रेप यानी दुष्कर्म शब्द का नाम आते ही हम सभी के मन में कई सारी मिश्रित भावनाएं जागृत हो जाती है। कुछ लोग जहां दुष्कर्म पीड़िता के साथ अपना दुःख और संवेदनाएं प्रकट करते हैं, तो वहीं अधिकतम लोग दुष्कर्म से जुड़ी खबरें सुनते ही क्रोधित हो उठते हैं। और जब बात किसी मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म हो तो इनके बारे में सुनकर दिल दहल उठता है। बलात्कारी चाहे कोई भी हो उसके लिए हम अपने देश के कानून से भी इसी तरह के क्रोध और सख्त से सख्त सजा देने की उम्मीद करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि कोर्ट द्वारा दोषियों को ऐसा दंड दिया जाये, जो उदाहरण बने और कोई भी उस तरह के कृत्यों को दोहराने से पहले सौ बार सोचे। परंतु हाल ही एक मामले में इसका कुछ उल्टा ही होता हुआ देखने को मिला है।
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हाईकोर्ट ने कम कर दी बलात्कारी की सजा
मध्य प्रदेश में हाई कोर्ट के द्वारा दुष्कर्म के आरोपी को लेकर एक ऐसा निर्णय सामने आया है, जिसने बारे में जानकर शायद आप थोड़े चौंक जाएंगे। मध्य प्रदेश की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में अपने एक फैसले में रेप करने वाले शख्स की आजीवन कारावास की सजा को 20 साल की सजा में बदल दिया है। खंडपीठ के द्वारा दोषी की आजीवन कारावास की सजा इस आधार के चलते कम कर दी गयी है कि दोषी ने चार वर्षीय मासूम पीड़िता के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसे जिंदा छोड़ दिया था।
पूरा मामला चार वर्षीय बच्ची के बलात्कार से जुड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दवा और जड़ी-बूटी बेचने वाले रामसिंह को चार साल की बच्ची के साथ रेप का दोषी पाया गया था। 31 मई 2007 को रामसिंह ने नाबालिग को एक रुपये का लालच देकर टेंट में बुलाया और वहां उसके साथ बलात्कार की घटना को अंजाम दिया। 2009 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश इंदौर ने उसे दोषी ठहराया और आजीवन कारावस की सजा सुनाई।
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बच्ची को जिंदा छोड़ दिया, इसलिए दयालु था बलात्कारी?
आरोपी को चार साल की छोटी बच्ची से रेप करने का दोषी पाया गया है, जिस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2) (एफ) के तहत केस दर्ज हुआ था। आरोपी ने अदालत में अपना दोष साबित होने के विरुद्ध एक अपील दायर की थी। दोषी के वकील ने कोर्ट में रामसिंह को झूठे केस में फंसाने का दावा किया। वकील के अनुसार दोषी ने गिरफ्तारी के समय से लेकर अब तक करीब 15 वर्ष जेल में बिता लिये है। कोर्ट ने अब इस मामले पर निर्णय देते हुए दोषी आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 साल करते हुए यह कहा कि उसने दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिन्दा छोड़ दिया इसलिए वो काफी ”दयालु” था।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर और जस्टिस एसके सिंह ने दोषी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा– “ऐसी परिस्थितियों ने न्यायालय को ट्रायल कोर्ट के द्वारा साक्ष्य की सराहना करने और अपीलकर्ता के इस भयानक कृत्य पर विचार करने में कोई त्रुटि नहीं मिलती है। याचिकाकर्ता की राक्षसी कृत्य को ध्यान में रखते हुए, जो एक महिला की गरिमा का सम्मान नहीं करता है और चार साल की बच्ची के साथ भी यौन अपराध करने की प्रवृत्ति रखता है। कोर्ट इसे एक उपयुक्त मामला नहीं मानती, जहां पहले से दी गई की सजा को कम किया जा सके।” हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने अपने आदेश में आगे कहा- “हालांकि इस तथ्य पर विचार करते हुए कि वह पीड़ित पक्ष को जीवित छोड़ने के लिए पर्याप्त दयालु था। इसी के चलते अदालत का यह मानना है कि आजीवन कारावास को 20 साल के कठोर कारावास से कम किया जा सकता है।” बता दें कि सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा है कि आरोपी के साथ बिल्कुल भी नर्मी से पेश नहीं आना चाहिए और उसकी अपील को जल्द से जल्द खारिज कर देना चाहिए।
यहां वैसे तो कोर्ट के इस निर्णय पर कई तरह के प्रश्न उठते हैं। जैसे कि क्या एक चार साल की बच्ची के साथ भयानक तरीके से दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति के साथ आखिर दयालु कैसे हो सकता है? कोर्ट द्वारा इस तरह की नर्मी दिखाना आखिर कहां तक सही है? समाज में इससे क्या संदेश जायेगा? इससे दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध को बढ़ावा नहीं मिलता है? कोर्ट द्वारा दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति की सजा को कम करना देश की न्याय व्यवस्था पर एक सवालिया चिन्ह खड़ा करता हैं।
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बलात्कारियों पर दया क्यों?
परंतु ऐसा पहली बार नहीं जब कोर्ट के द्वारा इस तरह के विवादित निर्णय लिये गये हो। इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने 4 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी एक व्यक्ति मोहम्मद फिरोज की मौत की सजा को कम कर दिया था। मध्य प्रदेश में अप्रैल 2013 में एक चार साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया गया था। हाई कोर्ट ने इस मामले में दोषी मोहम्मद फिरोज को मौत की सजा सुनाई थी। मोहम्मद फिरोज ने सजा के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिस पर सुनवाई करते हुए इसी साल 19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी मोहम्मद फिरोज की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था- “हर पापी का एक भविष्य होता है”। ऐसे ही केरल नन केस के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल को भी बरी कर दिया गया। इसके अलावा बिलकिस बानो मामले को देखें तो गुजरात सरकार के द्वारा बलात्कारियों को रिहा कर दिया गया है।
बलात्कार हमारे समाज में एक दंश की तरह है। बलात्कार तो बलात्कार होता है, चाहे वह किसी भी महिला या बच्ची के साथ हो और इसके दोषी कड़ी से कड़ी सजा पाने योग्य होते हैं। परंतु इस प्रकार बलात्कारियों को छोड़कर, उनकी सजा को कम करके न जाने समाज में क्या संदेश देने की कोशिश की जा रही है?
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