अंत निश्चित है, हर उस फैलाए गए भ्रम और दुष्प्रचार का जिसके आधार पर सनातन धर्म को बर्बाद करने के प्रयास किए जाते हैं। सनातनियों का अपमान कर उन्हें नीचा दिखाना न केवल अल्पसंख्यकों बल्कि लिबरल ब्रिगेड का भी पसंदीदा काम हो गया है। उनकी सोच ऐसी हो चुकी है कि वो अपने ही सनातनी अस्तित्व पर सवाल उठाने से भी नहीं हिचक रहे हैं। वहीं कुछ शांतिदूत इस मुद्दे पर लगातार मिशन मोड में रहे हैं कि कैसे हिंदुओं की संस्कृति को क्षति पहुंचाई जा सके। लेकिन हिंदुओं के पास ठोस मान्यताएं और धार्मिक विश्वास है जिसका नतीजा यह है कि उनकी संस्कृति को क्षति पहुंचाने की सोच रखने वाले स्वयं ही बर्बादी की कगार पर पहुंच जातें हैं और कुछ ऐसा ही एक बार फिर हुआ है।
ऐतिहासिक निर्णय
2019 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय लिया था जिससे हिंदू विरोधी सोच रखने वालों और सनातन को खत्म करने की मंशा रखने वालों को बड़ी चोट पड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट ने दशकों से चले आ रहे अयोध्या के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को हल कर राम जन्मभूमि का अधिकार हिंदू पक्ष को देते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड को एक बड़ा झटका दिया था। इसके साथ ही यह तय हो गया था कि सनातनियों को कुछ समय के लिए परेशान तो किया जा सकता है लेकिन आस्था के मुद्दे पर सनातनियों को पराजित करना संभव नहीं है।
राम जन्मभूमि मुद्दे के हल होने के बाद भी वक्फ बोर्ड सुधरा नहीं है। वक्फ बोर्ड और इस्लामिक कट्टरपंथी अनेक हिंदू मंदिरों और आस्था के प्रतीकों पर अपना दावा करते रहे हैं। इस बार वक्फ बोर्ड ने बेट द्वारका नामक धार्मिक स्थल को अपना शिकार बनाने का प्रयास किया है। इन्होंने पूरा प्रयास किया कि किसी भी तरह द्वारका बेट के दो द्वीपों को अपना बताकर इस जगह पर कब्जा किया जाए लेकिन इस बार उनके मंसूबों को झटका लगा है क्योंकि अब इन क्षेत्रों पर दावा करने वाले अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेते हुए उनके कब्जों को ताबड़तोड़ तरीके से तोड़ा जा रहा है।
दरअसल सूचनाएं सामने आई थीं कि बेट द्वीप यानी बेट द्वारका की भूमि पर विभिन्न प्रकार की अवैध गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ-साथ पूरे सौराष्ट्र पुलिस बेड़े के अधिकारियों ने एक साथ एक मेगा ऑपरेशन शुरू किया है। भगवान श्रीकृष्ण का महल और सरकारी भूमि पर धार्मिक और अन्य जबरदस्ती गतिविधियां भी देखी गईं। बेट द्वारका में पुलिस और प्रशासन द्वारा अवैध निर्माण को तोड़ना शुरू कर दिया गया है।
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पांच जेसीबी मशीनों से तोड़फोड़
बेट द्वारका में हनुमान दांडी मार्ग और बालापार क्षेत्र में पांच जेसीबी मशीनों से तोड़फोड़ का कार्य कर दिया गया। बेट द्वारका और ओखा के कुछ मुस्लिम नेताओं को पुलिस ने सतर्कता बरतते हुए राउंड ऑफ कर दिया है। साथ ही पुलिस ने बेट द्वारका के निवासियों से अपने घरों में ही रहने की अपील की है। इसलिए द्वारका में पुलिस की मौजूदगी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक बेट द्वारका में एसआरपी और एसपी समेत भारी पुलिस बल तैनात किया गया। बेट द्वारका में रेंज आईजी समेत शीर्ष पुलिस अधिकारी मौजूद थे। बेट द्वारका में करीब 1,000 पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया था। सरकारी भूमि पर भी अवैध धार्मिक अतिक्रमण हटाया गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक देवभूमि द्वारका जिले के बेट द्वारका में पुलिस टीम हथियार और आंसू गैस समेत साधनों से लैश होकर डिमोलिशन करने पहुंची थी। इनके साथ ही राजस्व, मरीन, वन विभाग और अन्य टीमें भी पहुंच गई। शनिवार को देर तक चली कार्रवाई में प्रशासन को करीब 55 हजार वर्ग फीट जमीन से अतिक्रमण हटाने में सफलता मिली। कुल 21 जगहों पर प्रशासन का बुलडोजर चलाया गया है।
अहम बात यह है कि इसकी कीमत करोड़ों रुपये बताई जाती है। संवेदनशील माने जाने वाले बेट द्वारका में लोगों को काम के बिना बाहर आवाजाही पर रोक लगा दी गई थी। इस मामले में स्थानीय प्रशासन ने सख्ती बरतते हुए इस क्षेत्र में जैमर का भी इस्तेमाल किया जिससे अफवाह फैलाने पर रोक लग सके। वहीं कार्रवाई में द्वारका जिले की पुलिस के अलावा राजकोट, पोरबंदर, सुरेन्द्रनगर, जामनगर, मोरबी जिले की पुलिस शामिल रहे थे।
