दहेज प्रथा पर निबंध
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे की दहेज प्रथा पर निबंध के बारे में साथ ही इससे जुड़े कुछ तथ्यों के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
दहेज एक प्राचीन प्रथा है जो की कई वर्षो से चली आ रही है, दुनिया के कुछ हिस्सों, मुख्य रूप से एशिया, उत्तरी अफ्रीका और बाल्कन के कुछ हिस्सों में शादी के प्रस्ताव को स्वीकार करने की शर्त के रूप में दहेज की अपेक्षा की जाती है, इसका मतलब यह है कि शादी तभी होती है जब दहेज दिया जयेगा। कुछ एशियाई देशों में, दहेज से संबंधित विवाद कभी-कभी महिलाओं के खिलाफ हिंसा को जन्म देते हैं, जिनमें हत्याएं और एसिड हमले इत्यादि शामिल हैं। दहेज प्रथा ही घरेलू हिंसा का कारण होता है। दहेज प्रथा का यूरोप, दक्षिण एशिया, अफ्रीका और दुनिया के अन्य हिस्सों में लंबा इतिहास रहा है।
दहेज-प्रथा का इतिहास –
पहले के समय में माता-पिता अपनी पुत्रियों की शादी में जरूरी घरेलू चीजें दिया करते थे। कई परिवार कुछ सोना और चाँदी भी देते थे। यह उसके भविष्य को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से किया जाता था। यह सब उनके अपने स्तर के अनुसार किया जाता था। परंतु धीरे-धीरे यह एक रिवाज हो गया। अब दूल्हे का परिवार जो माँगता है, उसे दुल्हन के परिवार को देना पड़ता है चाहे उनको उसके लिए किसी से कर्जा लेना पड़ जाये या अपना घर गिरवी रखना पद जाए। उन्हें किसी भी हाल में उसकी व्यवस्था करनी पड़ती है। उन्हें इसके लिए उधार धन या कर्ज का सहारा लेने पर मजबूर कर देते हैं।
दहेज प्रथा का कारण –
लड़की की शादी पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करना भारत के हर समाज में एक सामाजिक मान्यता बन गई है। वर पक्ष की ओर से मांग न होने पर भी कन्या के लिए अपनी शक्ति से अधिक खर्च करना सामाजिक आवश्यकता बन गई है।
जो व्यक्ति कम खर्चे, विवाह में साज-सज्जा की कमी या कम दहेज देता है, वह समाज में अपना अपमान समझता है। इसलिए वह सामाजिक मान्यता के अनुसार खर्च करता है और हमेशा के लिए कर्ज में डूब जाता है।
वहीं दूसरी ओर कई समाजों में दूल्हे की ओर से पहले से ही पैसे, आभूषण और अन्य विविध वस्तुओं की मांग की जाती है, जिसे लड़की पक्ष को पूरा करना होता है और यदि नहीं, तो इसके परिणाम भी सामने आते हैं.ऐसे समाजों में, दूल्हे की ओर से मांग करने का रिवाज भी बन गया है ।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम –
यह दहेज प्रथा आज समाज के लिए विकराल रूप ले चुकी है। जो व्यक्ति सामाजिक मूल्यों को पूरा करने की क्षमता नहीं रखता और वर की मांग को पूरा नहीं कर सकता, वह एक बदसूरत, अयोग्य, विधुर व्यक्ति को फूल की तरह कोमल सुंदर बेटी देने के लिए मजबूर होता है।
दहेज के कारण बेमेल विवाह की प्रथा समाज में बहुविवाह का जन्म होता है, जो व्यक्ति एक से अधिक विवाह करता है, उसे गरीब परिवार की लड़की मिलती है। गरीब माता-पिता को अपनी बेटी की शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जिन समाजों में मांग पूरी नहीं होती है, वहां लड़की का ससुराल में रहना हराम हो जाता है।
रोकने के उपाय –
भारत सरकार ने सन् 1960 में दहेज की रोकथाम के लिए कानून बनाया था। परन्तु यह कानून ढंग से लागू नहीं किया जा सका है। यह बुराई “से कानून से पूरी तरह नष्ट नहीं हो सकती। इसके लिए दृढ़ सामाजिक संकल्प की आवश्यकता है। दहेज वर को अपने पौरुष का अपमान प्रतीत होना चाहिए।
दहेज प्रथा में सुधार –
आधुनिक युग में शिक्षा का बहुत प्रचार-प्रसार हो रहा है। दहेज के दानव से हर शिक्षित युवक-युवती भली-भांति परिचित है। इसलिए उन्हें इस बंधन से मुक्त होने के लिए संघर्ष करना चाहिए। आजकल पढ़ी-लिखी लड़कियां अवांछित बेमेल दूल्हों से शादी करने के बजाय कुंवारी के रूप में जीवन जीना पसंद करती हैं। इसलिए वे नौकरी आदि से अपनी आजीविका कमाते हैं।
सरकार ने दहेज कानून संसद में पारित कर दहेज लेने और देने पर रोक लगा दी है। इसका सख्ती से पालन करना भी सरकार का काम है। दहेज के नाम पर लड़की को प्रताड़ित करने वालों को सजा मिलनी चाहिए।
FAQ-
Ques-दहेज प्रथा से आप क्या समझते हैं?
Ans- दहेज माता-पिता के द्वारा दूल्हे या दूल्हे के परिवार को बेटी की शादी में पैसे या संपत्ति को एक विशेष रूप में उपहार देने की प्रथा को दहेज प्रथा कहते है। दहेज में आमतौर पर नकद भुगतान, गहने, या फिर सम्पति, आदि शामिल होते हैं।
Ques-दहेज प्रथा की शुरुआत किसने की?
Ans- सवसे पहले इंग्लैंड में दहेज प्रथा 12वीं शताब्दी में नॉर्मन्स द्वारा शुरू की गई थी। ये दहेज आमतौर पर शादी में पति को चर्च के दरवाजे पर सभी उपस्थित जनता के सामने दिया जाता था।
Ques- दहेज प्रथा को कैसे रोक सकते हैं?
Ans- दहेज प्रथा को रोकने के लिए हम अपने अपनी बेटियों को शिक्षित करें, उन्हें अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करें, दहेज देने या लेने की प्रथा को प्रोत्साहित न करें, उन्हें स्वतंत्र और जिम्मेदार बनना सिखाएं।
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