वाह क्या धंधा है? पहले दूसरों पर आरोप लगाओ, स्वयं को पीड़ित बताओ और उसकी आड़ में बहुत सारा धन बटोर लो और फिर कुछ दिनों बाद अपने कदम पीछे खींच लो। वाह क्या योजना है लेकिन इस तरह की योजना बनाने वालों को क्या लगता है कि दूसरों को इस बारें में कुछ पता ही नहीं चलेगा? जिन्हें ऐसा लगता है वो बहुत बड़े भ्रम में जी रहे हैं।
मामला द वायर से संबंधित है
हालिया मामला द वायर से संबंधित है। दरअसल, द वायर ने कॉन्टेंट मॉडरेशन के निर्णयों के बारे में गलत रिपोर्ट प्रकाशित करने के कारण मेटा की बहुत अधिक आलोचना की थी जिसके बाद अब द वायर ने विसंगतियों का हवाला देते हुए अपनी इस रिपोर्ट को वापस लेने का निर्णय लिया है। द वायर प्रकाशन के द्वारा रविवार को कहा गया है कि वह ‘कुछ विसंगतियों’ का हवाला देते हुए उन सभी रिपोर्टों को वापस ले रहा है। प्रकाशन ने कहा है कि संपादकीय निरीक्षण में चूक होने की समीक्षा की जा रही है, ताकि सभी स्रोत-आधारित रिपोर्टिंग की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए असफल प्रोटोकॉल लागू किए जा सकें।
द वायर ने अपने एक पोस्ट में कहा है कि “हमारी जांच, जो चल रही है, हमें अभी तक उन स्रोतों की प्रामाणिकता के बारे में एक निर्णायक दृष्टिकोण लेने की अनुमति नहीं देती है, जिनके साथ हमारी रिपोर्टिंग टीम का एक सदस्य कहता है कि वह लंबे समय से संपर्क में है।”
इस पर मेटा ने कहा कि उनके लिए उनके सामग्री निर्णयों के लिए जवाबदेह होना वैध है, ‘द वायर के द्वारा लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं’ और कहानी में प्रयोग किए गए मेटा कर्मचारी के दो ईमेल के स्क्रीनशॉट भी ‘फर्जी’ हैं। साथ ही कंपनी ने ये भी कहा था कि वह अपने सामग्री निर्णयों की जांच को स्वीकार करते हैं, लेकिन हम इन झूठे आरोपों को मूल रूप से खारिज करते हैं, जिसे हम गढ़े हुए सबूत मानते हैं। हमें इस बात की पूरी उम्मीद है कि द वायर इस धोखाधड़ी का शिकार है, अपराधी नहीं।
वहीं मेटा के मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारी गाय रोसेन ने झूठी और नकली कहानियों को प्रकाशित कर उसका नाम बदनाम करने के लिए द वायर को जोरदार फटकार लगाई थी, रोसेन के मुताबिक, ‘विचित्र और झूठ से भरी हुई’ थी। कंपनी के अनुसार, द वायर के द्वारा साझा किया गया वीडियो, जो कथित तौर पर एक आंतरिक इंस्टाग्राम सिस्टम को दिखाता है, ‘द वायर की गलत रिपोर्टिग का समर्थन करने के लिए सबूत बनाने के लिए विशेष रूप से स्थापित किया गया’ प्रतीत होता है।
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‘द वायर’ का दावा
दअरसल, एक अज्ञात सूत्र के आधार पर ‘द वायर’ ने दावा किया था कि अमित मालवीय ने सोशल मीडिया से 705 पोस्ट्स हटवाए है। ‘द वायर’ की इन हरकतों से ऐसा लगता है कि वो इस्लामी और वामपंथी प्रोपगेंडा के अनुरूप काम करता है। हमने देखा कि कैसे ट्विटर ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हैंडल को हटाया और वहां के चुनावों को प्रभावित किया। ‘द वायर’ कुछ एक तकनीकी चीजों का नाम लेकर सोच रहा था कि लोग इसे सही मान लेंगे। परंतु पोल तब खुल गई थी जब ‘Meta’ के कम्युनिकेशंस हेड एंडी स्टोन ने इस पूरी खबर को बनावटी करार दे दिया था।
