आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं- सवाल यह है कि मान लीजिए आपके पास एक छोटा घर है, जिसमें आपका परिवार रहता है। एक या दो रिश्तेदार आ जाते हैं तो उनके लिए भी एक कमरा है लेकिन किसी दिन ज्यादा रिश्तेदार आ गए। मान लेते हैं दस लोग आ गए तो क्या आप उन दस लोगों को बाहर सड़क पर या बगल वाले पार्क में या पड़ोस की दुकान में या फिर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड पर सुला देंगे? आपका जवाब मैं जानता हूं- नहीं, आप उन्हें सुलाने की व्यवस्था भी घर में ही करेंगे, यही तरीका है। लेकिन हमारे देश के कुछ लोगों को इतनी सरल-सी बात समझ नहीं आती, उन्हें समझ नहीं आता कि सार्वजनिक स्थान, सार्वजनिक स्थान होते हैं, आपकी निजी संपत्ति नहीं। तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे सार्वजनिक स्थानों पर नमाज का चलन अब ट्रेनों तक पहुंच गया है।
यहां समझिए पूरा मामला
दरअसल, कुशीनगर में जो हुआ उसके बाद हमने सोचा कि क्यों न आपको सार्वजनिक स्थानों पर नमाज की इस नई परंपरा से विस्तार से अवगत करवाया जाए। दरअसल, उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर जिले के खड्डा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के स्लीपर कोच में कुछ लोग नमाज पढ़ने लगे। अब जब रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रुकी है तो बहुत से लोगों को उतरना होता है और बहुत से लोगों को चढ़ना होता है लेकिन इन नमाजियों ने ट्रेन के पैसेज में बैठकर नमाज पढ़ना शुरू कर दिया और दोनों तरफ अपने चेले लगा दिए। ये चेले लोगों को आने-जाने से रोक रहे थे। फिर क्या था, वही हुआ जो होना था। सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि कई लोगों की ट्रेन तक छूट गई, इसके साथ ही बहुत से यात्रियों को असुविधा हुई तो तमाम यात्रियों को नमाज खत्म होने की प्रतीक्षा करनी पड़ी।
अब आप सोचिए कि यह क्या हो रहा है? ट्रेन के स्लीपर कोच में नमाज पढ़ी जा रही है। इस पर बातचीत तो इसलिए शुरू हो गई क्योंकि इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। यह वीडियो किसी और ने नहीं बल्कि भाजपा के पूर्व विधायक दीपलाल भारती ने बनाया था और उन्होंने ही इसे सोशल मीडिया पर अपलोड किया। जब ट्रेन में नमाज पढ़ी जा रही थी, उस वक्त दीपलाल भारती भी वहीं मौजूद थे तभी उन्होंने यह वीडियो बनाई।
स्टेशन के बाद अब ट्रेन के स्लीपर कोच में नमाज.#kushinagar #ViralVideos pic.twitter.com/W01GBrD4LI
— Sohit Trivedi (@SohitTrivedi05) October 22, 2022
लुलु मॉल कांड भूले तो नहीं !
अब जब इस मामले पर चर्चा हो ही है तो चलिए कुछ पुरानी बातें भी निकाल लेते हैं। लुलु मॉल में भी यही हुआ। 10 जुलाई को लुलु मॉल का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उद्घाटन किया था। इसके बाद वहां कुछ इस्लामिस्टों ने नमाज पढ़नी शुरू कर दी। अब मॉल में नमाज होती देख, हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया तो मामले ने तूल पकड़ा और एक समुदाय द्वारा मॉल का उपयोग धर्म के नाम पर करने को लेकर हिंदू समुदाय ने अपना रोष प्रकट किया। साथ ही साथ हिंदू समुदाय द्वारा चेताया गया कि अगर मॉल में नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई तो वे भी वहां सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। इसके बाद वामपंथियों ने इसमें अपने एजेंडा भी घुसाया, कई वामपंथियों ने फेक न्यूज़ फैलाते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि नमाज हिंदुओं ने पढ़ी थी।
Fake News paddlers vs Reality pic.twitter.com/KPM1zbT5UU
— Political Kida (@PoliticalKida) July 19, 2022
वामपंथियों द्वारा यह थ्योरी चलाई गई कि मॉल में नमाज पढ़ना एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा था और नमाज अदा करने वाले लोग मुस्लिम थे ही नहीं बल्कि यह काम हिंदू समाज से जुड़े लोगों ने किया था। वामपंथियों द्वारा दावा किया गया कि लखनऊ पुलिस ने गौरव गोस्वामी, सरोज नाथ योगी और कृष्ण कुमार पाठक को मॉल में नमाज पढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया। कांग्रेस समर्थकों से लेकर लिबरल लॉबी से जुड़े तमाम लोगों ने इस थ्योरी को हवा देने का खूब प्रयास किया। परंतु झूठ तो झूठ होता है और यह ज्यादा देर तक नहीं टिक पाता। ऐसा ही कुछ इस बार भी हुआ। लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस ने वामपंथियों के उस दावे का खंडन कर उनकी पूरी की पूरी पोल पट्टी ही खोलकर रख दी।
सोशल मीडिया पर लू-लू मॉल प्रकरण के सम्बन्ध में कुछ युवकों का नाम लेकर भ्रामक खबरें प्रसारित की जा रही है, जो कि पूर्णतया असत्य है ।
लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस इस भ्रामक खबर का पूर्ण रूप से खण्डन करती है।@Uppolice pic.twitter.com/KREhWwnAZu
— LUCKNOW POLICE (@lkopolice) July 18, 2022
गुरुग्राम में भी यही हुआ था
