आठ महीनों से भी अधिक समय से रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। इस जंग को लेकर दुनिया दो धड़ों में बंट चुकी है, जिसमें एक खेमा तो पश्चिमी देशों का है, जो रूस के विरुद्ध खड़ा है और उसे दुनिया में अलग-थलग करने के प्रयासों में जुटा है। वहीं कुछ देश ऐसे भी है, जो रूस के समर्थन में खड़े नजर आते हैं। बात भारत की करें तो इस युद्ध को लेकर हमारा स्टैंड शुरू से ही इस युद्ध को लेकर स्पष्ट रहा, उसने न तो रूसी खेमा चुना और न ही कथित महाशक्ति अमेरिका के समक्ष झुका और इन सबके बीच एक अलग राह पकड़ते हुए केवल युद्ध रोकने की बात ही कहता रहा।
भारत युद्ध में खुले तौर पर रूस के पक्ष में न खड़ा हुआ हो, परंतु अपने मित्रतापूर्ण संबंध को देखते हुए कभी उसका विरोध भी नहीं किया। पश्चिमी देशों की परेशानी का यही कारण है। वह किसी भी तरह भारत को अपने पक्ष में लाने के लिए तमाम प्रयास करते रहे, परंतु इसमें सफल नहीं हो पाये। अब भारत को अपने खेमे में लाने में तो असफल रहे, तो वह गलत खबरें ही प्रसारित कर यह दिखाने के प्रयास कर रहे हैं कि अब आखिरकार भारत, रूस के विरुद्ध चला ही गया।
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गुप्त मतदान को लेकर वोटिंग
दरअसल, बीते दिनों से आप यह खबरें लगातार सुन रहे होंगे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNGA) में भारत ने रूस के विरुद्ध वोटिंग की है। इस खबरों को काफी जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है। परंतु क्या यह हकीकत है? क्या वास्तव में भारत अपना स्टैंड बदलकर रूस के खिलाफ गया? तो जवाब है, नहीं। भारत ने UNGA में रूस के विरुद्ध वोटिंग नहीं की। भारत ने तो केवल पारदर्शिता का ही पक्ष लिया, जिस पर ही यह कहा जा रहा है कि भारत रूस के विरुद्ध चला गया।
पूरा मामला कुछ ऐसा है कि पश्चिमी देश चाहते हैं कि UNGA रूस के तथाकथित जनमत संग्रह और यूक्रेन के क्षेत्रों पर कब्जा करने की निंदा करें। निंदा प्रस्ताव पर मतदान होना है। परंतु इस बीच रूस चाहता था कि यह पूरी प्रक्रिया गुप्त मतदान के माध्यम से हो। लेकिन दक्षिण-पूर्वी यूरोप में स्थित एक छोटे से देश अल्बानिया ने इसका विरोध किया। इसने एक प्रस्ताव पेश किया कि मामले का फैसला खुले मत से किया जाना चाहिए।
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भारत ने पारदर्शिता के पक्ष में मतदान किया
भारत उन 107 सदस्य देशों में से एक था, जिसने खुले मतदान का समर्थन किया, जबकि 13 देशों ने गुप्त मतदान के पक्ष में मतदान किया और वहीं 39 देशों ने मतदान से दूरी बनायी, जिसमें रूस, चीन, ईरान और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देश शामिल थे। यानी भारत ने केवल खुले मतदान के समर्थन में अपना वोट डाला, न कि उसने रूस के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कोई वोटिंग की।
परंतु इस वोटिंग के बारे में जानकारी लेने के लिए अगर आप गूगल सर्च करेंगे तो आपको कई सारे न्यूज पोर्टल्स मिल जाएंगे जो यह दिखाने के प्रयास करेंगे कि भारत UNGA में रूस के खिलाफ गया। उदाहरण के लिए हिंदुस्तान टाइम्स की हैडलाइन देखेंगे तो उसने कहा– “भारत रूस के खिलाफ वोट किया”। वहीं इंडियन एक्सप्रेस ने “रूस के खिलाफ वोट” जैसे शब्दों का प्रयोग किया। इन खबरों से आपको ऐसा लगने लगेगा कि भारत पश्चिमी गुटों के साथ जाने वाला है। परंतु देखा तो पूरी सच्चाई यह नहीं है, जो आपको बताने की कोशिश की गयी।
यूएनजीए में जो कुछ भी हुआ वह एक अलग ही मुद्दा था। रूस की मांग थी एक गुप्त मतदान हो, क्योंकि वो पहले भी मीडिया के द्वारा अत्यधिक नकारात्मक प्रचार का शिकार हो चुका है। भारत ने भले ही रूस की मांग के समर्थन में मतदान न किया हो और पारदर्शिता का समर्थन किया हो, परंतु इससे रूस को भी कोई समस्या नहीं हुई। रूस ने UNGA में भारत की कार्रवाई पर चिंता नहीं जताई।
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भारत हमेशा ही अपने देश और देशवासियों के कल्याण के बारे में सोच के ही हर निर्णय लेता है। आज हमारी विदेश नीति इसी राह पर आगे बढ़ रही है और पूरी दुनिया भारत की विदेश नीति का लोहा भी मान रही है। ऐसे में अब यह बात समाचार पोर्टलों को भी समझ लेनी चाहिए कि वह पश्चिमी देशों की भाषा न बोलें और उन बातों को बढ़ावा न दें जो पश्चिमी देश चाहते हैं। क्योंकि भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अपने स्टैंड से पूरी दुनिया को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि यह वो भारत नहीं है, जो किसी के दबाव में आकर झुक जाता था। यह नया भारत है, जो हर मुद्दे पर अपनी अलग राख रखना और उस पर मजबूती से टिके रहना भी जानता है। ऐसे में इस प्रकार की भ्रामक बातें फैलाकर वह भारत के स्टैंड को कमजोर न करें।
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