“पहले स्वयं में सुधार करो”, भारत को धमकाने की कोशिश कर रहा था WTO, धो दिया

WTO को भी लगता है भारत से सुनने की आदत हो गई है!

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भारत एक ऐसा देश है जो समय आने पर हर किसी की सहायता करने के लिए हमेशा ही सबसे आगे खड़ा रहता हैं। जब दुनिया को कोरोना जैसी भयंकर महामारी ने घेरा, तो कथित तौर पर विकसित देश तो स्वार्थी होते हुए तमाम चीजों की जमाखोरी करने में जुट गए। वहीं इस दौरान भारत ही वो देश था, जो अपने यहां की स्थिति संभालने के साथ अन्य देशों की मदद भी करने लग गया। कोरोना के दौरान भारत ने दवाईयों से लेकर ऑक्सीजन और वैक्सीन तक कई चीजें जरूरतमंद देशों को मुहैया कराई। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण खाद्यान्न संकट गहराया, तो भारत ने दुनिया का पेट भरने का काम किया।

परंतु मदद भी तब तक ही की जाती है, जब तक उसके कारण आपके लिए समस्या खड़ी न हो। इसी को ध्यान में रखकर भारत ने कुछ ऐसे कदम उठाए, जिससे स्वयं को विश्व का ठेकेदार मानने वाले WTO को समस्या होने लगी। WTO ने फिर वही किया जो उसकी हमेशा से ही आदत रही है, वह यह कि उसने एक बार फिर इस मामले को लेकर भारत को ज्ञान बांटने लगा। परंतु भारत तो भारत है। नए भारत को आदत नहीं किसी की भी सुनने की। यही कारण है कि भारत ने एक बार फिर WTO को करारा जवाब दिया।

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निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर जताई चिंता

दरअसल, देश की खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत ने गेहूं के निर्यात पर पहले ही रोक लगा दी थी। इस रोक के बाद भी भारत ने जरूरतमंद देशों को अनाज की सहायता प्रदान की। वहीं इसके बाद इसी माह सरकार द्वारा टुकड़ा चावल के निर्यात पर भी रोक लगाने का बड़ा निर्णय लिया गया। हाल ही में WTO के कुछ सदस्य देशों भारत द्वारा चावल और गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर चिंता जताई गई थीं। जिसके पश्चात भारत ने उनके आगे अपना पक्ष करते हुए एक बैठक में गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने के अपने फैसले को सही बताया है।

WTO की बैठक बीते दिनों जिनेवा में हुई थी, जिसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ ने इस निर्णय पर प्रश्न उठाते हुए कहा है कि वैश्विक बाजारों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत ने अपने इस फैसले का बचाव करते हुए यह बात स्पष्ट की है- “टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध घरेलू बाजार को देखते हुए लगाया गया था। चावल का सबसे अधिक उपयोग पोल्ट्री फीड में किया जाता है। निर्यात पर पाबंदी इसलिए लगाई गई क्योंकि अभी हाल के महीनों में अनाज के निर्यात की दर मे बढ़ोत्तरी हुई थी। इस वजह से घरेलू बाजार पर भी दबाव बढ़ गया था। वहीं गेहूं के निर्यात पर पाबंदी की बात करें तो खाद्य सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर इसकी आवश्यकता पड़ी।”

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टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध

यहां ध्यान देने योग्य बात है कि मई महीने में भारत ने अपनी घरेलू उपलब्धता मे बढ़ोत्तरी को ध्यान में रखकर गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंधित लगा दिया था। अब इस महीने भारत ने टूटे हुए चावल के निर्यात पर भी बैन लगा दिया है। इसके अलावा उसना को छोड़कर गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगा दिया था। एक अधिकारी के अनुसार- “भारत ने यह भी कहा है कि यह उपाय अस्थायी प्रकृति का है और इस पर निरंतर निगरानी रखी जा रही हैं।” अधिकारी के अनुसार भारत के टूटे चावल के एक प्रमुख आयातक सेनेगल ने भारत से खाद्य पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिए इस मुश्किल समय में व्यापार को खुला रखने का आग्रह किया है।

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इससे पूर्व WTO के कई सदस्यों ने भारत की कृषि सब्सिडी को कृषि पर समझौता (AoA) नियमों के खिलाफ बताया था और वो इसके विरोध में उतर आए थे। उनका मानना था कि भारत में कृषि सब्सिडी को रोका जाना चाहिए। अमेरिका और यूरोप जैसे देशों ने भारत सरकार द्वारा किसानों को दी जाने वाली हर तरह की एग्रीकल्चरल सब्सिडी को खत्म करने के लिए पूरी ताकत भी झोंक दी थी। परंतु भारत ने भी इनके समक्ष झुकने से इनकार कर दिया। अब जब भारत ने गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदी के लगाने के अपने फैसले का समर्थन किया है तो भी WTO के कुछ सदस्य इस पर आपत्ति जता रहे हैं। यानी इन्हें भारत के हर कदम से समस्या ही है।

WTO सम्मेलन में भारत का बजा था डंका

WTO जैसे संगठन जो खुद को वैश्विक ठेकेदार मानते हैं और दुनिया को मानवता का पाठ पढ़ाते रहते है। इन संगठनों में मानवता दूर-दूर तक नजर नहीं आती। इसके विपरीत यह तो पश्चिमी देशों की कठपुतली बनते जा रहे हैं। WTO जैसे संगठनों द्वारा विकासशील देशों के साथ किस तरह से भेदभाव किया जाता है, इसके कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं। हालांकि अब भारत भी WTO जैसे संगठनों के आगे झुकने को मजबूर करने लगा है।

ऐसा जून महीने में WTO सम्मेलन के दौरान देखने मिला था। तब WTO के सदस्य नौ साल के लंबे अंतराल के बाद मत्स्यपालन सब्सिडी समझौते पर एकमत हुए थे। इस दौरान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि भारत की दमदार उपस्थिति के चलते विकसित देशों की मौजूदगी में देश को सौ फीसदी कामयाबी मिली है। ऐसा पहली बार हुआ  जब आवश्यकता से अधिक मछली पकड़ना, गहरे समुद्र में मछली पकड़ना, अवैध, गैर-सूचित और अनियमित तरीके से मछली पकड़ने के विषय पर प्रस्तावित समझौते लाए जाने लगे।

इसके अतिरिक्त WTO के इसी सम्मेलन में पीयूष गोयल के द्वारा डिजिटल एक्सपोर्ट पर कस्टम ड्यूटी लगाने का भी प्रस्ताव दिया गया था। उनके अनुसार डिजिटल एक्स्पोर्टस पर भी कस्टम ड्यूटी लगाने का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिससे कुछ चुनिंदा देशों को मिलने वाले फायदे का वर्चस्व अब ‘विकासशील और उभरते हुए देशों को भी प्राप्त हो पाए।’

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डिजिटल एक्स्पोर्ट पर अमेरिका जैसे देशों पर कटाक्ष करते हुए पीयूष गोयल ने यह भी कहा था कि एक तरफ जहां बड़े-बड़े तकनीक को संचालित करने वाले लोग और राष्ट्र बिना कोई विशेष कर (ड्यूटी) दिए बच निकलते हैं, वहीं कपड़ा उद्योग जैसे छोटे काम के लिए भी तरह तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा भेदभाव नहीं चलेगा। इस रवैये से पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि अब भारत किसी भी संगठन के दबाव में आकर झुकेगा नहीं। भारत हर तरह के भेदभाव का खुलकर विरोध करेगा और इन मंचों के माध्यम से कथित महाशक्तियों को जवाब भी देगा।

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