“वामपंथी मूर्ख नहीं हैं, उनके लिए अल्पसंख्यक बस मुस्लिम हैं”, ऋषि सुनक पर रो रहे हैं

इनकी कुंठा लाइलाज है!

अल्पसंख्यक

Source- TFI

आखिर वही हुआ जिसकी सबको कई दिनों से प्रतीक्षा थी। 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर अब एक अंग्रेज़ नहीं, एक देसी का शासन होगा। ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक दीपावली के शुभ अवसर पर निर्विरोध रूप से ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गए हैं। वो ब्रिटेन के प्रथम हिन्दू एवं प्रथम अश्वेत प्रधानमंत्री बने हैं। परंतु क्या इन सब बातों के लिए वो चर्चा में हैं? क्या वो इसलिए चर्चा में है कि वो किस तरह से ब्रिटेन को संकट से उबारने में सहायता करेंगे? बिल्कुल नहीं। ऋषि सुनक चर्चा में है तो वामपंथियों की कृपा से, जो बधाई भी दे रहे हैं तो तंज का तड़का लगाकर। इस लेख में हम आपको वामपंथियों की इसी घृणित और कुत्सित विचारधारा से अवगत कराएंगे, जो अब इस बात पर रो रहे हैं कि ऋषि सुनक ने इनके ‘अल्पसंख्यक’ की पारंपरिक परिभाषा कैसे बदल दी।

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वामपंथियों का ‘अल्पसंख्यक’ राग तो सुनिए

दरअसल, हाल ही में लिज़ ट्रस के त्यागपत्र देने के बाद ब्रिटेन के कंजरवेटिव पार्टी में चुनाव हुआ कि कौन ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनेगा। इस परिप्रेक्ष्य में ऋषि सुनक ने दावेदारी पेश की। कंजरवेटिव पार्टी में पीएम पद की उम्मीदवारी के लिए 100 सांसदों का समर्थन जरूरी था लेकिन पेनी मोर्डेंट चुनाव में खड़े होने के लिए आवश्यक सांसदों का समर्थन जुटाने में नाकाम रही। वहीं, बोरिस जॉनसन पहले ही उम्मीदवारी की दौड़ से पीछे हट चुके थे। ऐसे में ऋषि सुनक के ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया। सुनक के ब्रिटेन का पीएम चुने जाने की खबर आते होते ही सोशल मीडिया पर भारत का कोहिनूर हीरा वापस लौटाने की मांग तेज हो गई। ऋषभ नाम के एक यूजर ने लिखा, “द एम्पायर स्ट्राइक्स बैक! ऋषि सुनक होंगे ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री। कोहिनूर ​हीरा वापस भिजवा दें।”

पर कुछ महानुभाव ऐसे भी थे, जिन्हें यहाँ भी एजेंडा एजेंडा खेलना सर्वोपरि लगा। उदाहरण के लिए पलानीयप्पन चिदंबरम को देख लीजिए। महोदय ट्वीट करते हैं, “पहले कमला हैरिस, अब ऋषि सुनक, अमेरिका और यूके के नागरिकों ने अपने गैर बहुसंख्यक नागरिकों को सहृदय स्वीकारा है और उच्च पदों पर आसीन किया है। समय आ चुका है कि भारत भी इससे सीख ले, विशेषकर वो पार्टी जो बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देती है” –

लगता है बच्चे को टॉफी नहीं मिली, पर इनपर बाद में आते हैं। शशि थरूर इनके सुर में सुर मिलाते हुए कहते हैं, “अगर ये होता है, तो ये बहुत ही दुर्लभ होगा, वो भी अंग्रेज़ों द्वारा कि एक अल्पसंख्यक को सबसे शक्तिशाली पद पर बिठाया गया हो। चूंकि हम भारतीय इनके [ऋषि सुनक के] पद पर आसीन होने का उत्सव मना रहे हैं, तो हम भी पूछना चाहते हैं, क्या ऐसा भारत में हो सकता है?” –

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ठहरिए, ये तो मात्र प्रारंभ है। जब बात भारत को नीचा दिखाने की हो तो अपनी महबूबा मुफ्ती कैसे पीछे रहती? महोदया ने ट्वीट किया, “ये बड़े आनंद की बात है कि यूके का प्रथम भारतीय मूल का पीएम मिलेगा। पूरा भारत सही मायनों में इसका उत्सव मना रहा है परंतु हमें याद रखना होगा कि UK में एक अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री बना है, जबकि हमारे यहां अल्पसंख्यकों को CAA एवं NRC जैसे विभाजक एवं भेदभावपूर्ण अधिनियमों द्वारा शोषण का सामना करना पड़ता है” –

पता नहीं क्यों परंतु ऐसे ही अवसरों पर “मुन्नाभाई” का वो डायलॉग स्मरण होता है, जिसे अगर इनकी भाषा में परिवर्तित करें, “वो अल्पसंख्यक बनने के लिए मुस्लिम होना जरूरी है क्या?” ऐसा क्यों? असल में ये वही वामपंथी हैं, जो कभी चाहते ही नहीं थे कि ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनें क्योंकि वह मूल रूप से सनातनी हैं, अपने संस्कृति से समझौता नहीं करते इत्यादि। अब चूंकि वह प्रधानमंत्री बन चुके हैं तो इसलिए उनकी आड़ में वे पूछ रहे हैं कि अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री कब बनेगा?

