पहले अपना भला फिर जग का, भारत की विदेश नीति आज इसी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। रूस-यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध में भी भारत ने यही रणनीति अपनायी जिसका लाभ भी मिलता हुआ दिखा। युद्ध के दौरान अनौपचारिक रूप से ही पर रूस के साथ खड़े होकर भारत ने अपनी दोस्ती साबित कर दी और साथ ही पैदा हुई स्थितियों से लाभ भी उठाया। रूस का भरोसा अब भारत के लिए इतना बढ़ गया है कि वहां की कंपनियां अब व्यापार के लिए भारत को अपने पहले विकल्प के रूप में देखने लगी हैं।
रूस की सबसे बड़ी कंपनी भारत की ओर देख रही है
इस दिशा में एक कदम और बढ़ाते हुए अब रूस की सबसे बड़ी कोयला आपूर्तिकर्ता कंपनी भारत में अपना ऑफिस खोलने की इच्छुक हो रही है। रूस की साइबेरियन कोल एनर्जी कंपनी (SUEK) ने भारत को बड़ा ऑफर देते हुए यहां अपना दफ्तर खोलने की पेशकश की है। SUEK के सीईओ मैक्सिम बसोव ने कहा कि यूक्रेन के विरुद्ध छेड़े गए युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बीच भारत एक शीर्ष निर्यात गंतव्य के रूप में उभर रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि भारत में कंपनी का शिपमेंट, जो परंपरागत रूप से रूसी कोयले का एक छोटा आयातक रहा है, उसका आयात साल 2022 के पहले छह महीनों में बढ़कर वर्ष 2021 की तुलना में दोगुना हो गया और यह 1.25 मिलियन टन तक पहुंच गया हैं।
यहां यह जान लें कि SUEK कंपनी के सीईओ बसोव ने कुछ दिन पहले भारत का दौरा भी किया और इस दौरान उन्होंने भारत में ऑफिस खोलने को लेकर महत्वपूर्ण बातचीत की है। SUEK के सीईओ ने यह भी कहा कि उनकी कंपनी भारत के साथ अपने संबंध बदलने में रुचि रखती है। वर्तमान में कंपनी के द्वारा भारत से व्यापार के रास्ते में आने वाली समस्याओं को हल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले भारत रूसी कोयला आपूर्तिकर्ताओं के लिए प्राथमिकता वाले बाजारों में से एक नहीं हुआ करता था। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में सप्लाई करने में लागत काफी अधिक बढ़ जाती है। परंतु अब स्थिति बदल रही है। यूरोपीय संघ द्वारा रूस के विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूसी कंपनियों की भारतीय बाजारों में दिलचस्पी काफी बढ़ गयी है। कुछ ही महीनों के अंदर भारत में शिपमेंट में पिछले साल के मुकाबले 50% या उससे अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी है। पहले जहां भारत रूस से केवल 5-7 मिलियन टन प्रति वर्ष कोयले की आपूर्ति करता था, अब वह हर महीने लगभग 2 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति कर रहा है।
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इससे स्पष्ट हो जाता है कि रूस अब हर चीज के लिए भारत को प्राथमिकता की तरह देखता है। देखा जाए तो यदि रूस की यह सबसे बड़ी कोयला कंपनी अपनी रणनीति में सफल हो जाती है तो यह भारत के लिए भी काफी फायदे का सौदा साबित होने वाला है। रूस के कोयले की बात करें तो इसकी गुणवत्ता काफी बढ़िया होती है। यही कारण है पूरी दुनिया में इसकी काफी डिमांड होती है। चीन तक रूस से अच्छी क्वालिटी का कोयला खरीदता है, जबकि उसके पास स्वयं कोयला का विशाल भंडार मौजूद है।
