पाकिस्तानी सेना ने डाल दिए कश्मीर पर हथियार, अमेरिका-जर्मनी अभी भी बिलबिला रहे हैं

ये भी लाइन पर आ जाएंगे!

पाकिस्तानी सेना

धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से

कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।

हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से

भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।

जब तक गंगा में धार, सिंधु में ज्वार,

अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,

स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे

अगणित जीवन यौवन अशेष।

अटल जी की यह कविता अवश्य पढ़िए। इस कविता में सिर्फ उत्साह-उमंग-जोश ही नहीं है बल्कि यह कविता भारत के जनमानस की बात कहती है, उस जनमानस की जो वर्षों से कश्मीर को भारत का मुकुट बताता आया है, उस जनमानस की जो कश्मीर के लिए अपने बेटों को न्योछावर करता आया है, उस जनमानस की जो कश्मीर के बिना भारत की कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन वो जनमानस स्वतंत्रता के बाद से ही हताश था, निराश था, उदास था, इसकी वजह एकदम साफ थी- सरकारों का कश्मीर पर ढुलमुल रवैया, लेकिन 2014 के बाद सबकुछ बदल गया। संसद में सीना पीटकर अमित शाह ने दावा किया कि POK हमारा है, तो उस जनमानस ने चैन की सांस ली। जब आर्टिककल 370 हटाया गया तो उस जनमानस ने त्योहार की तरह इसे सेलिब्रेट किया, अब उसी जम्मू-कश्मीर को लेकर जो ख़बर सामने आई है, उसे भी सेलिब्रेट करने की आवश्यकता है।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के ऊपर अपना फर्जी दावा छोड़ दिया है और कैसे जर्मनी और अमेरिका, कश्मीर पर रुदाली कर रहे हैं।

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सेना के इशारों पर चलती है सरकार

एक फेल्ड नेशन पाकिस्तान में सर्वेसर्वा कौन है यह हम कभी भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकते हैं। राजनैतिक सत्ता की औकात पाकिस्तान में चपरासी की तरह रहती है। सेना जैसा कहती जाए राजनीतिक सत्ता वैसा करती जाती है, एक तरह से सेना के इशारों पर ही वहां की राजनीतिक सत्ता चलती है लेकिन सेना खुलकर कभी भी सामने नहीं आती, कम से कम आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान में सेना शासन नहीं चला रही है इसका श्रेय तो हमें उन्हें देना ही चाहिए।

तो इस सेना के मुखिया हैं कमर जावेद बाज़वा, बाज़वा से भारतीय अपरिचित नहीं हैं क्योंकि बाज़वा जेल में बंद कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्धू के परममित्र भी हैं। सिद्धू ने बाज़वा को ख़ूब झप्पियां पाईं हैं, तो इसी बाज़वा ने अब जो कहा है वो बहुत महत्वपूर्ण है। बाजवा का 6 वर्ष लंबा कार्यकाल इसी नवंबर में ख़त्म हो जाएगा और इससे पहले बाजवा ने जो बयान दिया है वो कई मायनों में महत्वपूर्ण है। क़मर जावेद बाजवा ने कहा कि हमें सभी द्विपक्षीय मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर विचार करना चाहिए। एक-दूसरे से लड़ने के बजाय हमें एकसाथ आकर गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, जनसंख्या विस्फोट और बीमारियों से लड़ना चाहिए। पाकिस्तान मिलिट्री अकेडमी में जनरल बाजवा ने इसके साथ ही कहा, “हम कोशिश कर रहे हैं कि दक्षिण एशियाई देशों में जो राजनीतिक बातचीत पर रोक लगी है, उसे खत्म किया जाए और सभी द्वपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए।”

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इशारा सीधे भारत की तरफ

जनरल बाजवा का यह बयान अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि कभी कभार ही ऐसा होता है जब पाकिस्तान का आर्मी चीफ दक्षिण एशिया में शांति की बात करे और उसमें कश्मीर का जिक्र ना करे। भले ही अपने बयान में बाजवा ने सीधे तौर पर भारत का नाम नहीं लिया है लेकिन उसका इशारा सीधे-सीधे भारत की तरफ ही था, वो भी बिना कश्मीर का जिक्र किए हुए। इसके क्या-क्या अर्थ हो सकते हैं।

इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि पाकिस्तानी सेना अब समझ गई है कि कश्मीर की लड़ाई वो कभी नहीं जीत पाएंगो इसलिए उसका जिक्र करना ही बंद कर दो या फिर यह भी हो सकता है कि मोदी जब तक भारत में है तब तक कश्मीर मुद्दे का जिक्र करना बेवकूफी है इसलिए उससे इतर बात करो। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि पाकिस्तानी सेना समझ गई है कि आज पाकिस्तानी सत्ता के पास पैसा नहीं है, उधारी पर उनका देश चल रहा है। आने वाले समय में हो सकता है सेना के बजट को भी कम कर दिया जाए इसलिए कश्मीर को छोड़कर दूसरे मुद्दों पर बात करो जिससे कि व्यापार करने का रास्ता खोला जा सके जो भी हो लेकिन एक बात स्पष्ट है कि पाकिस्तानी सेना ने अभी के लिए तो कश्मीर पर अपनी उम्मीदें छोड़ दी हैं।