अल्पसंख्यकों का मतलब मुस्लिम ही नहीं होता

एक बात बताओ, ये अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री क्या होता है और अल्पसंख्यक माने मुसलमान ही क्यों? क्या सिख, जैन, बौद्ध इत्यादि अल्पसंख्यक नहीं होते? यूं तो भारत को खोल खोल के अपनी जन्म पत्री नहीं बनानी चाहिए परंतु हमारे यहां एक गैर हिन्दू प्रधानमंत्री यानी मनमोहन सिंह पूरे दस वर्ष तक देश की सत्ता पर आसीन थे। ठीक है, वह केवल नाम के प्रधानमंत्री थे परंतु वह थे तो सही और जिसके हाथ में कमान थी, वह कौन सा बहुसंख्यक समाज से आती थीं? सोनिया गांधी भी तो कैथोलिक ईसाई है न! इसपर क्या राय है मेरे प्यारे वामपंथी बंधुओं?

हमारे सर्वोच्च पद यानी भारत के राष्ट्रपति पद को एक बार नहीं, दो बार नहीं अपितु अनेकों बार अल्पसंख्यकों द्वारा ग्रहण किया गया है, जिनमें से तीन बार तो मुसलमानों द्वारा ग्रहण किया गया है। उपराष्ट्रपति का पद भी अल्पसंख्यकों द्वारा कई बार ग्रहण किया गया है और सच पूछो तो कैबिनेट मंत्री की सूची गिनने चलिए तो अल्पसंख्यकों की संख्या गिनते गिनते माथे पर बल पड़ जाएंगे।

अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर, जिसके कारण वामपंथी अधिक चिढ़े हुए हैं। ब्रिटिश वित्त मंत्री रहते हुए ऋषि सुनक ने कहा था कि भारत-ब्रिटेन के बीच वित्तीय सेवा के क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए को लेकर अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने यह तक कहा था कि दोनों देशों में एफटीए पर वार्ता के साथ घनिष्ठ आदान-प्रदान की रोमांचक उम्मीद है। अगर एफटीए पर बात बनती है तो भारत में इंवेस्टमेंट आने की आपार संभावनाएं होंगी, जिससे अर्थव्यवस्था को और शक्ति मिल पाएगी। प्रथम दृष्टया तो यही जान पड़ता है कि भारत के साथ घनिष्ठ संबंध की सुनक बात करते हैं और तो और भारत के संदर्भ में एफटीए को लेकर भी वो सकारात्मक रवैया रखते हैं।

भारतीय मूल का होने मात्र से समर्थन करना कितना सही

ये तो हुई एफटीए की बात। पर यही नहीं, हमें यह समझना होगा कि कुछ मुद्दों पर ब्रिटिश के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन बोलते कुछ थे और करते कुछ थे जिसमें सबसे पहला बिंदु खालिस्तान समर्थन का था। भारत के अनेकों खालिस्तानी आतंकी ब्रिटेन में शरण लेकर बैठे हैं और ब्रिटेन के कानूनों का उन्हें बड़ा लाभ मिलता है। बोरिस जॉनसन का कहना था कि वो इन आतंकियों पर कार्रवाई करेंगे लेकिन उनकी कथनी और करनी में बड़ा अंतर था और यह भारत ब्रिटेन के संबंधों के बीच कमजोरी की एक अहम वजह था। ऐसे में यह माना जा रहा है कि ऋषि सुनक के आने से ब्रिटेन का रुख भारत के प्रति सकारात्मक रहेगा और भारत के दुश्मनों पर ब्रिटिश सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी।

परंतु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि ऋषि सुनक बहुत दूध के धुले है। ज़रूरी नहीं कि भारतीय मूल का होने मात्र से किसी का समर्थन कर देना चाहिए। अगर भारतीय होना इतना ही काम आता तो आज कमला हैरिस वो न होती जो वो हैं। हैरिस के मामले में यह काफी स्पष्ट था और जैसे ऋषि सुनक की उम्मीदवारी का समर्थन किया जा रहा था ठीक उसी तरह भारतीय जड़ों के कारण कमला हैरिस के चुनाव का स्वागत किया गया था। हालांकि, परिणाम क्या रहा वो सबके सामने है। उसी हैरिस-बाइडन प्रशासन ने कश्मीर पर पाकिस्तान समर्थक प्रस्ताव पारित किया।

हैरिस के अतिरिक्त एक ऐसे भारतीय भी रहे हैं जिन्होंने अमेरिकी बनने के बाद स्वयं को भारतीय होने से ही अलग कर लिया था। अमेरिका के लुसियाना के पूर्व गवर्नर भारतीय मूल के बॉबी जिंदल ने अमेरिका में रह रहे भारतीयों को पाठ पढ़ाते हुए कहा था कि “खुद को भारतीय अमेरिकी कहना बंद करें।” उन्होंने स्वयं को भी भारतीय-अमेरिकी कहे जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि “उनके माता-पिता भारत से अमेरिका, अमेरिकी बनने आए थे, न कि भारतीय अमेरिकी।” ऐसे में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने मात्र से यह सुनिश्चित नहीं होगा कि भारत और यूके में सब चंगा सी।

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