राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा को शक्ति और सामर्थ्य से ही बनाए रखा जा सकता है। दूसरी बात, अगर आप में शक्ति नहीं होगी, तब तक आपके अधिकारों के लिए कोई नहीं लड़ेगा और आपको धोखा मिलता रहेगा। भारत के साथ भी लंबे समय से ऐसा ही होते आ रहा था लेकिन जब से पीएम नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, स्थिति बदल गई। आज भारत, वैश्विक देशों की आंखों में आंखे डालकर अपने फैसले लेने का सामर्थ्य रखता है, अपने अधिकार के लिए आवाज उठाता है, किसी से डरता नहीं या किसी के प्रभाव में नहीं आता और यही कारण है कि देश निरंतर अपनी ऊंचाइयों को प्राप्त करता दिख रहा है। पिछली सरकारों की चुप्पी का ही परिणाम है कि पाकिस्तान ने POK पर कब्जा जमा लिया और हम आवाज भी नहीं उठा पाए लेकिन अब इसके लिए आवाज भी उठाई जा रही है और इस पर अपने अधिकार की बात भी कही जा रही है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे मनमोहन सिंह ने सियाचिन को थाली में सजाकर पाकिस्तान को देने की तैयारी कर ली थी लेकिन सियाचिन तो जैसे तैसे बच गया और अब देखिए पीएम मोदी के नेतृत्व में पीओके को लेकर राजनाथ सिंह की गर्जना कराची से लेकर इस्लामाबाद तक गूंज रही है।
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POK को वापस लेने का संकल्प
दरअसल, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पीओके को लेकर कड़े तेवर दिखाए हैं। शौर्य दिवस के अवसर पर उन्होंने साफ कहा है कि पाकिस्तान मानवाधिकारों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाता है लेकिन वह खुद पीओके में लोगों पर अत्याचार कर रहा है। यही नहीं, उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान अब पीओके के लोगों का उत्पीड़न करता है तो उसका अंजाम भुगतना पड़ेगा। राजनाथ सिंह ने कहा कि हमने कश्मीर का विकास कार्य शुरू कर दिया है लेकिन हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हम गिलगित-बाल्टिस्तान नहीं पहुंच जाते। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारे विकास की यात्रा तब पूरी होगी, जब 1947 में भारत आए शरणार्थियों के साथ न्याय होगा। उन्हें जब अपने पूर्वजों की जमीन पर सम्मान के साथ रहने का मौका मिलेगा। उन्होंने कहा कि मैं अपनी सेना और लोगों की ताकत से वाकिफ हूं। वह दिन दूर नहीं हैं, जब हम पीओके को वापस लेंगे और अपने सारे मकसद हासिल करेंगे। यही नहीं, उन्होंने इस दौरान उन लोगों पर भी अटैक किया, जो आतंकवादियों के मानवाधिकार की बात करते हैं। राजनाथ सिंह ने कहा कि इस क्षेत्र में जब भी सेना या पुलिस कोई एक्शन लेती है तो कुछ बुद्धिजीवी कहते हैं कि मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
राजनाथ सिंह ने इस मौके पर 1993 में संसद में पारित प्रस्ताव का भी जिक्र किया। राजनाथ सिंह ने कहा कि हमारी संसद ने गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पूरे पीओके को वापस लेने का संकल्प लिया था और उसे पूरा किए बिना विकास की हमारी यात्रा पूरी नहीं होगी। POK के निवासियों को “निर्दोष भारतीय” के रूप में सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान वहां “अत्याचारों” के लिए “पूरी तरह से जिम्मेदार” है। रक्षा मंत्री ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल का राष्ट्रीय एकता का सपना तब जाकर पूरा होगा जब वर्ष 1947 के शरणार्थियों को पूर्ण रूप से न्याय मिलेगा और उनके पूर्वजों की भूमि उन्हें वापस हासिल होगी।
उन्होंने कहा कि भारत का अभिन्न अंग होने के बाद भी जम्मू और कश्मीर राज्य को दशकों से विकास और शांति से वंचित रहना पड़ा। जम्मू-कश्मीर को तथाकथित ‘विशेष दर्जा’ प्राप्त था लेकिन विशेष होने की बात तो दूर उसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रहना पड़ा था। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इसका परिणाम पाकिस्तान को भुगतना ही पड़ेगा, हम POK के लोगों के दर्द को महसूस करते हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र विकास के पथ की ओर अग्रसर है और नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं। यह सिर्फ एक शुरुआत है।
कांग्रेसियों ने तो POK देने की तैयारी कर ली थी!
