सनातन के पवित्र स्थल जोशीमठ पर खतरा है, दरक रही है जमीन

सरकारों को हिंदुओं के इस तीर्थस्थल पर तुरंत ध्यान देना होगा!

joshimath

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से देश के अनेकों तीर्थस्थलों का जीर्णोद्धार व पुनर्निर्माण करवाया है। फिर चाहे वो बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर हो, उज्जैन का महाकाल मंदिर या फिर गुजरात के मंदिर हों। मोदी सरकार देश के तीर्थस्थलों पर विशेष ध्यान देती आयी है। परंतु हिंदुओं का तीर्थस्थल ऐसा है, जिस पर अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है और वो है उत्तराखंड का लोकप्रिय जोशीमठ तीर्थस्थल

वैसे तो भारत में कई सारे ऐसे मनमोहक पर्यटन स्थल और तीर्थस्थल हैं, जहां हर वर्ष लाखों पर्यटक प्रकृति के अद्भुत दृश्य का आनंद उठाने आते हैं। इन्हीं से एक है ‘उत्तराखंड’। उत्तराखंड लोगों के बीच देवभूमि के नाम से प्रचलित है। धार्मिक और पौराणिक महत्व के अनेकों स्थान यहां मौजूद हैं। उसी उत्तराखंड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन/ तीर्थस्थलों है जोशीमठ।

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चमोली में स्थित है पवित्र शहर जोशीमठ

जोशीमठ देश का पवित्र और पावन तीर्थस्थलों में से एक है। यह उत्तरखंड के चमोली में स्थित है। जोशीमठ में हिन्दुओं का प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ भी मौजूद है। 8वीं सदी में धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य को जब ज्ञान प्राप्त हुआ और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के भिन्न-भिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पूर्व उन्होंने यहीं पर प्रथम मठ ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी। बद्रीनाथ, औली तथा नीति घाटी के निकट होने के कारण जोशीमठ एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल का रूप ले लिया है। ऐसी भी मान्यता है कि बद्रीनाथ की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती है जब तक जोशीमठ जाकर नरसिंह मंदिर में पूजा-अर्चना न की जाए।

इस जगह की खूबसूरती इतनी खास है कि यूनेस्को वर्लड हेरिटेज साइट की लिस्ट तक में इसे शामिल किया गया। वहीं यहां की सबसे खास बात खिले-खिले फूल हैं। यहां पर 500 से भी अधिक प्रजाति के फूल हैं। परंतु जो जोशीमठ अपनी खूबसूरती के लिए इतना लोकप्रिय रहा है, उसकी स्थिति अब खराब होती चली जा रही है। यही कारण है कि जोशीमठ मोदी सरकार से तत्काल मदद की मांग कर रहा है।

धंसता जा रहा है जोशीमठ

दरअसल, इन दिनों जोशीमठ बड़ी ही दयनीय स्थिति में नजर आता है। जोशीमठ शहर में स्थित कई घर और सड़कों में दरारें आ रही हैं, जिसके चलते यह पर्यटन स्थल बड़े खतरे में दिखाई दे रहा है। करीब 17 हजार की आबादी वाले इस शहर के कई हिस्से धीरे धीरे जमीन में धंसते जा रहे हैं। दरारों और धंसाव के कारण रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CSIR) व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के विज्ञानियों ने इसके ऊपर ख़ास निगरानी और विस्तृत जांच पर करने का आग्रह किया है। साथ ही देश के प्रधानमंत्री को उत्तरखंड के खुबसूरत पर्यटक स्थल जोशीमठ को सुरक्षित रखने के लिए कोई विशेष कदम उठाने की अपील भी की जा रही है।

अभी पिछले ही वर्ष जोशीमठ भयानक बाढ़ का भी सामना कर चुका है। साल 2021 में ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक से बाढ़ आ गई थी, जिससे यहां के कई सारे गांव बर्बाद हो गए थे।