तो यह था लुलु मॉल का पूरा मामला, अब हम और आगे बढ़ते हैं और गुरुग्राम की बात करते हैं। गुरुग्राम में खुले में नमाज का मामला निरंतर विवादों में बना रहा। प्रत्येक शुक्रवार को हजारों की संख्या में इस्लामिस्ट गुरुग्राम में खुले में नमाज करते। बड़ी तादाद में होती इस नमाज से लोगों को अच्छी खासी परेशानी होती रही लेकिन इससे नमाजियों को कोई फर्क नहीं पड़ा, वे सार्वजनिक स्थान पर अपना धार्मिक कार्य करते रहे। इस पर रोक नहीं लगते देखकर हिंदू संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। हिंदू संगठनों ने गुरुग्राम में प्रत्येक शुक्रवार को प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। इसके बाद कई बार तो पुलिस सुरक्षा में नमाज पढ़ी गई। अंत में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बयान जारी करके कहा कि खुले में नमाज को शक्ति प्रदर्शन का तरीका नहीं बनाया जाना चाहिए।
लुलु मॉल और गुरुग्राम की बात हमने कर ली, अब और आगे बढ़ते हैं। बिहार में खुले में नमाज के कई मामले हमारे सामने आ चुके हैं, यहां तक कि रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर नमाज के मामले हमारे सामने आ चुके हैं। अब हमारे सामने एक सवाल आता है कि आखिरकार इस्लामिस्ट ऐसा करते क्यों हैं? सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ना या फिर खुले में नमाज पढ़ना, इस्लामिस्टों की इसके पीछे क्या साज़िश रहती है? अगर आप इस पर चिंतन करें तो पाएंगे कि इसके पीछे उनकी साज़िश सीधे-सीधे जमीन पर कब्जा करने की, जमीन हड़पने की, जमीन को विवादित बनाने की या फिर अपनी ताकत दिखाने की साज़िश होती है। सरकारी ज़मीन को हड़पकर पहले तो उस पर धार्मिक ढांचा बना दिया जाता है और जब बाद में कोई विवाद खड़ा होता है तो मामले को धर्म से जुड़ा बताकर इसे संवेदनशीलता के नाम पर टाल दिया जाता है और इस तरह यह ज़मीन हड़पने का सिलसिला चलता रहता है।
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वर्ष 2019 में उत्तर-प्रदेश से ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जब एक समुदाय के लोगों ने अवैध तरीके से सरकारी ज़मीन पर मस्जिद निर्माण करने की कोशिश की थी लेकिन दूसरे लोगों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी और पुलिस ने वहां किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी। पुलिस ने उत्तर-प्रदेश में रोक लगा दी थी क्योंकि वहां योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, इससे पहले वर्ष 2013 में गौतमबुद्ध नगर से भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जब सरकारी जमीन पर अवैध तरीके से मस्जिद का निर्माण करवा दिया गया था। उस वक्त उस इलाके की SDM IAS दुर्गा शक्ति नागपाल थीं। उन्होंने उस वक्त उस मस्जिद की एक दीवार को गिरवा दिया था, जिसके बाद तत्कालीन अखिलेश सरकार को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उस अफसर को सस्पेंड करना ही बेहतर समझा।
अब आप समझिए कि कैसे वर्षों-वर्षों तक इस देश की सरकारों ने एक समुदाय विशेष का तुष्टीकरण किया है। समुदाय विशेष के लिए कोई कानून नहीं, कोई नियम नहीं, खुलेआम मनमानी करने दो, बस इसलिए क्योंकि उनके वोट इन राजनीतिक दलों को चाहिए होते हैं। यही होता रहा, इसीलिए आज वक्फ कानून जैसा कानून इस देश में लागू है। वक्फ का शाब्दिक अर्थ है खड़ा होना, रोकना या कब्जे में लेना। थॉमस पैट्रिक ह्यूजेस (रूपा एंड कंपनी, दिल्ली, 1999) द्वारा रचित इस्लाम का शब्दकोश वक्फ शब्द की व्याख्या करता है। यह धर्मार्थ उपयोग हेतु संपत्ति का विनियोग या समर्पण है। यह एक प्रकार की धार्मिक बंदोबस्ती है जिसका जमींदार वक्फ बोर्ड है।
वक्फ बोर्ड के पास सबसे ज्यादा जमीन!
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में भूमि के मामले में वक्फ की जमींदारी अकल्पनीय रूप से बहुत बड़ी है। इसमें लगभग 4 लाख पंजीकृत संपत्ति और लगभग 6 लाख एकड़ भूमि शामिल है। राज्यसभा के पूर्व उप सभापति के रहमान खान की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त संसदीय समिति के अनुसार, भारतीय रेलवे और रक्षा विभाग के बाद भूमि का तीसरा सबसे बड़ा स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है। वर्ष 2013 में मनमोहन सिंह ने वक्फ बोर्ड एक्ट 1995 में संसोधन करके इसकी ताकत को चरम पर पहुंचा दिया और इसके बाद से लगातार ऐसे कई मामले हमारे सामने आए हैं, जिसमें वक्फ बोर्ड ने किसी मंदिर की, किसी व्यक्ति की, किसी संस्था की जमीन को अपना बताकर उस पर कब्जा कर लिया हो। हाल ही में तमिलनाडु से एक ऐसा ही मामला हमारे सामने आया- जिसमें वक्फ बोर्ड ने एक पूरे गांव की जमीन पर अपना दावा ठोंक दिया। कुशीनगर में ट्रेन में जिन लोगों ने नमाज पढ़ी उन पर पुलिस कार्रवाई कर लेगी लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होता। समस्या का समाधान तभी होगा जब नमाज सार्वजनिक स्थानों पर नहीं पढ़ी जाएगी और इसके लिए एक सख्त और मजबूत कानून बनाकर उसका सख्ती से पालन करवाया जाएगा।
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