ये तो हुई राजनाथ सिंह की बात, जो जम्मू कश्मीर में जाकर सिंह की भांति दहाड़ रहे हैं और POK पर भारत के अधिकार की बात कर रहे हैं लेकिन एक वो समय भी था, जब कांग्रेस के शासन में सरकार पिछलग्गू की भूमिका में नजर आती थी और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना तो दूर, उस पर बात करना भी पसंद नहीं करती थी। दूसरे देशों के इशारे पर सरकार काम करती थी और उसी के हिसाब से फैसले भी लेती थी। आप सभी को अच्छे से याद होगा कि अमेरिका जैसे देशों का प्रभाव पहले भारत के ऊपर कितना ज्यादा था, जो अब इंच भर भी नहीं है।
सियाचिन, जो हमारा है उसे लेकर भी कांग्रेस की स्थिति यही रही, तमाम चीजों को लेकर यूपीए सरकार समझौते करती रही और POK को लेकर भी कांग्रेस ने कुछ खास नहीं किया। ज्ञात हो कि वर्ष 2007 में कथित तौर पर यूपीए सरकार ने थाली में सजाकर सियाचिन को पाकिस्तान को देने की तैयारी कर ली थी! दोनों ही देशों के शीर्ष नेताओं के बीच गुप्त बैठकें हुई थी और इस मामले पर समझौते की बात कही गई थी। देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विशेष दूत रह चुके सतिंदर के लांबा ने इस बात का खुलासा किया था। बताया तो यह भी गया कि तब सरकार ने ‘शांति स्थापित’ करने के बदले, जमीन पर अधिकार तक छोड़ने की तैयारी कर ली थी लेकिन यह समझौता पूरा हो नहीं पाया। अब स्वयं सोचिए अगर यह समझौता पूरा हो गया होता फिर क्या होता?
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हालांकि, कांग्रेस पार्टी और राष्ट्र भक्ति को अलग-अलग रखें तो ज्यादा बेहतर होगा, बाकी आप स्वयं समझदार हैं! ज्ञात हो कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाने के बाद मोदी सरकार प्रदेश की दिशा और दशा तय करने में जी-जान से जुटी हुई है। घाटी के हालात सामान्य करने के प्रयास जोर शोर से किए जा रहे हैं और उसका असर भी अब दिखने लगा है। निवेश भी जम्मू-कश्मीर की ओर आकर्षित हो रहे हैं। कश्मीर के बाद अब सरकार का पूरा ध्यान पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए POK पर टिक गया है। पीओके भारत का भाग है, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा जमा रखा है लेकिन हमारी सरकारों के नकारेपन के कारण आज तक हम इसका समाधान नहीं ढूंढ़ पाए हैं।
शांति का राग अलापने और पिछलग्गू बनने के अलावा पूर्ववर्ती सरकारों ने कुछ किया ही नहीं है और मजे की बात तो यह है कि उनके द्वारा अलापा गया शांति का राग भी किसी स्कैम से कम नहीं था क्योंकि सीमावर्ती इलाके में शांति तो बिल्कुल भी नहीं थी। लेकिन अब और नहीं! मोदी सरकार पीओके को लेकर काफी सक्रिय है और इसे लेकर किसी भी तरह का समझौता हो ही नहीं सकता। POK भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान ने ही भारत के इस हिस्से पर अवैध कब्जा किया हुआ है, इसलिए नई दिल्ली के पास POK से पाकिस्तानी कब्जे वाले लोगों को बाहर निकालने का अधिकार सुरक्षित है। ऐसे में भारत इस तरह के सैन्य अभियान के बाद किसी भी राजनयिक आक्रोश को सीमित कर सकता है।
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