अरविंद केजरीवाल, इन हरकतों से आपको ‘कैनवस लाफ क्लब’ में भी दिहाड़ी नहीं मिलेगी

एक नंबर का आदमी है ये!

केजरीवाल ट्वीट:

Source- TFIPOST

केजरीवाल ट्वीट: अरविंद केजरीवाल और विवाद एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसा कोई दिन नहीं है जब केजरीवाल ने किसी के खिलाफ जहर न उगला हो, और तो और दिल्ली के उपराज्यपाल को लेकर उनके मुंह से हमेशा से विष ही निकलता आया है। आम आदमी पार्टी की स्थिति दयनीय हो चली है लेकिन केजरीवाल महोदय अपने व्यंग्यास्त्र का प्रयोग कर खुद के लिए और पार्टी के लिए गड्ढा खोदने का काम कर रहे हैं। इस लेख में हम विस्तार से केजरीवाल के राजनीतिक व्यंग्य से अवगत होंगे, जो राजनीतिक कम और पकाऊ अधिक हैं और वो अपने इस कृत्य से राहुल गांधी और कन्हैया कुमार को भी अपने से अधिक परिपक्व एवं विनयी प्रतीत करा देते हैं।

दरअसल, हाल ही में आबकारी नीति एवं अन्य वित्तीय अनियमितताओं को लेकर अरविंद केजरीवाल दिल्ली के वर्तमान राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना पर बौखला उठे। परंतु चूंकि वो इसे सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित नहीं कर सकते थे, इसलिए केजरीवाल ने ‘व्यंग्यास्त्र’ का प्रयोग करते हुए ट्वीट किया, “LG साहिब रोज़ मुझे जितना डांटते हैं, उतना तो मेरी पत्नी भी मुझे नहीं डांटतीं। पिछले छः महीनों में LG साहिब ने मुझे जितने लव लेटर लिखे हैं, उतने पूरी ज़िंदगी में मेरी पत्नी ने मुझे नहीं लिखे। LG साहिब, थोड़ा chill करो। और अपने सुपर बॉस को भी बोलो, थोड़ा chill करें” –

और पढ़ें: अच्छा तो यह है पटाखों पर अरविंद केजरीवाल के विचित्र आदेश के पीछे का वास्तविक कारण

 

अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर जो रायता फैलाया, उसके बाद तो लोगों ने उनकी क्लास लगानी शुरु कर दी। प्रारंभ में तो प्रतीकात्मक उत्तर देते हुए मनोज तिवारी ने ट्वीट किया, “ये छिछोरेपन की भाषा बताती है कि सीएम केजरीवाल जी की मानसिक स्तर क्या है। 7 वर्ष में एक भी विभाग न संभाला, एक भी फाइल साइन नहीं की आज तक आप ने, आप की रुचि सिर्फ़ लूट और झूठ में है जो अब इस निम्न स्तर पर आ गया है।” सीएम केजरीवाल के इस ट्वीट का सिर्फ बीजेपी नेताओं ने ही नहीं बल्कि कांग्रेस नेताओं ने भी कटाक्ष किया है। कांग्रेस नेता श्रीनिवास बीवी ने लिखा, ‘ये ‘मसखरा’ है या राज्य का ‘मुख्यमंत्री’?’

केजरीवाल का नाटक शाश्वत है!

