राणा अय्यूब का ‘चैप्टर’ समाप्त हो गया, अब उन्हें कोई नहीं बचा सकता

अय्यूब के 'स्कैम' की सूची बड़ी लंबी है!

राणा अय्यूब ED

Source- TFIPOST

राणा अय्यूब ED केस : व्यक्ति चाहे जितना समाज सेवा का ढोंग करता रहे लेकिन ढोंग का यह ढोल ज्यादा जोर से बजाने पर काफी जोर से फटता है। इसका नुकसान यह होता है कि संत होने का चोला ओढ़े इंसान की दैत्य वाली हरकतें कुछ ही पलों में सामने आ जाती है और कथित पत्रकार कम समाजसेवी कम वामपंथी कम इस्लामिक कट्टरपंथी कम कम कम…राणा अय्यूब की शख्सित भी कुछ ऐसी ही है, जिसके कारण उन्हें जितनी लताड़ लगाई जाए उतनी कम है। अब इस महिला के कुकृत्यों का ढोल फटने लगा है और केंद्रीय जांच एजेंसियों ने इस महिला द्वारा किए गए भ्रष्टाचारों और काले कारनामों को उजागर कर इनके खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दिया है।

राणा अय्यूब जो स्वयं को समाजसेवी महिला बताती हैं असल में वो समाज की एक मुख्य दुश्मन समान हैं, जिनकी सोच के अनुसार देश में खुशहाली और विकास तो हो ही नहीं सकता बल्कि सांप्रदायिक दंगे से लेकर महिला अपराध की घटनाओं और आतंकवाद में बड़ा इजाफा अवश्य हो सकता है। इस महिला ने कोरोना काल में लोगों से गरीबों की मदद के नाम पर दान लिया था लेकिन उस दान के पैसे के इस्तेमाल को लेकर मोहतरमा पर सभी को संशय हो रहा था और खास बात यह है कि अब इसी मसले में केंद्रीय जांच एजेंसी यानी प्रवर्तन निदेशालय राणा अय्यूब की लंका लगा रहा है और उनका वर्तमान और भविष्य तक खतरे में आ गया है।

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अय्यूब को अब कोई नहीं बचा सकता

दरअसल, कथित पत्रकार राणा अय्यूब पर चैरिटी के नाम पर लोगों से अवैध तरीके से फंड जुटाने का संगीन आरोप लगाया गया है। इस मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। राणा अय्यूब द्वारा हुई फंडिग से जुड़े केस के मामले में ED ने जांच की तो इस जांच में सामने आया है कि राणा अय्यूब का मकसद फंड जुटाने के नाम पर सिर्फ आम जनता को धोखा देना था तो चलिए आपको ईडी की जांच के आधार पर बताते हैं कि आखिर इन मोहतरमा ने कोरोनाकाल में लोगों की मदद के नाम पर कैसे फंडिंग का काला खेल खेला था।

राणा अय्यूब के खिलाफ की गई ED के अधिकारियों की जांच के बाद उनपर आरोप है कि अय्यूब ने एक ऑनलाइन क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म केट्‌टो पर तीन कैंपेन शुरू किए थे और इससे करोड़ों रुपए जुटाए थे। इन कैंपेन के जरिए अप्रैल-मई 2020 के बीच स्लम में रहने वाले लोगों और किसानों के लिए, जून-सितंबर 2020 के बीच असम, बिहार और महाराष्ट्र में राहत कार्य के लिए और मई-जून 2021 में कोरोना प्रभावित लोगों के लिए फंड जुटाया गया था लेकिन एक अहम बात यह है कि तीन कैंपेन से जुटाए गए फंड का पैसा दीदी डकार गई हैं और जिन गरीबों की मदद के नाम पर फंड कैंपेन की नौटंकी चलाई गई थी उसका नतीजा ढाक के तीन पात ही था।

