Himachal Pradesh Election 2022: चुनावों का मौसम आ गया है। भारतीय निर्वाचन आयोग ने हिमाचल प्रदेश में चुनावों का ऐलान कर दिया हैं। पहले संभावनाएं थीं कि हिमाचल के साथ ही गुजरात चुनावों की तारीखें भी तय हो जाएगी, परंतु ऐसा हुआ नहीं। चुनाव आयोग ने अभी केवल हिमाचल प्रदेश की तारीखों की ही घोषणा की हैं। यहां भाजपा के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है। दूसरी ओर कांग्रेस भाजपा सरकार के खिलाफ किसी सत्ता विरोधी लहर की उम्मीद लगाए बैठी हैं। अहम बात तो यह है अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा के गृह राज्य में भाजपा की अपनी स्थिति तो काफी मजबूत है, परंतु यहां भाजपा के लिए कुछ समस्याएं भी है, जिसमें सबसे बड़ी जो दिक्कत है मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर। संभावनाएं है कि हिमाचल में परिणाम तो भले ही भाजपा के पक्ष में ही जाएंगे और पार्टी चुनावों में जीत हासिल करने में कामयाब रहेगी, परंतु इसका अंतर बेहद ही कम होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस हारेगी नहीं बस अपनी खामोशी के चलते राज्य में सत्ता प्राप्त करने से दूर रह जायेगी।
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हिमाचल चुनाव पर सर्वे
कुछ दिनों पूर्व ही चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा (Himachal Pradesh Election 2022) की हैं। राज्य में 12 नवंबर को वोटिंग होने वाली है और 8 दिसंबर को चुनाव के नतीजे घोषित होंगे। हिमाचल प्रदेश चुनाव को लेकर मीडिया संस्थानों ने अनेकों ओपिनियन पोल्स किये गये हैं, जिसमें भविष्यवाणी की जा रही है कि राज्य में भाजपा की एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है। उदाहरण के लिए एबीपी सीवोटर के सर्वे के अनुसार राज्य में बीजेपी को 38-46 सीटें मिलने का अनुमान है। कांग्रेस के खाते में 20-28 सीटें और आम आदमी पार्टी को 0-1 सीट मिलने की भविष्यवाणी इस पोल के माध्यम से की गयी हैं। वहीं अन्य को 0-3 सीट मिल रही हैं।
शुरुआत में तो आम आदमी पार्टी ने अन्य राज्यों की तरह ही हिमाचल में भी अपने पैर पसारने के प्रयास कए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव में भाजपा के विरुद्ध उतरने की कोशिश की थी परंतु फिर शायद उन्हें यह समझ आ गया था कि वे यहां नहीं टिक पाएंगे। जिस कारण अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस गुजरात चुनावों की तरफ चला गया। अब बात हिमाचल की वर्तमान स्थिति की करें तो यह तय दिख रहा है कि भाजपा यहां सरकार तो भले ही बना लेगी लेकिन अहम बात यह है कि पार्टी को यहां सत्ता तक पहुंचने के लिए थोड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती हैं।
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कांग्रेस की खामोशी ही उसे हरायेगी
पहले कांग्रेस की बात करें तो उसकी स्थिति राज्य में बेहद ही खराब हैं। पार्टी ने राज्य का प्रभार कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को सौंपा हैं। परंतु ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के बाद हिमाचल में भी कांग्रेस की नैया डुबाने की तैयारी में है। जिस दिन Himachal Pradesh Election 2022 का ऐलान हुआ प्रियंका हिमाचल में ही थीं लेकिन वे वहां कब तक रहेंगी यह कहना काफी मुश्किल है। प्रियंका दीदी को यहां अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि यूपी में हार झेलने वाली प्रियंका के लिए हिमाचल की चुनौती काफी बड़ी है। वहीं पार्टी के पास राज्य में बड़ा नेता नहीं बचा है जिसकी पकड़ यहां मजबूत पकड़ हो।
कांग्रेस ने भले ही प्रियंका को प्रभार दिया है लेकिन यह माना जा रहा है कि वे यहां दिलचस्पी दिखाने वाली नहीं हैं। इसके अलावा पिछले चार वर्षों सालों की बात करें तो पार्टी के स्थानीय से लेकर किसी केंद्रीय नेता तक ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखायी है। कांग्रेस की यह खामोशी ही बीजेपी की सत्ता पर बने रहने की सबसे बड़ा कारण बनने वाली है।
बीजेपी की केंद्रीय कमेटियों से लेकर अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा के दौरों ने यहां बीजेपी के लिए माहौल बना रखा है वरना वे भी यहां बड़ी मुश्किल का सामना कर रही हैं। हम लगातार बीजेपी की मुश्किल का उल्लेख कर रहे हैं लेकिन समस्या आखिर हैं क्या? तो आपको बता दें कि यह मुश्किल “रघुवर दास सिंड्रोम” हैं। पार्टी ने पिछले चुनावों में शानदार जीत हासिल के बाद सीएम की कुर्सी पर जयराम ठाकुर को बैठाया था। वहीं समस्या यह है कि भले ही जयराम ठाकुर एक अच्छे प्रशासक हों लेकिन उनकी कोई अपनी करिश्माई छवि नहीं बना पाये है। वे एक औसत दर्ज के नेता माने जाते हैं जिन्हें अधिक कोई नहीं जानता है। देखा जाये तो जयराम ठाकुर वो काबिलियत नहीं रखते जिससे अकेले अपने दम पर वे पार्टी को चुनावों में जीत हासिल करवा दें।
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जीत तो जायेगी भाजपा, लेकिन…
ऐसा ही कुछ झारखंड में भी था। वर्ष 2014 में झारखंड में विधानसभा चुनाव जीतने के पश्चात भाजपा ने रघुवर दास को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थीं और वे अपने पांच सालों के कार्यकाल के दौरान अपनी छवि नहीं बनाने में कामयाब नहीं हो पाए, जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा। इस कारण 2019 के चुनावों में पार्टी के हाथों से मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन गयीं। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को भी इसी परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि राज्य में जेजेपी के साथ पार्टी सरकार बनाने में तो सफल हो गयीं, परंतु वे करिश्मा भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की “चाणक्य नीति” ने किया था। ऐसे में यह माना जा रहा है कि हरियाणा की तरह ही भाजपा अपनी सरकार तो बना लेगी लेकिन जयराम ठाकुर के कारण ही भाजपा एक बड़ी जीत सुनिश्चित करने में कामयाब नहीं हो पायेगी।
ऐसे में मौजूदा स्थिति को देखते हुए हम यह भी कह सकते हैं कि हिमाचल विधानसभा चुनावों में भाजपा कांग्रेस को नहीं हरा पाएगी बल्कि कांग्रेस अपनी चुनावी खामोशी के चलते हार जाएगी। वहीं भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के दम पर हिमाचल पर एक बार फिर अपना कब्जा आसानी से जमाने में कामयाब हो पायेगी।
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