ज्ञात हो कि यह वही केजरीवाल हैं जो पीएम बनने के ख्वाब संजोय बैठे हैं लेकिन इनकी भाषा का स्तर इस स्तर का है कि इन्हें कोई पूछे भी नहीं। इस मामले में तो लालू यादव लाख गुना बेहतर थे, जंगल राज पर उनकी जितनी भी आलोचना कीजिए पर इतना लीचड़, इतना चीखट तो कभी न थे। माना कि AAP ने दिल्ली और पंजाब में जीत  हासिल की पर केजरीवाल जी, आपकी ऐसी हरकतों पर तो कैनवस लाफ़ क्लब में दिहाड़ी पर भी कोई आपको नहीं रखेगा, पीएम बनने की बात तो छोड़ ही दो। परंतु आपको क्या प्रतीत होता है, यह इनका पहली बार का है? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप बिल्कुल गलत हैं। उपराज्यपाल कोई भी हो, केजरीवाल का नाटक शाश्वत रहेगा।

परंतु केजरीवाल की समस्या क्या है? महोदय को प्रतीत होता है कि उनके विरुद्ध कोई साजिश की जा रही है। वो हवा में निरंतर खड्ग चलाते रहते हैं, परिणाम चाहे शून्य निकले। उदाहरण के लिए जब आबकारी नीति में त्रुटियां मिलने पर उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने जांच की सिफारिश की, तब से ही बवाल मचना शुरु हो गया। चूंकि आबकारी विभाग मनीष सिसोदिया के अंतर्गत था और सिसोदिया पर जांच की आंच आई एवं अनुमान लगाया जाने लगा कि सत्येंद्र जैन के बाद केजरीवाल की सबसे बड़ी मछली सिसोदिया के जेल जाने का समय आ गया है, तो ये बिलबिलाने लगे। परिणामस्वरुप अरविंद केजरीवाल  प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए और एलजी द्वारा दिए गए आदेश को भाजपा और केंद्र सरकार से जोड़ दिया। यहां तक तो ठीक था पर तभी मर्यादा लांघ कर केजरीवाल ने कहा कि वे (उप राज्यपाल) दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ एक फर्जी मामला बना रहे हैं।

इतना ही नहीं, अरविंद केजरीवाल ने सिसोदिया को अपनी ओर से तो सत्यवादी कह ही दिया है। उन्होंने कहा कि ”जेल से हमें डर नहीं लगता। तुम सावरकर की औलदा हो, तुम लोग सावरकर की औलाद हो, जिसने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। हम भगत सिंह की औलाद हैं, हम भगत सिंह को अपना आदर्श मानते हैं, जिसने अंग्रेजों के सामने झुकने से मना कर दिया और फांसी पर लटक गए। हमें जेल और फांसी से डर नहीं लगता। कई बार जेल हो आए हैं।” जिस आदरभाव के साथ भगत सिंह, वीर सावरकर को पूजते थे और उनके प्रति एक सम्मान भाव रखते थे, केजरीवाल जैसे लोभी नेता उस भाव को धूमिल करने का काम करते हैं। यह किसकी औलाद हैं किसकी नहीं, यह जनता को जानने में कोई रूचि नहीं है पर वास्तव में वीर सावरकर के प्रति भगत सिंह का क्या भाव था वो केजरीवाल और उनके साथियों को छोड़ समूचे देश को पता है।

और पढ़ें: शराब में ‘डुबोने’ के बाद अब CBI केजरीवाल को ‘बस ड्राइव’ पर ले जा रही है

अनिल बैजल से भी बेहतर नहीं रहे संबंध

पर यह तो कुछ भी नहीं है। इससे पूर्व भी दिल्ली के राज्यपाल से इनकी तनातनी देखने को मिलती रही है। वर्ष 2021 में केजरीवाल और तत्कालीन राज्यपाल अनिल बैजल के बीच काफी विवाद देखने को मिला था। अब यूं तो अनिल बैजल कोई बहुत बड़ी तोप तो नहीं थे परंतु उनकी उपस्थिति से ही केजरीवाल इतने असहज थे कि वो उन्हें हटाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाते थे। इसी परिप्रेक्ष्य में दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले को रद्द किया था। तब किसान आंदोलनकारियों द्वारा की गई हिंसा का मामला दिल्ली उच्च न्यायलय में चल रहा था और ऐसे में दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच इस मामले के लिए वकील नियुक्ति को लेकर अनबन हो गई थी।

