दीपिका पादुकोण और अवसाद: ‘डिप्रेशन का कारोबार’ बहुत बड़ा है, बॉलीवुड उसे बढ़ावा दे रहा है

वास्तविक मायनों में मानसिक तौर पर बीमार तो बॉलीवुड है!

Depression

जिस विषय पर हम बात करने जा रहे हैं इस लेख में वह विषय हास्य परिहास का विषय तो कतई नहीं है। इस लेख में हम मानसिक अवसाद की अवस्था के बारे में बात करेंगे और बात करेंगे कि कैसे कुछ कलाकारों के लिए ये गंभीर विषय नहीं अपितु एक लुभावना व्यवसाय है जिसके बल पर ये अपने घरों को भव्य बनाते हैं। बहुचर्चित अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की व्यथा को आप अभी तक जान चुके होंगे। उन्होंने NDTV के साथ बात करते हुए अपनी अलग ही व्यथा व्यक्त की है लेकिन इसके पीछे की सच्चाई क्या है और कारण क्या हैं हम आपको बताएंगे।

दरअसल, दीपिका ने अवसाद के विषय पर बात की। उन्होंने बताया कि “मेरी मां ने अवसाद से निपटने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुझे नहीं पता कि मैं कहां होती अगर मेरी मां ने मेरे लक्षणों की पहचान नहीं की होती।” महोदया ने आगे कहा, “सभी के पास मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवाओं की पहुंच होनी चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य सहायता “जिम की तरह सुलभ” हो” –

अब ये सब सुनकर आपको लगेगा, वाह, क्या उत्तम विचार है। परंतु जो दिखता है, आवश्यक नहीं वही हो। वर्तमान युग बड़ा ही जटिल और विचित्र है और इसमें जीवनशैली यानी लाइफस्टाइल से जुड़े अनेक रोग हैं, जिन्हें समझना और जानना सबके बस की बात नहीं है। ऐसा ही एक रोग है अवसाद, जो जाने कब लोगों में मेनस्ट्रीम बन गय नहीं पता चला।

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यह कोई आम रोग नहीं है

निराश होना एक बात है, अवसाद में जाना दूसरा और यह कोई आम रोग नहीं है, इसके लिए निरंतर बातचीत और उपचार की आवश्यकता होती है, जिसमें आवश्यक नहीं कि केवल दवाइयां ही काम आएं। इस बात पर चर्चित अभिनेता टॉम क्रूज़ ने भी जोर दिया है, जिन्होंने एंटी डिप्रेसेंट के विरुद्ध तब आवाज़ उठाई जब वे कूल भी नहीं बने थे।

2005 में एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “जब कोई कहता है कि उन्हें चिकित्सीय परामर्श से लाभ मिला है, ताकि वे उक्त बीमारी से ठीक हों तो आवश्यक नहीं कि परिणाम शत प्रतिशत सही हो। महिलाएं व्यायाम और संतुलित आहार से अपने आप को ठीक कर सकती हैं, उन्हें ऐसे करतबों की आवश्यकता नहीं”।

टॉम क्रूज़ का संकेत ब्रूक शील्डस की ओर था, जो उस समय अवसाद से गुजर रही थीं और कथित तौर पर एंटी डिप्रेसन्ट का सेवन कर रही थीं। परंतु अपने मुखर स्वभाव के लिए टॉम को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। सोचिए, आज के कैंसिल कल्चर युग में टॉम चचा ने ये बात बोली होती, तो?

मानसिक अवसाद एक ऐसा विषय है जो अब लोगों के लिए कमाई का साधन बन चुका है, जैसे पाश्चात्य जगत में। ‘Decoupled’ देखा है आपने? यदि नहीं, तो अवश्य देखिए। वैसे कोई बहुत बढ़िया सीरीज़ नहीं है, परंतु इसी खोंखलेपन पर थोड़ा प्रकाश अवश्य डाला है इस सीरीज़ ने। अब डिप्रेशन कोई बीमारी नहीं, एक कूल टर्म हो चुका है, जिसे कोई भी आए दिन फेंक रहा है। स्वरा भास्कर जैसे नमूने भी –

 

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दीपिका पादुकोण और अवसाद

परंतु प्रश्न तो अब भी स्वाभाविक है – दीपिका पादुकोण के अवसाद का इन सब से क्या लेना देना? अवसाद की समस्या पर विचार साझा करना एक बात होती है, परंतु उसका व्यवसाय बनाना, और उससे अनुचित लाभ कमाना दूसरा, और दुर्भाग्यवश दीपिका पादुकोण दूसरे मार्ग को अधिक प्राथमिकता देती फिर रही हैं।

समय के चक्र को तनिक घुमाइए। ‘छपाक’ फिल्म स्मरण है? हां वही जहां पर दीपिका ने एक एसिड अटैक सर्वाइवर, मालती अग्रवाल की भूमिका को आत्मसात किया था। अब इसमें नई बात क्या है? स्मरण कीजिए वो दृश्य, जहां दीपिका फूट-फूट के रोई थी।

