कभी जिस देश में फिल्म ‘तुम्बाड़’ को 10 करोड़ कमाने में एडी-चोटी का जोड़ लगाना पड़ गया था वहां कांतारा फिल्म केवल 20 दिनों में ही 171 करोड़ की कमाई कर चुकी है। कांतारा ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया हुआ है। ऋषभ शेट्टी की फिल्म ‘कांतारा’ को रिलीज हुए केवल 20 ही दिन हुए हैं, लेकिन उसके बाद भी यह फिल्म कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों में तीसरे नंबर पर आ गयी है।
और पढ़े: बॉलीवुड की सड़ांध में खिलते हुए कमल के समान है Drishyam 2 का ट्रेलर
फिल्म की कहानी
इस फिल्म में दिखाई जाने वाली कहानी की बात करें तो, इसमें दैव नर्तकों और भूत कोला प्रथा को दर्शाया गया है। जहां इस फिल्म का जादू दर्शकों और बॉक्स ऑफिस के सिर चढ़ कर बोल रहा है। वहीं अब कर्नाटक सरकार भी इस फिल्म से काफी ज्यादा प्रभावित दिखाई दे रही है। क्योंकि अभी हाल ही में कर्नाटक सरकार ने दैव नर्तकों को मासिक भत्ता देने की घोषणा कर दी है। इसके तहत कर्नाटक सरकार की ओर से दैव नर्तकों को हर महीने 2000 का भत्ता देने का ऐलान किया गया है। लेकिन इस भत्ता का लाभ सिर्फ उन नर्तकों को मिल सकेगा जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है।
Adoring Daivas, dance, and divine intervention.
The BJP-led #Karnataka government has announced a Rs 2,000 monthly allowance for ‘Daiva Narthakas’ above 60 years of age.
Bhoota Kola, a spirit worship ritual depicted in the movie #Kantara is part of Hindu Dharma.@shetty_rishab pic.twitter.com/ll4aO1uwQp
— P C Mohan (Modi Ka Parivar) (@PCMohanMP) October 20, 2022
इस भत्ते का ऐलान करते हुए बीजेपी से सांसद पीसी मोहन ने एक ट्वीट कर लिखा कि, “भाजपा के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने 60 वर्ष से अधिक उम्र के दैव नर्तकों को 2,000 रुपये मासिक भत्ता देने की घोषणा की है। कांतारा फिल्म में दिखाया जानी वाला भूत कोला परंपरा हिंदू धर्म का ही हिस्सा है।”
और पढ़े: ‘कंतारा’ ने तोड़े सारे रिकॉर्ड्स, 200 करोड़ी क्लब में शामिल होने वाली है 16 करोड़ में बनी यह फिल्म
तुलुवा जनजातियों की लोकरीतियों
कांतारा फिल्म में हमारे देश की एक ऐसी संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है, जिस पर हम सबको गर्व करना चाहिए परंतु जिससे हम सभी अनभिज्ञ हैं। दरअसल ये फिल्म दक्षिण कन्नड़ संस्कृति के तुलुवा जनजातियों की लोकरीतियों पर आधारित है। ‘कांतारा’ 20 दिनों पहले ही सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई, जिसे ऋषभ शेट्टी द्वारा लिखा, निर्देशित किया गया है एवं प्रमुख भूमिका भी उन्होंने ही निभाई है।
कांतारा की कहानी दैव नर्तकों और भूत कोला प्रथा पर आधारित है। दैव नर्तक वो लोग कहे जाते हैं जो दैव पूजा के समय दैव के जैसी वेश-भूषा पहनकर नृत्य करते हैं। ‘कांतारा’ की कहानी वनवासियों के जमीनों को सरकार और जमींदारों के द्वारा कब्जाने के इर्द-गिर्द घूमती है। क्या किसी जंगल क्षेत्र को रिजर्व घोषित करने से पहले सरकारें वहां के वनवासी समाज की संस्कृति और परंपराओं को ठेस पहुंचाए बिना उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्थाएं करती हैं? क्या दंबंगों के अत्याचार से वनवासी समाज आज भी मुक्त है? ये वो प्रश्न हैं जो इस फिल्म को देखने के बाद उठेंगे। इसमें ये भी दिखाया गया है कि कैसे आस्था के मामले में वनवासी समाज से पूरे हिन्दुओं को सीखना चाहिए और इससे कई वामपंथियों के स्थान विशेष में जबरदस्त ज्वाला भी सुलगी है!
और पढ़े: दक्षिण कन्नड़ की संस्कृति अद्वितीय है और ‘कांतारा’ ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं
अति मनोरम यक्षगान नाटिका
इस फिल्म में कर्नाटक का अति मनोरम यक्षगान नाटिका अथवा ‘यक्षगण’ थिएटर भी ‘भूत कोला’ से ही प्रेरित है। इसी से मिलता-जुलता नृत्य मलयालम भाषियों के बीच भी लोकप्रिय है, जिसे ‘थेय्यम’ कहते हैं। अब इसमें भी कई तरह के देवता हैं, जिनकी अलग-अलग वनवासी समाज पूजा करते हैं। इनमें से एक तो ऐसे हैं जिनका चेहरा मर्दों वाला और गर्दन के नीचे का शरीर स्त्री का है। उनके चेहरे पर घनी मूंछें होती हैं लेकिन उनके स्तन भी होते हैं। उन्हें ‘जुमड़ी’ कहा जाता है।
ऐसे अनेकों देवता हैं, जिनका अध्ययन करने पर हमें उस खास समाज के इतिहास और संस्कृति के बारे में पता चलता है। हर गांव में आपको वहां अलग-अलग देवता मिल जाएंगे। नर्तकों का मेकअप भी अलग-अलग रीति-रिवाजों की प्रक्रिया के लिए अलग-अलग ही होता है। स्थानीय जमींदार, प्रधान या फिर जन-प्रतिनिधि को ‘भूत कोला’ के दौरान ‘दैव’ के सामने पेश होना पड़ता है क्योंकि वो उनके प्रति उत्तरदायी होते हैं।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।