अब आगे बढ़ते हैं और आगे बढ़ते हुए हम बात करते हैं अमेरिका और जर्मनी की। पाकिस्तानी सेना ने भले ही अपने एजेंडे से कश्मीर को निकाल दिया हो लेकिन अमेरिका और जर्मनी यह बात नहीं पचा पा रहे है। वो पाकिस्तान को दोबारा से पालने लगे हैं, दोबारा से उसके मुंह में रुपये भरने लगे हैं, उसके एजेंडे को समर्थन देने लगे हैं। हाल ही में अमेरिका बार-बार ऐसा करते हुए देखा जा सकता है। अमेरिका ने सबसे पहले तो पाकिस्तान को F-16 के लिए अरबों रुपये दिए इसके बाद उसने बाजवा को पेंटागन में बुलाकर सम्मानित किया।

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POK में अमेरिकी राजदूत का दौरा

यहां तक तो ठीक था लेकिन इससे आगे जो अमेरिका ने किया उससे उसकी नियत पर सवाल खड़े हो गए। पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत ने डोनाल्ड ब्लोम ने पिछले दिनों पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी कि POK का दौरा किया था। सबसे पहले तो POK में अमेरिकी राजदूत का दौरा ही गैर-कानूनी है क्योंकि POK भारत की जमीन है, जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा करके रखा है। लेकिन दौरा करने के बाद अमेरिकी राजदूत ने जो कहा वो और अमेरिका का घटिया चेहरा दिखाता है। अमेरिकी राजदूत ने POK को आजाद कश्मीर कहकर संबोधित किया जिसका जिक्र हर बार आजाद कश्मीर कहकर ही किया। अमेरिका की हरकत को भारत ने खाली नहीं जाने दिया, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “’पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत ने हाल ही में पाक अधिकृत कश्मीर का दौरा किया और कई मीटिंग में भी शामिल हुए। इस पर हमें आपत्ति है क्योंकि कश्मीर के इस हिस्से को भारत अपना मानता है। भारत ने इसे लेकर अमेरिका के समक्ष अपनी आपत्ति जता दी है।”

अमेरिका की इस बिलबिलाहट के पीछे की वज़ह आप जानते ही हैं, अमेरिका चाहता है कि भारत उसके निर्देश पर चले लेकिन भारत अपने अनुसार चलता है, अपने हित को देखते हुए फैसले करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी अमेरिका ने बहुत कोशिश की कि किसी तरह से भारत को रूस के विरुद्ध खड़ा कर दिया जाए लेकिन भारत ने वही किया जो उसे सही लगा। इससे अमेरिका जल-भुन गया, उसने पहले भारत को धमकी दी, काम नहीं चला तो डर दिखाया, जब उससे भी कुछ नहीं हुआ तो विनती करने लगा और जब उससे भी कुछ नहीं हुआ तो अब पाकिस्तान को दोबारा से भीख डालने लगा।

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जर्मनी और पाकिस्तान

अब हम और आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं जर्मनी की। तानाशाह हिटलर का देश जब ज्ञान देता है तो बहुत क्यूट लगता है और जब भारत को ज्ञान देता है तब तो हास्यास्पद लगता है और ज्ञान देते वक्त जब पाकिस्तानी राग अलापता है तो यकीन कीजिए जोकर लगता है। लेकिन कुछ देशों को जोकर बने रहना ही अच्छा लगता है, शायद इसीलिए जर्मनी ने एक बार फिर से कश्मीर पर पाकिस्तान का रोना रोया है। हुआ यह है कि पाकिस्तान का विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी जर्मनी पहुंचा था भीख मांगने, भीख उसे मिली, जर्मनी ने पाकिस्तान की मदद करने का ऐलान किया है। इसके साथ ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में जर्मनी और पाकिस्तान ने कश्मीर पर बात की।

जर्मनी ने इस दौरान कहा कि कश्मीर मुद्दे का हल संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से होना चाहिए, जर्मनी के पाकिस्तानी राग अलापते ही भारत ने इसका दो टूक जबाव दिया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि कश्मीर हमारा द्विपक्षीय मामला है, इसमें कोई और न घुसे। साथ ही विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान से जो आतंकवाद कश्मीर को वर्षों से निर्यात किया जा रहा है उस पर बात होना चाहिए और उस पर रोक लगनी चाहिए।

भारत ने जर्मनी के बयान को भी खारिज कर दिया लेकिन हमारे सामने एक सवाल अवश्य खड़ा हो गया कि जर्मनी आखिरकार ऐसा क्यों कर रहा है। इसके पीछे जर्मनी के अपने निजी स्वार्थ तो हैं ही साथ ही साथ वो अमेरिका का पिछलग्गू देश है, अमेरिका जो भी करता है, जैसा भी करता है वो चमचा बनकर वही करना लगता है। कश्मीर के मुद्दे पर भी जर्मनी ने वही किया लेकिन इन दोनों देशों को अब यह समझना चाहिए कि वर्षों-वर्षों तक भारतीय सेना से पिटने के बाद पाकिस्तानी सेना ने अब कश्मीर का जिक्र करना तक बंद कर दिया, इसलिए अमेरिका और जर्मनी को भी सोच-समझकर आगे बढ़ना होगा क्योंकि अटल जी ने भी कहा हैय़

अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को

दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।

दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से

तुम बच लोगे यह मत समझो।

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