बात यह थी कि दिल्ली पुलिस चाहती थी कि वो अपना मन चाहा वकील नियुक्त करे ताकि इस मामले को उनके हिसाब से कोर्ट में पेश किया जा सके। वहीं, केजरीवाल सरकार ने अपने मनपसंद वकील को नियुक्त कर दिया था ताकि हर हाल में हिंसक किसानों को बचाया जा सके। इसलिए उन्होंने ऐसे वकील को नियुक्त किया, जो इस पूरे मामले को कमजोर कर दे। अर्थात, अरविंद केजरीवाल दिल्ली पुलिस के लिए उनके विरोधी वकील नियुक्त करने के फिराक में थे। हालांकि, दिल्ली के तत्कालीन एलजी अनिल बैजल ने केजरीवाल के इस इरादे पर पानी फेर दिया और राज्य सरकार द्वारा ली गई वकील नियुक्ति के फैसले को रद्द कर, उसे आगे राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

अब आप सोच रहे होंगे कि ये सब क्यों और किसलिए हुआ और इसे रोककर अनिल बैजल ने जाने अनजाने कौन सा कल्याण कर दिया? दरअसल, यह आम आदमी पार्टी की यह साजिश सोची-समझी थी। असल में वह उग्रवादी किसानों को जेल से छुड़ाकर, पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में लाभ उठाना चाहते थे। पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी, इन तीनों पार्टियां किसान आंदोलन के समर्थन में आवाज़ उठाई थी लेकिन आम आदमी पार्टी ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए इन सभी पार्टियों से दो कदम आगे निकलकर किसानों को जेल से छुड़ाने का भी पूरा प्रबंध कर लिया था।

नाम बड़े और दर्शन छोटे

उसके कुछ महीनों पहले केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 यानी GNCT Act को मंजूरी दी थी। इस कानून के मुताबिक, दिल्ली की सरकार को अब कोई भी कार्यकारी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 अप्रैल से प्रभाव में आया। जब यह कानून लागू हुआ था, तब दिल्ली सरकार ने संघवाद के राग का आलाप किया था। अगर दिल्ली में GNCT Act नहीं होता तो केजरीवाल सरकार के षड्यंत्र से दिल्ली पुलिस को किसान हिंसा मामले में पराजय का सामना करना पड़ता और वही उग्रवादी किसानों को जीत मिल जाती।

ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे यह साबित हो चुका है कि देश की राजधानी की कमान अरविंद केजरीवाल के हाथों में नहीं दी जा सकती है। कुछ वर्ष पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो में महिलाओं के लिए सफर मुफ्त करने का ऐलान किया था। केजरीवाल की इस बेतुकी मांग को एलजी ने सिरे से खारिज कर दिया था। ऐसे अनेक कारण हैं, जो केजरीवाल को दोयम दर्जे का नेता बनाते हैं परंतु वो क्या है न, लोकतंत्र में जबरदस्ती किसी को धकियाया नहीं जाता!

इन्हीं कारणों से केजरीवाल एक उचित और प्रभावी विकल्प के बजाए हास्य का विषय बने हुए हैं। उनसे ज्यादा भाव तो ममता बनर्जी/राहुल गांधी को मिलता है, जो कुछ भी करे, इतना नीचे तो नहीं गिरते हैं। राहुल गांधी तो वैसे भी भाजपा के स्टार प्रचारक हैं, उनके विरुद्ध कुछ भी कहना पाप समान होगा परंतु अरविंद केजरीवाल यदि अब भी नहीं चेते, तो जल्द ही चंद्रशेखर रावण और प्रशांत कनौजिया की कैटेगरी में आ खड़े होंगे – नाम बड़े और दर्शन छोटे!

और पढ़ें: ‘हिंदुओं का पलायन होगा’, कांग्रेस के बाद अब केजरीवाल करदाताओं के पैसों से बनवा रहे हैं हज हाउस

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version