कपिल देव, इस नाम से आप भली भांति परिचित होंगे। कौन जानता था कि 6 जनवरी 1959 को चंडीगढ़ में जन्मा यह खिलाड़ी एक दिन पूरे भारतीय क्रिकेट को ही पलट कर रख देगा, लेकिन हुआ कुछ ऐसा ही। नवंबर 1974 में, अपने 17 वें जन्मदिन के दो महीने बाद, कपिल देव ने पंजाब के खिलाफ अपने गृह राज्य हरियाणा के लिए खेलते हुए प्रथम श्रेणी में में अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की, जहां उन्होंने महज 39 रन देकर 6 विकेट झटके और पंजाब को सिर्फ 63 रन पर रोक दिया। हालांकि, उसी वर्ष, उनके पिता का निधन हो गया जो अपने बेटे को क्रिकेट की दुनिया जीतने देखे बिना ही इस दुनिया से चले गए। 16 अक्टूबर 1978 को, उन्होंने फैसलाबाद में पाकिस्तान के खिलाफ खेलते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट करियर की शुरुआत की। 1 अक्टूबर 1978 को, देव ने पाकिस्तान के खिलाफ अपना ODI डेब्यू किया और देखते ही देखते भारतीय क्रिकेट के हीरो बन गए।
25 जून 1983, यह भारतीय क्रिकेट के इतिहास की एक ऐसी तारीख थी, जिसने भारतीय क्रिकेट की दिशा और दशा को ही पलटकर रख दिया। वह क्षण हमारी सचेत स्मृति में विशद रूप से अंकित हो गया है, जिसे कोई भी मिटा नहीं सकता है। इसी दिन भारत ने तब के चैपिंयन वेस्टइंडीज से उसकी बादशाहत छीनते हुए पहली बार विश्व विजेता का खिताब अपने नाम किया था। हमारी टीम ने यह कारनाम कपिल देव की कप्तानी में किया था, जिन्होंने उस टूर्नामेंट में काफी जबरदस्त प्रदर्शन किया था। कपिल देव के नेतृत्व में ही एक अंडरडॉग टीम ने शक्तिशाली वेस्टइंडीज को हराकर इतिहास रच दिया था।
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कपिल देव का डेब्यू और 1983 का विश्वकप
1983 विश्व कप का 20वां मैच, भारत बनाम जिम्बाब्वे के बीच था, जिसने भारत के भाग्य को बदलकर रख दिया था। जब भारतीय टीम काफी मुश्किल में थी और आधे बल्लेबाज 17 रन के मामूली स्कोर पर ही पवेलियन लौट गए थे, तब कप्तान उर्फ हरियाणा हरिकेन- कपिल देव अपना कमाल दिखाने फील्ड पर आए। कुछ ही समय में उन्होंने गेम पलट कर रख दिया और तेज गति से 175 रन बना डाले। उनकी तेज पारी ने भारत को ऐसी गति दी, जो अंतत: भारतीय कप्तान कपिल देव के साथ प्रतिष्ठित 1983 विश्व कप ट्रॉफी उठाने के साथ ही समाप्त हुई लेकिन कपिल देव को वन-डे वंडर बॉय समझना उनके खेल के साथ घोर अन्याय होगा।
वास्तव में, आज से 44 वर्ष पहले यानी 16 अक्टूबर, 1978 को ही राष्ट्र के उस लीज़ेंड का निर्माण हो गया था। उन्होंने रजनी ट्रॉफी में अपने गृह राज्य के लिए काफी अच्छा प्रदर्शन किया था और नतीजा यह हुआ कि 19 वर्षीय कपिल देव को भारतीय टीम में मौका मिल गया। 1978 में पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में अपना पदार्पण किया था। पाकिस्तान के कप्तान मुश्ताक मोहम्मद ने इस महत्वपूर्ण मैच में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी हासिल कर ली थी। माजिद खान और सादिक मोहम्मद जैसे बल्लेबाजों के सामने पहली बार कपिल देव गेंदबाजी कर रहे थे। अपनी तेज गति और बेहतरीन स्विंग से इस युवा तेज गेंदबाज ने मैदान में समा बांध दिया था।
हालांकि, पाकिस्तानी बल्लेबाजों ने पहली पारी में अच्छा प्रदर्शन किया। पाकिस्तानी बल्लेबाज जहीर अब्बास और जावेद मियांदाद ने 255 रनों की विशाल साझेदारी की थी। पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाजी करते हुए पहली पारी में 8 विकेट पर 503 रन बनाकर घोषित की थी। पहली पारी में कपिल को 16 ओवर गेंदबाज मिली जिसमें कुल 71 रन खर्च किए और विकेट हासिल करने में नाकाम रहे। इसके बाद जब बल्लेबाजी का मौका मिला तो पहली पारी में वह 8 रन ही बना पाए। उनको आठवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजा गया था।
लेकिन उन्होंने दूसरी पारी में अपनी उपस्थिति का एक बड़ा नमूना पेश किया और पाकिस्तान के सलामी बल्लेबाज सादिक मोहम्मद को आउट करके अपना पहला अंतरराष्ट्रीय विकेट हाथ लिया। 12 ओवर में केवल 25 रन देकर सबसे किफायती गेंदबाज भी बन गए। भारतीय सलामी बल्लेबाजों सुनील गावस्कर और चेतन चौहान ने अपने प्रयासों के चलते यह मैच ड्रॉ करवा दिया। पाकिस्तान ने यह टेस्ट श्रृंखला 2-0 से जीत ली थी। इसके बावजूद भी प्रतिभाशाली ऑलराउंडर कपिल देव के रूप में भारत को एक बड़ा सकारात्मक परिणाम मिला क्योंकि उन्होंने अपने अच्छे प्रदर्शन से सब का दिल जीता लिया था। इस मैच में उन्होने सात विकेट चटकाए और तीन टेस्ट मैचों में 159 रन बनाए।
कपिल देव- न भूतो न भविष्यति
इस ऑलराउंडर ने कुल 131 टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। जिसमें उन्होंने 5248 रन बनाए और 434 विकेट लिए। वह एक ऐसे इकलौते ऑलराउंडर हैं जिन्होंने 400 विकेट लेने के साथ-साथ 4000 से भी ज्यादा रन बनाए थे। उन्होंने भारत के लिए 225 एकदिवसीय मैच खेले, जिसमें उन्होंने 253 विकेट लिए और 3,783 रनों का पहाड़ खड़ा किया। अनुभवी क्रिकेटर लगभग 16 वर्षों तक भारत के लिए क्रिकेट की पिच पर देश का नाम रोशन करते रहे। अपने शानदार प्रदर्शन के साथ, वह क्रिकेट के खेल के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध ऑलराउंडरों में से एक बन गए। उन्होंने क्रिकेट के प्रति अपने जुनून का ऐसा परिचय दिया, जो क्रिकेट के इतिहास में सुनहरे अक्षरों मे लिखा है। उन्हें देखकर लाखों लोगों को क्रिकेट के प्रति जुनून जाग गया। आज वो लाखों लोगों के आदर्श हैं। उनका धैर्य और जुनून का मिश्रण कई नए क्रिकेटरों के लिए एक सबक है। कपिल देव ने भारतीय क्रिकेट के पाठ्यक्रम को एक नयी राह की ओर अग्रसर किया।
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