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कुछ महीनों पूर्व इस इलाके में रहने वाले लोगों ने प्रशासन को बताया था कि सड़कों और उनके घरों की दीवारों में काफी तेजी से दरारें आ रही है। इसके बाद राज्य सरकार ने इस पर अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया था, जिसमें विशेषज्ञों की समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी, जो काफी चिंताजनक थी। विज्ञानियों के अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ था कि जोशीमठ में जल निकासी के अभाव, भवनों का कंस्ट्रक्शन सही तरह से न होने, नदी से भू-कटाव होना, तेजी से बढ़ते निर्माण, प्राकृतिक आपदाओं की वजह से यहां के घरों और भवनों में दरार आने का मुख्य कारण है।

जोशीमठ में भूधंसाव के साथ-साथ घरों के अंदर दीवारों पर अंदर और बाहर दरारें आ रही है। करीब-करीब एक महीने पहले राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, CBRI रुड़की, IIT रुड़की, जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टीट्यूट के विज्ञानियों ने मिलकर जोशीमठ और इसके आसपास के इलाकों में भूगर्भीय सर्वेक्षण किया था, जिसके बाद इस तरह के परिणाम सामने आये थे।

CBRI रुड़की के विज्ञानी डॉ. शांतनु सरकार की मानें तो ग्रामीणों ने उन्हें इस बारे में बताया था कि जोशीमठ में यह बदलाव पिछले साल अक्टूबर माह में होने वाली भारी बारिश के बाद से दिखाई दे रहे हैं। ग्रामीणों द्वारा आनी वाली शिकायतों में बढ़ोतरी के बाद राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण टीम ने जोशीमठ का दौरा किया। इसके बाद विज्ञानियों के द्वारा सरकार को रिपोर्ट दी गयीं। डॉ. शांतनु सरकार के अनुसार अध्ययन को जोशीमठ गयीं टीम ने 10-12 घरों का पूर्ण रूप से निरीक्षण किया, जहां दीवारों और घरों में दरारें और धसाव देखने को मिला था।

वहीं IIT रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर बीके माहेश्वरी के अनुसार जोशीमठ में जल निकासी का ठीक तरह से प्रबंधन नहीं है। इतना ही नहीं वहां के कुछ घरों में नींव का कार्य भी उचित तरह से नहीं किया गया है। नींव से होने वाले काम्पैक्ट का काम सही तरह से नहीं हुआ है। इसी वजह से वहां पर पानी की निकासी नहीं हो पा रही है। इसलिए सुनियोजित तरीके से निर्माण कार्य कराने की काफी जरूरत है।

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तत्काल कदम उठाने की जरूरत

इस गंभीर समस्या को लेकर वैज्ञानिकों ने सरकार को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए है, जैसे जोशीमठ में ड्रेनेज सिस्टम को और अधिक बेहतर बनाया जाए, निचली ढलानों पर रह रहे परिवार को फिर से विस्थापित किए जाए, निर्माण कार्यों को तत्काल ही रोक दिया जाए क्योंकि यहां अन्य विकास कार्य करना बहुत ही ज्यादा जोखिमपूर्ण हो सकता है।

साल 1975 में मिश्रा कमेटी के द्वारा दी गई रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख हुआ है कि भूकंप की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी संवेदनशील है। जोशीमठ-औली रोड पर भूमि में धसाव हो रहा है। इस तरह की स्थिति में ऊपर टिके हुए बड़े-बड़े बोल्डर भी गिर सकते है, जिस वजह से जोशीमठ के निचले हिस्से में भी खतरे की आशंका बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों की समिति ने कहा है कि भारी बारिश, भूकंप, अनियंत्रित निर्माण और क्षमता से अधिक पर्यटकों की वजह से जोशीमठ की नींव खिसक सकती है। जो देखा जाए तो चिंता का विषय है।

इस गंभीर स्थिति को मद्देनज़र नज़र रखते हुए सरकार को इस और तुरंत ही ध्यान देना चाहिए और शीघ्र ही ठोस कदम उठाने चाहिए। साथ ही मोदी सरकार जैसे हमेशा से देश के तीर्थस्थलों  के पुनर्निर्माण का कार्य करवाती है, वैसे ही हिंदुओं के इस पवित्र स्थल जोशीमठ पर भी तत्काल ध्यान देना चाहिए और बड़ी अनहोनी होने से पहले इसे बचा लेना चाहिए।

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