उन्होंने कहा कि बनावटी दस्तावेजों के आधार पर ‘द वायर’ ने इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। हालांकि, जब ‘द वायर’ ने ठेका ले ही लिया था तो वो क्यों पीछे हटता। उसने एक अलग रिपोर्ट लिख कर दावा किया कि जिन दस्तावेजों के आधार पर उसने रिपोर्ट बनाया है वो फर्जी नहीं हैं। फिर उसने एंडी स्टोन का एक ईमेल दिखाया, जिसमें उन्होंने कथित रूप से कंपनी के आंतरिक दस्तावेजों के लीक होने पर आपत्ति जताई थी।
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‘द वायर’ को लताड़
इस ताज़ा मामले में ‘Squarespace’ कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ ब्रेंट किमेल ने भी ‘द वायर’ को लताड़ते हुए कहा था कि उसके दावे सही नहीं है। वो एंडी स्टोन के साथ काम कर चुके हैं और उनका कहना है कि भले ही एक दशक से उन दोनों की बातचीत नहीं हुई, लेकिन उन्होंने कभी पहले एंडी स्टोन को उस भाषा में बात करते नहीं देखा, जैसा ईमेल में दिख रहा है।
‘द वायर’ ने दावा किया था कि ‘@fb.com’ ईमेल एड्रेस पर भेजे गए उसके ईमेल को वहां किसी ने खोला और पढ़ा, इसका उसके पास सबूत हैं। इसके लिए उसने ‘superhuman’ तकनीक का सहारा लिया जो दिखाता है कि किसी के द्वारा भेजे गए ईमेल को कितनी बार खोला गया। यह तकनीक ईमेल में एक तस्वीर डाल देता है, जिसे जितनी बार खोला जाए सूचना सेंडर के पास पहुंच जाती है। प्राइवेसी का झंडाबरदार बनने की नाटक करने वाले ‘द वायर’ की यह हरकत प्राइवेसी का खुला उल्लंघन था।
अब मामला यहीं पर नहीं थमा था, द वायर द तो वायर है भैया वो ऐसे कैसे थम जाता। उसने पलटकर आरोप लगा दिया था कि उसके टेक एक्सपर्ट का ईमेल ही हैक हो गया है। यह तो वही बात हो गई कि पाकिस्तान आतंकवाद पर विलाप कर रहा है। उसके बाद द वायर किस्म-किस्म के दावे करके अपनी खबर को सही साबित करने में लग गया था।
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पूरा मामला फर्जी
‘Meta’ के अधिकारी एंडी स्टोन ने कहा था कि यह पूरा मामला फर्जी है और ऐसी रिपोर्ट्स को लिखने वाले भी ये बात जानते हैं। उन्होंने कहा था कि उनका जो ईमेल दिखा-दिखा कर ‘द वायर’ अपनी स्टोरी की पुष्टि में लगा हुआ है, वो उन्होंने भेजना और लिखना तो दूर, सोचा तक नहीं है। इन्हीं बनावटी सबूतों के आधार पर ‘द वायर’ कह रहा है कि भाजपा और Meta के बीच करार हुआ था।
आपको याद होगा कि ‘द वायर’ ने यह भी दावा किया था कि भाजपा आईटी सेल ने ‘Tek Fog’ नामक एप बनाया है, जिसके तहत पार्टी के खिलाफ बोलने वालों के विरुद्ध पोस्ट्स और ट्वीट्स की बाढ़ ला दी जाती है लेकिन अब द वायर ने अपने बयानों में ये कहा है कि इस्तेमाल की गई सामग्री में कुछ विसंगतियां सामने आई हैं। इनमें हमारे जांचकर्ताओं की आईडी से कथित रूप से भेजे गए ईमेल के साथ-साथ उज्जवल कुमार से प्राप्त ईमेल को प्रमाणित करने में असमर्थता शामिल है (रिपोर्टिग में उद्धृत एक विशेषज्ञ ने निष्कर्षो में से एक का समर्थन किया है, लेकिन वास्तव में इस तरह के ईमेल भेजने से स्पष्ट रूप से इनकार किया है)।