अब एक एसिड अटैक पीड़िता पर जो बीतती है, उसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते, परंतु फिर कुछ ही दिनों के पश्चात दीपिका ने इसी संबंध में एक वीडियो पोस्ट किया, जिसके कारण उन्हें चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। एक वायरल टिकटॉक वीडियो में उन्होंने मेकअप आर्टिस्ट को उनके तीन फेवरेट लुक्स अपनाने को कहा, जिनमें ओम शांति ओम, पिकू और छपाक के लुक्स शामिल थे

क्या यह निर्लज्जता की पराकाष्ठा नहीं है? क्या दीपिका पादुकोण ने छपाक के प्रमोशन के दौरान लक्ष्मी की कहानी बताते बताते जो आंसू बहाये थे, वो बस दिखावा था? यदि टिक-टॉक के वीडियो पर ध्यान दिया जाए तो ऐसा ही लगता है। फिल्म के प्रमोशन के लिए दीपिका ने जो कदम उठाया है, वो निस्संदेह शर्मनाक और निंदनीय है। एक एसिड अटैक पीड़िता का दर्द दीपिका के लिए सिर्फ मेकअप लुक तक सीमित है? इस कृत्य पर दीपिका की जितनी निंदा की जाये, कम होगी –

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समस्या का समाधान

अब आप बताइए जिनके लिए किसी की पीड़ा, किसी के जीवन भर का कष्ट मात्र व्यवसाय हो, तो उनसे आप मानसिक अवसाद जैसी जटिल समस्या का समाधान ढूंढने की सोच भी कैसे सकते हैं? वो भी उस दीपिका पादुकोण से जिसने 2015 के आसपास ‘माई चॉइस’ वाली वीडियो निकलवाई थी, जहां मैडम जी ने वुमन एमपावरमेंट पर खूब लंबा चौड़ा ज्ञान दिया था। बात यहां तक पहुंच गई कि महोदया के लिए ‘विवाहोत्तर संबंध’ भी ‘माई चॉइस’ बन गई। जी हां, adultery भी दीपिका पादुकोण के लिए एक चॉइस है। अब ये वैधानिक रूप से गलत हो या नहीं इस पर तो लंबी चौड़ी चर्चा हो सकती है, परंतु नैतिक रूप से क्या ये सही है?

अब नैतिकता पर उठी ही है, तो दीपिका पादुकोण के प्रोफ़ाइल पर भी प्रकाश डालते हैं। ये प्रथम ऐसा अवसर नहीं है इन्होंने विक्टिम कार्ड की ऐसी अश्रु गंगा बहायी हो। ज़रा समय का पहिया घुमाइए और चलिए उस समय की ओर, जब महोदया ने दावा किया थी कि इन्हें अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए कितना स्ट्रगल करना पड़ा था। किसको उल्लू बना रही हैं आप? जिसका पहला म्यूज़िक वीडियो हिमेश रेशमिया के साथ आया हो, जिसकी पहली फिल्म शाहरुख खान के साथ आई हो और जिसके पिता बैडमिंटन के सुपरस्टार हों, उसे स्ट्रगल करना पड़ा हो?

गहराइयां की भी चर्चा कर ही लेते हैं। इसमें भी अवसाद यानी डिप्रेशन एक मुख्य बिन्दु था, क्योंकि दीपिका पादुकोण इसकी प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक थी। परंतु इसमें डिप्रेशन पर चर्चा तो नाम मात्र की भी नहीं हुई, और ध्यान देने वाली बात है कि इस फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक कोई तर्क ही नहीं है या तो समुद्र है या फिर अश्लीलता. फिर ये लोग पूछते है कि लोग बॉलीवुड से नफरत क्यों करते हैं? अरे भई, कारण तो दीजिये घृणा न करने का. कारण तो दो एक बार एक भावनात्मक कथा के साथ जुड़ने का।

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गहराइयां में वास्तव में कोई ‘गहराई’ नहीं है

फिल्म गहराइयां में वास्तव में कोई ‘गहराई’ नहीं है, और एक समय के बाद आप उंघते हुए पाए गए, तो उसके लिए केवल और केवल इस फिल्म का लेखन दोषी है. यह फिल्म व्यभिचार को एक ‘अनोखे तरीके से दिखाने का प्रयास कर रही थी’, पर इसके लिए न हमारी भारतीय ऑडियंस पूरी तरह तैयार है और न ही ‘Gehraiyaan’ अपने प्रयास में बिल्कुल भी सफल हो पाई. वह न घर की रही और न ही घाट की. ऐसे में ‘Gehraiyaan’ को संक्षेप में कहें, तो न वह एक रोमांटिक ड्रामा है, न ही एक थ्रिलर है. यह फिल्म भावुक रूप से लोगों को आकर्षित करने का प्रयास करती है, परन्तु वास्तव में ये थाली में प्यार से सजाकर, लगभग सोने का वर्क लगाकर पेश किए गए कचरे के समान है!

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मानसिक अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य निस्संदेह ऐसी समस्याएँ, जिन्हे हमें मिल बांटकर सुलझाना और इसका निवारण करना है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें इसे एक व्यवसाय बनाना है, ताकि दीपिका पादुकोण जैसे अवसरवादियों को लाभ कमाने का भरपूर अवसर मिले।

आज्ञा से जनहित में जारी।

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