‘मुझ पर भारतीय मूल के लोगों को काम पर नहीं रखने का दबाव डाला जा रहा था’, Infosys के HR ने धमाका कर दिया

भारत का खाया, भारत में कमाया और अब भारतीयों को ही नौकरी नहीं!

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7 भारतीयों ने मिलकर एक कंपनी की शुरुआत की, इन सभी भारतीयों ने इसी देश का नमक खाया और इसी देश में अपनी कंपनी को बड़ा बनाया, इसी देश की शिक्षण संस्थाओं से शिक्षा प्राप्त की, इसी देश में रहकर नाम और दाम कमाया। इस देश ने यानी भारत ने ही इन्हें सबकुछ दिया लेकिन जब वही कंपनी भारतीयों को नौकरी देने से इनकार करने लगे, तो लगता है कि कुछ तो है जो उन्हें प्रभावित कर रहा है। जो भी इस मिट्टी में पलेगा-बढ़ेगा, जो भी इस मिट्टी में रहेगा- वो कैसे अपने ही देश के दूसरे लोगों को नौकरी देने के बजाय विदेशियों को नौकरी देने को प्राथमिकता दे सकता है। यह यकीन करना मुश्किल है लेकिन ऐसा हुआ है और ये देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी ने किया है।

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इस लेख में जानेंगे कि कैसे इन्फोसिस ने भारतीयों के साथ गद्दारी की है।

Infosys की काली सच्चाई 

इन्फोसिस, इस नाम से आज कौन परिचित नहीं है, भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी और दुनिया की बड़ी आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस भारतीय कंपनी ही है जिसका मुख्यालय बैंगलोर में है। इन्फोसिस की कई कहानियां आपने सुनी होंगी, यूट्यूब पर भी कई वीडियो देखी होंगी, गूगल पर कई आर्टिकल पढ़े होंगे। हर जगह आपको उनकी तरक्की की, उनकी सफलता की, उनके संघर्ष की कथा, उनके बुरे दिनों की कहानी मिल जाएगी। लेकिन क्या आपको इससे इतर कहीं कुछ और देखने को या पढ़ने को मिलता है, यकीनन नहीं मिलता होगा क्योंकि कंपनी अपने विरुद्ध कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर पाती है। इसलिए उनकी पीआर टीम हर वक्त इसी काम में लगी रहती है कि कंपनी के विरुद्ध कोई भी स्टोरी न हो, लेकिन आज हम आपको इन्फोसिस के बारे में जो बताने जा रहे हैं वो शायद ही आप जानते होंगे।

एन.आर नारायणमूर्ति ने अपनी पत्नी से 10 हजार रुपये लेकर कंपनी की शुरुआत की थी। ऐसी कहानियां मीडिया में बेचने वाली इन्फोसिस को इसका जवाब देना चाहिए कि आखिरकार अमेरिका में वो भारतीयों को नौकरी क्यों नहीं दे रहे थे? क्यों इन्फोसिस ने अपने HR को यह निर्देश दिया था कि भारतीयों को भर्ती नहीं करना है? क्या भारतीयों में टैलेंट की कमी थी? क्या भारतीय इन्फोसिस में काम करने लायक नहीं हैं? भारतीयों से एनआर नारायणमूर्ति को इतनी दिक्कत क्या है? यह बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं बल्कि हाल ही में इन्फोसिस की अमेरिकी यूनिट के टेलेंट एक्विजिशन की पूर्व उपाध्यक्ष जिल प्रेजीन ने अमेरिकी अदालत में यह जानकारी दी है। उन्होंने कोर्ट को बताया है कि इन्फोसिस की तरफ से उन्हें निर्देश दिए गए थे कि अमेरिका स्थित अपने ऑफिस में भारतीय मूल के लोगों, घर पर बच्चों वाली महिलाओं और 50 या उससे अधिक उम्र के उम्मीदवारों को काम पर रखने से बचें।

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महिलाओं से भी इन्फोसिस को दिक्कत है

भारत में तो इस पर चर्चा हो रही है बल्कि अब तो दुनियाभर में इस बात पर चर्चा हो रही है कि आखिरकार इन्फोसिस में होता क्या है? बच्चों वाली महिलाओं से भी इन्फोसिस को दिक्कत है, क्यों भई? बच्चों वाली महिलाएं काम नहीं कर सकती क्या? उनका दिमाग कुंद हो जाता है क्या? यह क्या सोच है कि जिस महिला ने बच्चे को जन्म दे दिया उसे नौकरी मत दो, कोई अगर भारतीय है तो उसे नौकरी मत दो, यह भेदभाव आखिरकार क्यों?