SUEK दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कोयला कंपनी है। कंपनी के दावे के अनुसार वो जिस कोयले का उत्पादन करता है, वो काफी हाई क्वालिटी का होता है। उसके कोयले की गुणवत्ता को बेंचमार्क माना जाता है। यहां तक कि उसके कोयले का उपयोग जापान और यूरोप जैसे देश भी करते है, जहां पर्यावरण को लेकर काफी कठोर नियम हैं। अगर कुछ समस्याओं को सुलझा लिया जाए तो वो भारत में कोयले की आपूर्ति को सालाना 10 मिलियन टन तक भी बढ़ा सकता है।
रूसी कंपनी भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर इस कदर आतुर हैं कि वो अमेरिकी डॉलर को छोड़कर भुगतान प्रणाली के अन्य विकल्पों को भी अपनाने के लिए तैयार हैं। SUEK के सीईओ ने कहा कि हमारी कंपनी वर्तमान में अमेरिकी डॉलर में काम करती है, परंतु अन्य मुद्राओं में भुगतान भी हमारे लिए एक संभावना है, विशेषकर तब जब से यह रूसी कंपनियों के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए गए हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत और रूस डॉलर मुक्त होने और अपनी करेंसी में व्यापार की योजना पर तेजी से काम कर रही हैं।
अब क्योंकि SUEK रूस की इतनी बड़ी कंपनी है, इसके भारत आने से कई तरह के लाभ मिलेंगे। एक तो यह कि कोयला खनन की तकनीक में सुधार आएगा। क्योंकि SUEK बेहद ही अच्छी गुणवत्ता के कोयला का उत्पादन करती है, वो भारत आकर यहां अपना कार्यालय खोलेगी तो इससे उसकी तकनीक का भी भारत में हस्तांतरण होगा।
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जलवायु परिवर्तन पर ज्ञान देते रहे हैं पश्चिमी देश
वर्तमान समय में भी कोयला से बड़े स्तर पर बिजली का उत्पादन किया जाता है। आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले देश पर कोयले की कमी के कारण बड़ा बिजली संकट आ खड़ा हुआ था। माना जा रहा था कि कोयले की कमी के कारण देश के कई हिस्से अंधेरे में डूब सकते हैं हालांकि ऐसा कुछ हुआ तो नहीं परंतु यह समस्या दोबारा कभी भी आ खड़ी हो सकती है। क्योंकि गर्मियों में बिजली की मांग काफी बढ़ जाती है और कोयले की कमी के कारण बिजली संकट आ जाता है। ऐसे में अगर यह बड़ी रूसी कंपनी भारत आएगी तो सप्लाई चेन में दिक्कत नहीं होगी और भारत में कोयले की कमी भी नहीं होगी।
इसके अलावा एक और बिंदु पर ध्यान देना होगा कि इससे भारत में कोयले का उपयोग बढ़ जाएगा जो पर्यावरण के लिहाज से शायद सही न रहे। परंतु ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि अमेरिका समेत तमाम देश जलवायु परिवर्तन पर केवल ज्ञान ही देते रहते हैं। अमेरिका पूरी दुनिया को जीवाश्म ईंधन से चालित वाहनों को छोड़कर इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग अधिक करने की नसीहत भी दी जाती है। परंतु यह पश्चिम देशों का दोगलापन नहीं तो और क्या है जो दुनिया को पर्यावरण के मुद्दे पर ज्ञान बांटते रहते हैं, वो स्वयं ही इससे गंभीरता से नहीं लेते। विकसित देश जो जाहिर तौर पर विकास के नाम पर दुनिया में प्रदूषण फैलाने और जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हैं। इसलिए ही पेरिस समझौते के तहत इन विकसित देशों के ऊपर दायित्व था कि वो विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर का भुगतान करेंगे लेकिन यह पश्चिमी देशों का गैर जिम्मेदाराना रवैया ही है कि वो अपने इस वादे को पूरा नहीं कर रहे। जब ये अमीर देश अपने वादे नहीं निभा रहे हैं तो भारत को भी अपने हित को सर्वोपरि रखते हुए वो करना चाहिए जो उसके लिए सबसे बेहतर हो।
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