ED की जांच से लेकर अलग-अलग रिपोर्ट्स और रिसर्च में सामने आया कि कैंपेन में फंडिंग के दौरान राणा अय्यूब को 2.69 करोड़ रुपए का डोनेशन मिला, जिसमें से 80.49 लाख रुपए फॉरेन करेंसी में आए। इसके बाद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशंस एक्ट (FCRA) का उल्लंघन करने के आरोप में राणा अय्यूब के खिलाफ जांच शुरू की, जिसके बाद अय्यूब ने फॉरेन डोनेशन लौटा दिया और खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश की। अय्यूब जानती थीं कि यदि फॉरेन डोनेशन के मामले में जांच बैठी तो उनके देश में किए गए आंतरिक भ्रष्टाचारों का भी आसानी से खुलासा हो जाएगा, जिसके कारण उन्होंने सारा फॉरेन फंड लौटा दिया लेकिन ईडी की जांच पैसा लौटाने के बाद भी नहीं थमी और राणा अय्यूब की मुश्किलें बढ़ती चली गईं।

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राणा अय्यूब से जुड़े इस केस में प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर जो फंड जुटाया गया वह पहले अय्यूब के पिता और बहन के अकाउंट में आया और यहां से अय्यूब के पर्सनल अकाउंट में ट्रांसफर किया गया। इसमें से 50 लाख रुपए लेकर अय्यूब ने अपने लिए फिक्स्ड अकाउंट खोला, जबकि 50 लाख रुपए दूसरे बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए। सिर्फ 29 लाख रुपए राहत कार्यों में इस्तेमाल किए गए। मतलब जिनके नाम पर करोड़ों की फंडिंग जुटाई उन गरीब लोगों को मदद के नाम पर राणा अय्यूब ने 29 लाख रुपये की ऊंट के मुंह में जीरा टाइप मदद पहुंचाई और फिक्ड डिपॉजिट खोलकर अपने फ्यूचर प्लान्स पर उन्होंने काम करना शुरू कर दिया, जो कि इस महिला की विकृत और गंदी सोच को प्रदर्शित करता है।

ऐसा नहीं है कि अय्यूब केवल 29 लाख रुपये की मदद कर शांत बैठ गईं बल्कि उन्होंने झूठ तक बोला कि उन्होंने सारा पैसा लोगों की मदद के लिए ही लगाया है। यह एक ऐसी महिला हैं जो कि झूठ की पराकाष्ठाओं को पार करती चली गई। जांच के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने कहा है कि राहत कार्य के नाम पर खर्च दिखाने के लिए राणा अय्यूब ने फर्जी बिल जमा किए। ED ने चार्जशीट में लिखा कि अय्यूब ने आम जनता से मिले फंड्स को लॉन्डर किया और फिर इन फंड्स को बेदाग दिखाने की कोशिश की। उन्होंने सरकारी अनुमति या रजिस्ट्रेशन के बिना विदेश से फंड हासिल किया, जो फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशंस एक्ट का उल्लंघन है।

राणा अय्यूब को लगा था कि भले ही उनके खिलाफ केस दर्ज हुआ हो लेकिन कानूनी मामलों में वो नहीं फसेंगी लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी ने इस मामले में इतना मजबूत केस बना दिया है कि राणा अय्यूब का बचना मुश्किल है। वहीं, अब शत प्रतिशत एक बात कही जाएगी कि राणा अय्यूब, मोदी सरकार का विरोध करती रही हैं और इसीलिए मोदी जी राणा अय्यूब के पीछे केंद्रीय जांच एजेंसियों को लगा दिया जिससे उनकी आवाज को दबाया जा सके। ऐसे में संभावनाएं यह भी हैं कि बहुत जल्द वामपंथी इस मुद्दे पर अपनी छाती भी पीटने लगें लेकिन ईडी की जांच रिपोर्ट समेत चार्जशीट यह स्पष्ट करते हैं कि राणा अय्यूब की असल मुसीबतें तो अब शुरू हुई हैं, जो कि उन्हें तिहाड़ ले जाने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।

