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एस जयशंकर ने तीखी आलोचना के साथ संयुक्त राष्ट्र की बखिया उधेड़ दी

सीना ठोक कर सत्य कहते हैं एस जयशंकर

TFI Desk द्वारा TFI Desk
14 October 2022
in विश्व
जयशंकर संयुक्त राष्ट्र
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कहते हैं कि यदि पंचों की ताकत कम हो तो उनका फैसला कोई नहीं मानता, न्यायालय यदि एक दो बार गलत फैसले दे दें तो उनकी विश्वसनीयता भी खत्म हो जाती है। समय के साथ यदि इंसान या संस्थान न बदले तो वह बर्बाद हो जाता है। इन संस्थानों की हालत ऐसी हो जाती है कि कोई कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी इनके द्वार पर नहीं दिखता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर आज हम इस तरह की बातें क्यों कह रहे हैं? यह सभी बातें संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए सही सिद्ध होती हैं और जिसे लेकर बड़ा बयान किसी और ने नहीं बल्कि भारतीय विदेश मंत्री और वर्तमान में अपने स्पष्ट और प्रभावशाली बयानों के लिए चर्चा का विषय बने एस जयशंकर ने दिया है।

और पढ़ें- पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का अथाह प्रेम एस जयशंकर के शब्दों को सत्य सिद्ध करता है

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जयशंकर की तीखी लताड़

एस जयशंकर को जब से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश मंत्रालय की कमान दी है तब से वो फॉर्म में दिखाई दे रहे हैं। वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक मामलों को अपनी जबरदस्त क्षमता से हैंडल करने वाले एस जयशंकर उन देशों को तीखी लताड़ भी लगाते रहे हैं जो जरा सा भी भारत विरोधी बयान देते हैं। विशेष यह है कि एस जयशंकर ने दुनिया का चौधरी बनने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ को भी अवसर पड़ने पर आड़े हाथों लिया है और यह बता दिया कि भारत के हित के साथ यदि ऊंच नीच हुई या वैश्विक स्तर पर किसी छोटे देश के साथ अन्याय हुआ तो भारत मुखरता से आवाज उठाएगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ सच का साथ और सही के साथ कभी नहीं खड़ा दिखता है बल्कि जिस तरफ अधिक भार होता है उसी तरफ झुक जाता है। यही कारण है कि एस जयशंकर ने समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की बात की है और ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान एक इंटरव्यू में एक बार फिर एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में बड़े सुधारों की बात की। उन्होंने यह तक कहा है कि भले ही यह काम मुश्किल है लेकिन इसे करना होगा वरना संयुक्त राष्ट्र की हैसियत खत्म होते अधिक समय नहीं लगेगा।

दरअसल, विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार मुश्किल कार्य है लेकिन इसे किया जा सकता है। उन्होंने साथ ही आगाह किया कि अगर बिना देर किए सुधारों को लागू नहीं किया गया तो यह विश्व निकाय ‘अप्रासंगिक’ बन जाएगा। जयशंकर ने यह टिप्पणी लोवी इंस्टीट्यूट में भारत और ऑस्ट्रेलिया के कूटनीतिक संबंधों से जुड़े विषय पर अपने संबोधन के बाद एक प्रश्न के उत्तर में की है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के संबंध में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में जयशंकर ने कहा, ‘यह मुश्किल काम है, लेकिन इसे किया जा सकता है लेकिन इसे जरूर और जल्द से जल्द करना होगा।

Just another Gigachad moment by our foreign minister..pic.twitter.com/fbyXc1ly7X

— The Frustrated Indian (@FrustIndian) October 12, 2022

और पढ़ें- जयशंकर ने पाकिस्तान को लेकर एक बार फिर अमेरिका की बैंड बजा दी

संयुक्त राष्ट्र की चुप्पी

ध्यान देना होगा कि भारत के कश्मीर से जुड़े मुद्दों समेत हमारे आंतरिक मसलों पर संयुक्त राष्ट्र हमेशा ही चुप्पी साध लेता है। वहीं भारत इन मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र से कोई बयान देने को कहता है तो एक साधारण सा बयान देकर मामले को रफा दफाकर देता है। भारत एक मजबूत राष्ट्र है, इसके बावजूद उसके मुद्दों को अनेक बार संयुक्त राष्ट्र में आवश्यक महत्व नहीं मिलता है लेकिन कई ऐसे छोटे देश भी हैं जो कि अपनी मांगों को लेकर चीख़ते रह जातें हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र या उसके प्रमुख देशों के कानों पर न्याय और नीतियों की जूं तक नहीं रेंगती है। यही कारण है कि अब छोटे देश अपने मसलों को संयुक्त राष्ट्र के समक्ष लेकर भी नहीं जाते हैं।