बेट द्वारका में सुबह से ही बोटों में सवार होकर पुलिस पहुंचने लगी थी। इनके साथ दूसरे विभाग के कर्मचारी भी शामिल रहे थे। इस कार्रवाई में विशेष रूप से लाई गई 5 जेसीबी की मदद से डिमोलिशन किया गया। जिले के पुलिस अधीक्षक नितेश पांडेय ने बताया कि समुद्री सीमा की सुरक्षा और देश की आंतरिक सुरक्षा के संबंध में बेट-द्वारका में हुए अतिक्रमण के संबंध में सर्वे किया गया था।
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अतिक्रमण हटाने के लिए कार्रवाई
इसके बाद नियमानुसार सभी को नोटिस देकर स्थान खाली करने की समय सीमा तय की गई थी। इसके बाद अतिक्रमण हटाने के लिए कार्रवाई शुरू की गई। इसमें 9 पुलिस उपाधीक्षक, पुलिस इंस्पेक्टर, पीएसआई, हथियारधारी एसआरपी भी शामिल थे। हाल में दुकानों और कच्चे-पक्के मकानों को तोड़ने का काम हनुमानदांडी और बालापुर क्षेत्र से शुरू किया गया था। यह एक कब्जा था जो कि सनातनियों की हिंदू मान्यताओं को वक्फ बोर्ड द्वारा चोट पहुंचाने की कोशिश का नतीजा था।
वक्फ बोर्ड ने इस जमीन को अपना बताने की कोशिश की लेकिन इस मुद्दे पर बड़ा झटका बोर्ड को गुजरात हाईकोर्ट से लगा। गुजरात उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड के इस दावे पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं और इसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया। आपको बता दें कि बेट द्वारका में करीब आठ टापू है, जिनमें से दो पर भगवान कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं।
इस मामले में प्राचीन कहानियां बताती हैं कि भगवान कृष्ण की आराधना करते हुए मीरा यहीं पर उनकी मूर्ति में समा गई थीं। बेट द्वारका के इन दो टापू पर करीब 7,000 परिवार रहते हैं, इनमें से करीब 6,000 परिवार मुस्लिम हैं। यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से कुछ ही दूरी पर स्थित है। वक्फ बोर्ड इसी के आधार पर इन दो टापू पर अपना दावा जताता है कि यहां बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम है और इसीलिए इस बेट द्वारका के टापुओं पर मुस्लिम वर्ग और वक्फ बोर्ड का हक है।
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मुस्लिम वर्ग को झटका
गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले को ज्यादा नहीं बढ़ाया। वक्फ बोर्ड आए दिन किसी ना किसी सनातनी मंदिर की जमीन को अपना बनाकर उस पर कब्जा करने की नीति अपनाने लगता है, लेकिन मुस्लिम वर्ग को अब झटका लगा है। एक अहम बात यह भी सामने आई है कि हाल ही में जिस पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नामक इस्लामिक संगठन बैन किया गया था उसका सीधा संबंध भी एस याचिका और वक्फ बोर्ड की जमीन वाले दावे से हैं। वक्फ बोर्ड को आक्रोशित करने और उनसे इस मुद्दे पर कोर्ट जाने की बात करते रहे। वहीं पीएफआई के खिलाफ पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करके उसका अस्तित्व तक मिटा दिया है और अब द्वारका के इस मुद्दे पर पीएफआई की मदद से आवाज उठाने वाले सनातन विरोधी लोगों को भी बुलडोजर एक्शन के बाद तगड़ा झटका लगा है।
अब वक्फ बोर्ड को सीधे तौर पर ये एहसास हो जाना चाहिए कि हिंदू अपनी धार्मिक मान्यताओं वाली किसी भी जमीन को छोड़ने वाले नहीं है। यदि मुस्लिम वर्ग यह सोचता है कि राम मंदिर मुद्दे के हल होने के बाद सनातनी आगे अपने मंदिरों के लिए वैधानिक लड़ाई नहीं करेंगे, तो वे गलत हैं।
एक अहम बात यह भी है कि मुस्लिम वर्ग को प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट से संरक्षण की उम्मीद रहती है लेकिन वाराणसी के ज्ञानवापी केस से लेकर मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि शाही मस्जिद विवादित मामले में कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट तक को किनारे कर दिया और यही आने वाले समय में अन्य मंदिरों के साथ जुड़े विवादों को लेकर भी हो सकता है और यह वक्त बोर्ड के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका होगा।
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