याद करिए वो दिन जब भारत ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की थी जिस पर गर्व करते देशवासी थकते नहीं थे, एक ऐसी उपलब्धि जो अपनी समय सीमा को तोड़कर और बड़ी होती चली गयी। सही समझ रहे हैं आप, हम मंगलयान वाली उपलब्धि की ही बात कर रहे हैं। किसे गौरव नहीं होगा जब केवल 450 करोड़ रुपये की लागत में ही एक पूरा का पूरा मंगलयान ही बना लिया जाए।
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मंगलयान का जीवन अंततः समाप्त हुआ
लेकिन आज बड़े ही दुख के साथ इस बात को स्वीकारना पड़ रहा है कि गर्व से भर देने वाले हमारे मंगलयान का जीवन अंततः समाप्त हो गया। पहली बात तो यह कि मंगलयान में ईंधन समाप्त हो गया और दूसरी बात यह कि एक सुरक्षित सीमा से अधिक समय तक यान की बैटरी चली और फिर समाप्त हो गयी, ऐसे में अब इसरो का मंगलयान से संपर्क टूट चुका है। एक अधिकारी की माने तो बैटरी को केवल 1 घंटा 40 मिनट की ग्रहण अवधि को ध्यान में रखकर बनाया गया था ऐसे में जब एक लंबा ग्रहण लगा तो बैटरी लगभग समाप्त हो गयी। क्या आपको बता है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो (ISRO) की तरफ से इस मंगलयान को केवल छह महीने के तय समय सीमा के लिए ही भेजा गया था पर आश्चर्यजनक रूप से वह 8 वर्ष 8 दिन तक जीवित रहा।
इस मंगलयान को पीएसएलवी-सी25 से 5 नवंबर, 2013 को प्रक्षेपित किया गया था, विशेष बात यह है कि 24 सितंबर, 2014 को वैज्ञानिकों ने इस यान को अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में स्थापित किया था। वैज्ञानिकों की माने तो मंगलयान ने अपना काम बहुत अच्छे से किया। मंगलयान अब नहीं रहा, ऐसे में यह समय है उसके समाप्त हो जाने से भारत को होने वाली क्षति को जान लेने की।
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मंगलयान के जाने से क्षति
- मंगलयान के विलीन हो जाने से मंगल ग्रह से जुड़े किसी भी डेटा के लिए देश को अमेरिका, यूरोप और ऐसे ही अन्य देशों पर अपनी निर्भरता बढ़ानी पड़ जाएगी।
- नयी रिसर्च तब तक संभव नहीं है जब तक मंगल ग्रह की कक्षा में मंगलयान-2 स्थापित न हो जाए।
इसरो और मंगलयान
- मंगलयान ने 11 महीने स्पेस की यात्रा की इसके बाद वह मंगल ग्रह के पास पहुंच पाया था।
- मंगलयान इसरो की बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
- ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी देश ने अपने पहले प्रयास में ही अपने अंतरिक्षयान को मंगल तक पहुंचाया हो और मंगल ग्रह की कक्षा में इसे स्थापित भी कर दिया हो।
- मंगलयान से अब तक जो भी डेटा पाए गए हैं उसके आधार पर देश और दुनिया के वैज्ञानिक अपनी रिसर्च और स्टडी कर पाएंगे। वैज्ञानिक बनने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए मंगलयान से मिले डेटा लाभकारी होंगे।
- बताया जाता है कि यान में पांच पेलोड लगे थे जिसके माध्यम से यान ने पहले साल 1टीबी डेटा भेजा था तो वहीं पांच साल में 5 टीबी डेटा यान के द्वारा भेजा गया।
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मंगलयान के विशेष उपकरण
मार्स आर्बिटर मिशन गर्व से भर देने वाला मिशन था। जिससे वैज्ञानिकों को बहुत कुछ सिखने को मिला था। इस यान में कैमरे लगे थे और सेंसर जैसे उपकरण से यह यान युक्त था जो मंगल ग्रह के वायुमंडल की जानकारी तो भेजता ही था साथ ही तस्वीरें भी भेजी हैं। इस यान के उद्देश्यों की बात करें तो मंगल ग्रह पर संभावित जीवन का अध्ययन करना, ग्रह की उत्पत्ति संबंधी जानकारी पाना, भौगोलिक संरचनाओं के साथ-साथ वहां के जलवायु से संबंधी अध्ययन करना उद्देश्य था।
मंगलयान में पांच महत्वपूर्ण उपकरण थे जिससे मंगल ग्रह के बारे में जानकारी जुटाते थे। इस यान में जीवन के संकेत का पता लगाने और मिथेन गैस का पता लगाने वाला सेंसर शामिल था, रंगीन कैमरा भी इसमें युक्त था। ग्रह की सतह और खनिज संपदा के बारे में जानकारी उपलब्ध हो सके इसके लिए थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण लगाए गए थे।
मंगलयान तो नहीं रहा जिसकी उपलब्धियों से सीखने और जिसके जाने से होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए और अधिक काम करने की आवश्यकता होगी। ऐसे में अब मंगलयान-2 ही आशा की किरण है हर उन वैज्ञानिकों के लिए जो नये अनुसंधान के लिए अग्रसर हैं।
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