“I’m gonna make him an offer he can’t refuse” (मैं ऐसा प्रस्ताव रखूँगा जो वह अस्वीकार ही नहीं कर पाएगा), द गॉडफादर का यह अद्वितीय संवाद आज भी कई लोगों के मन मस्तिष्क में बैठा हुआ है। अब एक ओर बॉलीवुड है, जिनसे एक ढंग की हिट नहीं निकल पा रही और वही दूसरी ओर दो फिल्म उद्योग हैं, जिन्होंने इस डायलॉग को मानो आत्मसात कर लिया है। एक ओर बॉलीवुड की नैया पूरी तरह से डूबने की कगार पर है तो दूसरी ओर यह इंडस्ट्री हिलोरे मारने में लगी हुई है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे कन्नड़ और तेलुगु फिल्म उद्योग छोटे छोटे फिल्मों से करोड़ों का व्यापार कर रहे हैं और कैसे बहुभाषीय सिनेमा का यह रूप मनोरंजन और आर्थिक रूप से भारतीय सिनेमा के लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो रहा है।
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कम बजट और जबरदस्त कहानी
दरअसल, इन दिनों भारतीय सिनेमा में अजब मुर्दनी छाई होती है और बॉलीवुड का हाल तो पूछिए ही मत। यहां तो अकाल ही पड़ चुका है, इनोवेशन का भी और कलेक्शन का भी। दूसरी ओर वहीं कन्नड़ और तेलुगु फिल्म उद्योग ने एक ऐसा अनोखा फॉर्मूला निकाला है जो धीरे धीरे बॉक्स ऑफिस पर बवाल काट रहा है। विश्वास नहीं होता तो तनिक इन फिल्मों को देखिए। शेट्टी बंधुओं ने गरुड़ गमन वृषभ वाहन के पश्चात निकाला कान्तारा। यूं तो यह फिल्म कन्नड़ में प्रदर्शित हुई है और इसका हिन्दी संस्करण अभी 14 अक्टूबर को आना बाकी है परंतु मात्र 20 करोड़ में बनी इस फिल्म ने अभी से बॉक्स ऑफिस पर तांडव करना प्रारंभ कर दिया है। केवल 12 दिनों में इसका वैश्विक कलेक्शन 82 करोड़ से अधिक हो चुका है, जो मूल बजट का चार गुना है और जिसमें 60 करोड़ केवल घरेलू कलेक्शन है।
ये तो कुछ भी नहीं है, इसी फिल्म के निर्देशक ऋषभ शेट्टी के अग्रज रक्षित शेट्टी ने इस कला में मानो महारत प्राप्त कर ली है। ‘अवने श्रीमन्नारायण’ से सफलता प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने ऐसी ही मनोरंजक और कथ्यपरक फिल्मों की ओर ध्यान दिया, जिनमें धार्मिकता भी आश्चर्यजनक रूप से काफी अधिक आत्मसात की गई थी। इसका प्रमाण आप ‘777 चार्ली’ में भी देख सकते थे, जो है तो श्वान से स्नेह पर आधारित परंतु इसने भी संस्कृति से जुड़ाव रखा और बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। 20 करोड़ के बजट पर यह फिल्म भी बनी थी और इसने पूरे देश को अपने कंटेंट से रुलाने पर विवश कर दिया। इसे सबका प्रेम ऐसा मिला कि इसका कुल वैश्विक कलेक्शन 105 करोड़ के आसपास गया, जो मूल बजट से 5 गुना अधिक है और अभी तो हमने केजीएफ जैसे फिल्मों पर चर्चा भी प्रारंभ नहीं की।
अभिषेक अग्रवाल- नाम ही काफी है
अब ये कैसे संभव है? अभिषेक अग्रवाल स्मरण है न? हां जी वही अभिषेक अग्रवाल, जिनके द्वारा निर्मित कार्तिकेय 2 ने बॉक्स ऑफिस पर आग लगा दी। कार्तिकेय 2 की परफ़ॉर्मेंस से केवल लोग ही नहीं, ट्रेड विश्लेषक और बड़े-बड़े सेलिब्रिटी तक चकित हैं! एक ओर जहां बॉलीवुड की बड़ी-बड़ी फिल्में करोड़ों फूंक कर भी बॉक्स ऑफिस पर एक ढंग की हिट तक निकाल पाने में असफल सिद्ध हो रही हैं तो वही बहुभाषीय सिनेमा एक के बाद एक हिट दिए जा रहा है। अभिषेक अग्रवाल वही व्यक्ति हैं जिनकी सोच और जिनके विचार भारतीय फिल्म उद्योग को एक अलग ही दिशा दे देते हैं।
