्रभावित हुई है।
संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी
गौर करने वाली बात है कि अमेरिका, रूसी प्रतिनिधिमंडल को वीजा जारी करने में हरसंभव रुकावट डालने का प्रयास कर रहा है। देखा जाए तो अमेरिका और रूस के बीच संबंधों में काफी तल्खी बनी हुई है। यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के बाद अमेरिका ने उसे पूरे विश्व में अलग थलग करने के लिए तमाम प्रयास किए और प्रतिबंधों के माध्यम से उसे घुटने पर लाने की कोशिश की परंतु उसके सारे तिकड़म बेअसर हो गए। यही कारण है कि अमेरिका अब चाहता है कि वह रूस को संयुक्त राष्ट्र के इस सत्र का हिस्सा बनने से रोके।
परंतु यहां सवाल उठता है कि अमेरिका की इस दादागिरी पर संयुक्त राष्ट्र कुछ क्यों नहीं कर रहा है? वास्तव में संयुक्त राष्ट्र इतना दुर्बल हो चुका है कि वह लीग ऑफ नेशंस 2.0 बनने की कगार पर पहुंच गया है। असल में संयुक्त राष्ट्र को इसका ही परिवर्तित रूप माना जाता है। आपको बता दें कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद विश्व में शांति स्थापित करने के लिए लीग ऑप नेशंस की स्थापना हुई थी। अंतरराष्ट्रीय विवादों को बातचीत के जरिए हल करने, हथियारों की होड़ में कमी लाने और दुनिया को बड़े युद्धों के संकट से बचाने के लिए लीग ऑफ नेशंस का गठन किया गया था लेकिन अपनी कार्यशैली और स्वरूप के कारण यह संगठन अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सका, जिसका परिणाम दूसरे विश्व युद्ध के तौर पर देखने को मिला। द्वितीय विश्व युद्ध को लीग ऑफ नेशंस की विफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अब कुछ ऐसी ही हालत संयुक्त राष्ट्र की भी हो गई है। जिस सिद्धांत के लिए इसकी स्थापना हुई थी अब वही धूमिल होता दिख रहा है और धीरे-धीरे यह संगठन अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहा है।
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