PFI का खात्मा CAA-NRC 2.0 का पहला कदम था, अब दूसरे कदम का वक्त है

दूसरा कदम किसी भी वक्त उठा सकते हैं शाह!

Step 1 of CAA-NRC 2.0 was annihilate PFI. It’s Time for Step 2

फोटो: इनसाइडर्स लाइव.इन

देश की राजनीति को देखें तो पिछले 3 वर्ष बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं क्योंकि इन्हीं 3 वर्षों में सरकार ने इस्लामिस्टों की कट्टरता को जड़ से खत्म करने की आधारशिला रखी है। साल 2019 में मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून पारित कर एक बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णय लिया, लेकिन हिंसक विरोध प्रदर्शन के चलते यह ठंडे बस्ते में चला गया। सीएए का विरोध करने वालों को लगा कि मोदी सरकार पीछे हट चुकी है लेकिन अचानक केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसलों के चलते यह माना जाने लगा है कि जल्दी ही देश में सीएए-एनआरसी लागू किए जा सकते हैं।

दरअसल, जब साल 2019 में मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून पारित किया तो देश की राजधानी दिल्ली से लेकर केरल तक और गांधीनगर से लेकर गुवाहाटी तक देश के कट्टरपंथियों ने हिंसा फैला दी। दिल्ली के शाहीन बाग में कई महीनों तक इस्लामिस्टों ने अपने एजेंडे पर विरोध प्रदर्शन करवाया।

सिर्फ दिल्ली के शाहीन बाग में ही नहीं अपितु देश के कई शहरों में इन लोगों ने उसी तरह का विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश की। इस्लामिस्टों ने सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की जिसका नतीजा यह हुआ कि देश के कई हिस्सों में हमें हिंसा की लपटें दिखाई दीं।

और पढ़ें: लोकसभा 2024: बिहार में ‘उत्तर-प्रदेश 2014’ की पुनरावृति करने जा रहे हैं अमित शाह

इसके बाद कोरोना वायरस ने अपना कहर फैला दिया। कोरोना वायरस की वज़ह से शाहीन बाग खाली हो गया। उस हिंसक प्रदर्शन को तीन वर्ष बीत गए, इस्लामिस्टों को प्रतीत हो रहा है कि मोदी सरकार सीएए-एनआरसी को भूल चुकी है- ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसके संकेत हमें सरकार की हाल ही की गतिविधियों से मिलते हैं। हाल ही में मोदी सरकार ने हिंसक आंदोलन को पैसों की सप्लाई करने वाले आतंकवादी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया यानी कि पीएफआई पर जोरदार कार्रवाई की है। सरकार ने पीएफआई को 5 वर्षों के लिए प्रतिबंधित कर दिया है।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नामक यह संगठन मुख्य तौर पर देश में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने और इस्लामिक कट्टरता के जरिए लोगों को गजवा ए हिंद के सपने दिखाता था। सीएए और एनआरसी के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में मुख्य भूमिका पीएफआई की ही थी ‌ दिल्ली दंगों से लेकर देश में जहां भी सांप्रदायिक हिंसा का मामला सामने आया उसके पीछे की पटकथा पीएफआई के कार्यकर्ताओं द्वारा ही लिखी गई थी।

देश की मोदी सरकार को यह पता चल चुका था कि यदि देश में सीएए-एनआरसी लागू करना है तो पहले पीएफआई जैसे इस्लामिक संगठनों को प्रतिबंधित करना होगा। पिछले 3 वर्षों से लगातार देश की मोदी सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए पीएफआई के विरुद्ध दर्ज एक-एक केस निकालकर उसकी सघन जांच करवा रही थी। भाजपा शासित राज्य लगातार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के खिलाफ शिकायत कर केंद्र सरकार पर इस पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बना रहे थे।

और पढ़ें: ‘सेक्युलरिज़्म’ भारत के संविधान में सदैव जुड़ा रहना चाहिए

यहीं से शुरुआत हुई पीएफआई के खात्मे की। जांच एजेंसियों ने निरंतर दो दिनों तक पीएफआई के विरुद्ध एक्शन लिया। छापेमारी की, गिरफ्तारियां की। इसके बाद पीएफआई और उससे संबंधित संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया।

इससे हमें यह दिखाई देता है कि सरकार उन तत्वों से पहले निपट रही है जोकि सीएए-एनआरसी के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन में घी डालने का काम कर रहे थे। जोकि इस पूरी हिंसा को भड़का रहे थे। जोकि इस पूरी हिंसा को बढ़ावा देने के लिए पैसों की पूर्ति कर रहे थे। एक तरफ जहां सरकार पीएफआई जैसी संस्थानों को प्रतिबंधित कर रही है तो वहीं दूसरी तरह अमित शाह देश के उन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं- जहां मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक है- इसके पीछे की रणनीति, उनका मूढ़ भांपने की है।

वहीं तीसरी तरफ राष्ट्रूीय स्वयंसेवक संघ भी उदार मुस्लिमों तक पहुंच रहा है। मदरसों में मुस्लिम छात्रों के साथ संघ के नेता मिल रहे हैं। इसके पीछे का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है कि सीएए-एनआरसी लाने के लिए जमीन को तैयार करना। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया पर प्रतिबंध सीएए-एनआरसी की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम था- और अब दूसरा कदम होगा- सीएए-एनआरसी को लागू करना।

 

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Exit mobile version