वो कैसे? गागर में सागर भरने को अभिषेक अग्रवाल ने एक अलग ही रूप में परिभाषित किया है। एक ओर बॉलीवुड 100-100 करोड़ के फ्लॉप प्रदर्शित कर रही है और ये मानने को ही तैयार नहीं कि उनके उद्योग में कोई कमी है। वहीं, दूसरी ओर अभिषेक अग्रवाल तेलुगु फिल्म उद्योग में अपनी कुटिया स्थापित कर कुछ 5-25 करोड़ में फिल्में बनाते हैं, जो आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ भी नहीं है परंतु उसका कलेक्शन उसका दोगना, तिगुना यहां तक कि चौगुना भी हो जाता है। यही नहीं, उनकी फिल्मों से कभी कभी ऐसे लोगों को भी प्रसिद्धि मिलती है, जो कल तक अपने योग्यताओं को सही मंच पर प्रदर्शित करने हेतु स्ट्रगल कर रहे थे।
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उदाहरण के लिए कन्नड़ फिल्म ‘किरिक पार्टी’ का तेलुगु रीमेक ‘किरक पार्टी’ जब बना, तो उसमें अभिषेक अग्रवाल भी जुड़े। इस फिल्म को बनाने में मुश्किल से 4 से 5 करोड़ लगे परंतु इसका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन लगभग चौगुना रहा यानी 16 करोड़। उसी वर्ष आई गूड़ाचारी, जो एक गुप्तचर पर आधारित फिल्म थी और जिसने रातों रात कभी “बाहुबली” में ‘भल्लालदेव के पुत्र’ के रूप में चर्चित अभिनेता अदीवी सेष को सुपरस्टार बना दिया क्योंकि 6 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म ने 25 करोड़ का व्यापार किया था।
परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। अभिषेक अग्रवाल ने सोचा, क्यों न तेलुगु फिल्म उद्योग से आगे बढ़ा जाए और उन्होंने बात की विवेक अग्निहोत्री के साथ। परिणाम निकला द कश्मीर फाइल्स। इसकी राह सरल नहीं थी। एक तो कोविड का प्रकोप, उसपर बॉलीवुड का वर्चस्व। स्थिति तो ऐसी थी कि स्क्रीन तक मिलने के लाले पड़े थे परंतु वो कहते हैं न, सच्चे मन से किया कोई कार्य निष्फल नहीं होता। मात्र 600 स्क्रीन पर प्रदर्शित होने वाली द कश्मीर फाइल्स बिना किसी लाग लपेट के भारतीय इतिहास के एक स्याह पक्ष को दिखाने के लिए जनता का प्रिय बन गया और मात्र 15 करोड़ के बजट में बनी यह फिल्म देखते ही देखते बॉक्स ऑफिस पर 350 करोड़ से अधिक बटोर ले गई, वो भी तब, जब सामने राधे श्याम, RRR, बच्चन पांडे और यहां तक कि KGF जैसे फिल्में लगी हुई थी।
बॉलीवुड को इनसे कुछ सीखना चाहिए
वैसे वैल्यू से स्मरण हुआ, कथावाचन के भी तरीके होते हैं और यहीं पर कन्नड़ और तेलुगु फिल्म उद्योग बॉलीवुड को पटक पटक के धो रहे हैं। इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है तेलुगु में प्रदर्शित सीता रामम, जिसने पुनः निश्छल, निष्कपट प्रेम कथा को लोकप्रिय बनाया है। जो कहते हैं कि ब्रह्मास्त्र में क्या कमी थी, उसका VFX देखो, उसके गीत देखो, इधर आओ बौड़म प्रसाद, एक यह भी फिल्म है, जिसे हमारी भाषा में रिलीज भी नहीं किया गया परंतु इसकी भावना, इसके भाव इतने स्वच्छ और इतने सौम्य थे कि जनता की मांग पर फिल्म निर्माताओं को इसका हिन्दी संस्करण भी निकालना पड़ा। इसके ठीक उलट ब्रह्मास्त्र में न कथा थी, न तर्क और धर्म शास्त्र की बात तो भूल ही जाएं परंतु सीता रामम ने अपने समय का भी ध्यान रखा, अपने भावनाओं का भी और ये सब कार्य केवल 30 करोड़ के बजट में ही पूर्ण हुए।
और बॉलीवुड क्या कर रहा है? 10-20 करोड़ तो छोड़िए, एक रीमेक बनाने में भी इन्हें 100 करोड़ से कम नहीं लगते। विक्रम वेधा की हिन्दी रीमेक में बताइए कितने रुपये लगे? बताइए बताइए? 175 करोड़, जबकि मूल फिल्म इसके 10 प्रतिशत से भी कम दाम में बनाई गई और उसने घरेलू बॉक्स ऑफिस पर कितने कमाए, इसके लिए कोई विशेष शोध करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि जहां एक ओर तेलुगु और कन्नड़ फिल्म उद्योग बहुभाषीय फिल्म उद्योग के सशक्त आधार स्तम्भ बने हुए हैं, वही दूसरी ओर अपने छोटे बजट परंतु आकर्षक और मनोरंजक फिल्मों से सबका मन बहलाते हैं, जो किसी के भी नाक-भौं नहीं सिकोड़ती और रुपया कमाती सो अलग।
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