पीएम मोदी से रही है पुरानी अदावत

ज्ञात हो कि राणा अय्यूब को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं कि वो एक बेहतरीन पत्रकार हैं लेकिन क्या आपने कभी उनका लिखा कोई लेख पढ़ा है? नहीं न… आप पढ़ेंगे भी कैसे, क्योंकि दीदी की सारी कथित पत्रकारिता केवल मुंह से जहर उगलने में ही हो जाती है। राणा अय्यूब आए दिन मोदी सरकार को कोसती रहती है। वहीं, उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पुरानी अदावत हैं। गुजरात दंगों के बाद से ही अय्यूब, मोदी जी को एक संहारक के रूप में पेश करनी की कोशिश करती आई हैं लेकिन उन्हें किसी ने भाव नहीं दिया। नरेंद्र मोदी से नफरत के कारण गुजरात दंगों के मामले में राणा अय्यूब की कोशिश हमेशा यह रही थी कैसे मोदी जी के राजनीतिक कद को छोटा किया जाए लेकिन उनके लिए यह करना टेढ़ी खीर साबित हुआ और इस मामले में उन्हें देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने जोर की दुलत्ती मारी थी।

राणा अय्यूब वर्ष 2002 के गुजरात दंगे पर ‘गुजरात फाइल्‍स- अनाटॉमी ऑफ ए कवर अप’ नाम से किताब लिख चुकी हैं। इसमें दावा किया गया है कि दंगों के समय कई अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव था। इसमें हरेन पंड्या मर्डर केस पर भी एक चैप्‍टर है। इसमें जांच अधिकारी वाई ए शेख के आरोपों को भी जगह दी गई है। वहीं, इन आरोपों को कोर्ट ने सिरे से खारिज करते हुए यह तक कह दिया था कि किसी भी शख्स द्वारा लिखी गई किताब कभी सुबूत हो ही नहीं सकती है और नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुहिम चलाने की कोशिश कर रही राणा अय्यूब को कोर्ट की प्रतिक्रिया से एक बड़ा झटका लगा था।

इनकी कुंठा का लेवल ही अलग है!

आपको बता दें कि राणा अय्यूब प्रत्येक मुद्दे पर अजीबो-गरीब बयान देती रही हैं। उन्होंने राम मंदिर के विरोध से लेकर अनुच्छेद-370 के खात्मे तक पर आपत्ति जताते हुए मोदी सरकार को तानाशाह तक बताया था। ये वही राणा अय्यूब हैं जो कि सीएए-एनआरसी को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों में भड़काऊ कैंपेन चलाए थे। इन्हीं राणा अय्यूब ने शाहीनबाग के मंच से मोदी सरकार को सीएए को खत्म करने की चुनौती तक दी थी लेकिन क्या हुआ, बेचारी खुद ही मुसीबतों में फंस गई हैं क्योंकि समाजसेवा तो बस दिखावे की हैं असल मकसद तो माल यानी पैसा कमाने का है।

इन लोगों की मुख्य दिक्कत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यही है कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार की धज्जियां उड़ने के साथ ही इन कथित बुद्धिजीवियों को मिलने वाले सरकारी लाभ और महत्व खत्म हो गए हैं। राणा अय्यूब जैसी पत्रकारों को कांग्रेस की मनमोहन सरकार में खूब अहमियत दी जाती थी और अब जब वैसा कुछ मोदी सरकार में नहीं हो रहा है तो इनके जैसे लोग बिलबिला रहे हैं। इसके कारण ही ये लोग मोदी सरकार के खिलाफ कुछ भी ऊल जलूल बोल रहे हैं जिसका यथार्थ से कोई लेना देना नहीं है।

वहीं, एक अहम बात यह भी है कि राणा अय्य़ूब को यह उम्मीद थी कि वो अल्पसंख्यक समाज से आती हैं तो उन्हें अल्पसंख्यकों के बीच लोकप्रियता मिलेगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। वो मुस्लिमों की हितैषी होने का ढोंग तो करती हैं लेकिन उनकी एक्टिंग भी खराब है। इसका नतीजा यह है उनकी लोकप्रियता भी जीरो ही है। इन सबके बीच अब राणा अय्यूब के सभी काले चिट्ठे प्रवर्तन निदेशालय ने खोल दिए हैं और यह माना जा रहा है कि उनके खिलाफ कभी भी कोई बड़ा एक्शन लिया जा सकता है, जिसका लोगों को भी इंतजार हैं जिनके नाम का पैसा दीदी ने अपनी एफडी में झोंक दिया है।

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