रिपोर्ट के अनुसार प्रेजीन ने कोर्ट में दिए अपने बयान में कहा है कि मैं कंपनी की तरफ से मिले लिंग, उम्र और राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव करने की सलाह को सुनकर हैरान रह गई थी। उन्होंने आगे कहा, 2018 में इस कंपनी को ज्वॉइन करने के बाद शुरुआती दो महीनों में मैंने इस कल्चर को बदलने की कोशिश भी की थी, लेकिन उस दौरान मुझे मेरे ही सहयोगी की नाराजगी का सामना करना पड़ा था।

प्रेजीन के खिलाफ इंफोसिस ने भी कोर्ट में एक प्रस्ताव देते हुए मुकदमे को खारिज करने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने इंफोसिस की इस मांग को खारिज करते हुए कंपनी से 21 दिन के भीतर लगाए गए आरोपों पर जवाब देने को कहा है

ऐसे में समझना आसान है कि कैसे इन्फोसिस अमेरिका में भारतीयों के साथ भेदभाव कर रही है, योग्य होते हुए भी कंपनी उन्हें भर्ती नहीं कर रही है। ध्यान यह भी देना होगा कि यह कंपनी इसी भारतवर्ष में बनी है, आज भी इसका मुख्यालय इसी भारतवर्ष में है। तो चलिए अब इसी भारतवर्ष में बनी इस कंपनी का इतिहास और थोड़ा-सा देख लेते हैं। पिछले वर्ष यानी 2021 में एक रिपोर्ट सामने आई थी, द वर्ज ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि आईटी कंपनी इन्फोसिस ने अमेरिकी युवाओं की खूब भर्ती की।

हालांकि, उनमें से अधिकतर युवाओं का मानना है कि उन्हें मोटी सैलरी मिली, लेकिन उनका काम कुछ नहीं था। द वर्ज की रिपोर्ट के अनुसार, जब Infosys के पास अपने ग्राहकों के लिए जरूरत से ज्यादा कर्मचारी होते हैं, तो उनके अतिरिक्त कर्मचारी “बेंच” पर रहते हैं, जहां उन्हें कुछ भी नहीं करने के लिए भुगतान किया जाता है। द वर्ज ने ऐसे कई लोगों के उदाहरण दिए हैं, ऐसे ही ‘बेंच’ पर रहने वाले युवाओं में Josh नामक युवा भी था, जिसने महामारी के कारण वर्क फ्रॉम होम काम किया था। उन्होंने बताया, “मैंने बहुत सारे वीडियो गेम खेल कर समाप्त कर दिया।” हालांकि, उसे कई बार इस तरह फ्री के पैसे पर बुरा भी लगा, लेकिन वे बिल्कुल वैसे ही थे जैसे आपको कुछ भी नहीं करने के लिए भुगतान मिल रहा है, यह बुरा कैसे हो सकता है? यह एक सपने की नौकरी की तरह लगता है।“ इस रिपोर्ट के अर्थ को मोटा-मोटी अगर हम समझें तो कह सकते हैं कि इन्फोसिस अमेरिकी युवाओं की भर्ती जरूरत और काम न होते हुए भी कर रही थी जबकि अब भारतीयों के साथ भर्ती में भेदभाव की रिपोर्ट सामने आई है।

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इन्फोसिस को समन

चलिए अब और आगे बढ़ते हैं, आपको याद ही होगा कि कैसे वित्त मंत्रालय ने सार्जवनिक तौर पर इन्फोसिस को समन किया था, इसके पीछे की वजह एकदम स्पष्ट थी कि इनकम टैक्स के ई-फाइलिंग पोर्टल के लॉन्च होने के ढाई महीने बाद भी उसकी कमियां ठीक नहीं हुईं थी। जबकि सरकार कंपनी को 165 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी थी यानी कंपनी ने पैसा रख लिया लेकिन देश का सिस्टम ठीक से काम कर रहा है या नहीं इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं। चलिए, अब और आगे बढ़ते हैं, जब रूस-यूक्रेन के बीच में युद्ध हुआ तो भारत ने इस पर देशहित को ध्यान में रखते हुए एक तरह से न्यूट्रल रहने का निर्णय लिया भारतीय कंपनियां भी भारत सरकार के अनुसार न्यूट्रल रहीं और वो रूस में काम करती रहीं, जबकि पश्चिमी देशों की कंपनियों ने रूस से अपना कारोबार समेटना शुरू कर दिया।

पश्चिमी देशों की कंपनियों का ऐसा करना समझ भी आता है क्योंकि पश्चिमी देश भी रूस के विरुद्ध खड़े हैं लेकिन एक भारतीय ने भी रूस में अपना कारोबार बंद दिया था और यह कोई और नहीं बल्कि इन्फोसिस ही थी। उस वक्त इन्फोसिस के मैनेजिंग डायरेक्टर सलिल पारेख ने कहा था, “जो कुछ भी हो रहा है उस क्षेत्र में, उसे ध्यान में रखते हुए हमने रूस में स्थित अपने सभी केंद्र रूस से बाहर निकालने का निर्णय लिया है। आज न तो हमारे पास कोई रूसी ग्राहक है और न ही भविष्य में हमारे पास किसी रूसी ग्राहक के साथ काम करने का इरादा है।”

इन सभी घटनाओं को देखें- इनको समझें और अब जो ख़बर सामने आई है कि इन्फोसिस ने भारतीयों को नौकरी देने से इनकार किया था तो समझ आता है कि इन्फोसिस ने भारत और भारतीयों के हित से ज्यादा सदैव अपने निजी एजेंडे को फॉलो किया है।

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