एस जयशंकर ने  भारत के अलावा छोटे देशों की मांगों को लेकर कहा कि ऐसे महाद्वीप हैं, जो वास्तव में महसूस करते हैं कि सुरक्षा परिषद की प्रक्रिया उनकी समस्याओं पर संज्ञान नहीं लेती। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि यह भाव संयुक्त राष्ट्र को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। इस समय का एक अहम घटनाक्रम है कि (अमेरिकी) राष्ट्रपति जो बाइडेन ने स्वीकार किया कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत है, यह छोटी घटना नहीं है। लेकिन हमें इसकी जरूरत है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि वर्षों से इन सुधारों को क्यों बाधित किया गया।’

इसके साथ ही एस जयशंकर ने मुखरता के साथ संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की वकालत की है। एस जयशंकर ने वैश्विक स्तर पर आगाह करते हुए कहा, ‘हम अच्छी तरह जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार करना ऐसा कुछ है जिसे करना आसान नहीं होने वाला… लेकिन यह ऐसा कुछ है जिसे करना होगा। अन्यथा, साफगोई से कहूं तो इसकी परिणति संयुक्त राष्ट्र की बढ़ती अप्रांसगिकता होगी।’

सपष्ट रूप से कहे तो यदि अब संयुक्त राष्ट्र में अहम सुधार नहीं किए गए तो यह मात्र एक झुनझुना बनकर रह जाएगा और वैश्विक स्तर के मुद्दों पर कोई भी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई टिप्पणियों और दिए गए आदेशों को तवज्जो नहीं देगा और यह एक शर्मनाक बात होगी‌।

और पढ़ें- जयशंकर के ‘स्वैग’ वाले बयानों की सूची, जब सामने वाले को विदेश मंत्री ने ‘सुन्न’ कर दिया

संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की बात

ऐसा नहीं है कि भारत ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की बात कही है‌। भारत की लंबे वक्त से यह मांग रही है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था और एक बड़ी वैश्विक जनसंख्या का हिस्सा होने के नाते यह आवश्यक है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य हो। इसके बावजूद जब जब यह बात उठती है तो भारत के विरोध में आवाज़ उठाने वाला पहला देश चीन होता है और चीन को लगता है कि यदि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मिल गई तो दक्षिण एशिया में उसका कथित प्रभुत्व खत्म हो जाएगा।

इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का रुख सदैव ही उदासीनता वाला रहा है जिसके चलते भारत को बहुत मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा था। हाफिज सईद को अतंरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के मुद्दे पर भारत के पसीने छूट गए थे। वहीं मौलाना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में आज भी चीन वीटो करके बैठा है। नतीजा यह हुआ है कि चाहकर भी संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर के खिलाफ आगे की कार्रवाई नहीं हो पा रही है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र में पर्दे के पीछे से चीन पाकिस्तान पोषित आतंकी मसूद अजहर को सपोर्ट कर देता है।

इसके अलावा अनैतिक मुद्दों से लेकर कमजोर देशों पर कार्रवाई करने के मुद्दे पर भी संयुक्त राष्ट्र का रुख विवादित रहा है। कुछ इसी तरह रूस यूक्रेन युद्ध पर भी संयुक्त राष्ट्र का रुख  अमेरिका और नाटो देशों की तरफ है। इसकी अहम वजह यह है कि अमेरिका से संयुक्त राष्ट्र को बड़ी मदद मिलती है। वहीं संयुक्त राष्ट्र को नाटो के ही अन्य देश खूब आर्थिक प्रोत्साहन देते हैं। ऐसे में केवल रूस ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के किसी भी देश के खिलाफ यदि आवाज उठती है तो संयुक्त राष्ट्र उसका ही साथ देता दिखता है जो कि अमेरिका या नाटों देशों का समर्थक हो।

और पढ़े- वैश्विक मुद्दों पर दखल न देने वाली सोच को बदलना होगा, हमें इससे ऊपर उठने की जरुरत है- एस जयशंकर

झूठ का प्रचार

वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के मामले में भी संयुक्त राष्ट्र का रुख विवादित था। आश्चर्यजनक बात यह है कि वायरस को लेकर पूरी दुनिया में चीन द्वारा बोले गए झूठ को प्रचारित करने में संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी और नतीजा ये हुआ कि दुनिया के करोड़ों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं‌। यदि यह कहा जाए कि आज के वक्त में दुनिया में जितनी भी दिक्कतें हैं उनमें से आधी दिक्कतें संयुक्त राष्ट्र संघ की ढुलमुल नीति के कारण है तो शायद यह बात ग़लत नहीं होगी।

यही कारण है कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ऑस्ट्रेलिया में खुलकर यह ऐलान कर दिया है कि यदि अब संयुक्त राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बड़े बदलाव नहीं किए गए तो संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व खत्म होने में अधिक समय नहीं लगेगा।

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Tejas Under Fire — The Truth Behind the Crash, the Propaganda, and the Facts

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