द वायर ने ये भी कहा कि वह अपनी जारी जांच में स्वतंत्र सुरक्षा विशेषज्ञों के साथ काम कर रहा है। “अब तक की समीक्षा के माध्यम से हमारे ध्यान में आने वाली विसंगतियों को देखते हुए द वायर हमारे मेटा कवरेज में शामिल तकनीकी टीम द्वारा की गई पिछली रिपोर्टिग की भी गहन समीक्षा करेगा, और उस प्रक्रिया के पूरा होने तक कहानियों (रिपोर्ट) को सार्वजनिक दृश्य से हटा देगा।” यह सब होने के बाद द वायर ने अपनी सभी रिपोर्ट को वापस लेना ही उचित समझा है। जिससे एक बार फिर से यह प्रतीत होता है कि द वायर कहीं एक पैटर्न में काम तो नहीं करता है, पहले स्वयं को पीड़ित दिखाओ, फिर पैसे बटोरो और फिर जब लगे कि तुम पकड़ें जाने वाले हो तो सभी रिपोर्ट को वापस ले लो। इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आये हैं जहां ऐसा ही पैटर्न देखने को मिलता है।
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बेहूदा षड्यंत्र
यह पहली बार नहीं है जब द वायर ने इस तरह का बेहूदा षड्यंत्र रचने का प्रयास किया हो। इससे पहले भी कई बार द वायर ने इस तरह की ओछी हरकतें की हैं। साल 2017 में द वायर ने एक लेख में अमित शाह के बेटे जय शाह पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया था। इसके साथ ही लेख में जय शाह के माध्यम से अमित शाह पर भी निशाना साधने का प्रयास किया गया था। उस समय अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। परंतु इस लेख में जो दावे किये गये थे उन्हें साबित करने के लिए न ही कोई सटीक तर्क थे और न ही किसी प्रकार के सबूत को प्रस्तुत किया गया था।
इसके बाद जय शाह ने द वायर और इस लेख की लेखिका रोहिणी सिंह के खिलाफ 100 करोड़ का मानहानि का केस दर्ज़ कराया था, जिसके जवाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं अधिवक्ता कपिल सिब्बल की देख रेख में द वायर ने स्पेशल लीव पेटिशन दायर की थी।
हालांकि, द वायर की मंशाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने पानी फेरते हुए न केवल द वायर की अपील खारिज की, अपितु उन्हें केस का सामना करने की बात भी कही। ये निर्णय न्यायाधीश अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने लिया था, उन्होंने ये भी कहा था कि वेबसाइट के विरुद्ध केस की कार्रवाई को सक्षम न्यायालय के द्वारा 6 महीने के अंदर ही पूरा किया जाए। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि, “यह बेहद ही गंभीर मामला है। अब हमें याचिका को वापस लेने की अनुमति क्यों देनी चाहिए? क्यों न हम इस पर स्वतः संज्ञान लें, एक जज के तौर पर हम इसे लेकर चिंतित हैं।“ जस्टिस गवई ने कहा था कि “यह कैसी पत्रकारिता है? यह और कुछ नहीं बल्कि पीत पत्रकारिता है।“
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झूठा और घटिया लेख
इतना ही नहीं द वायर ने तो दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक को नहीं छोड़ा था, और उनके निधन के तुरंत बाद उनसे संबंधित एक झूठा और घटिया लेख प्रकाशित किया था। इसके बाद अमृतसर ट्रेन हादसे पर अभिसार शर्मा की आधारहीन और निम्न स्तर की पत्रकारिता में द वायर की रिपोटिंग सामने आयी थी। स्वयं रोहिणी सिंह भी कई अवसरों पर अपनी भ्रामक रिपोर्टिंग के लिए चर्चा में रही हैं। चाहे वो अभिनेता अक्षय कुमार की नागरिकता पर तंज़ कसना हो या फिर योगी आदित्यनाथ पर विवादित पत्रकार प्रशांत कनोजिया के प्रोपगेंडा का समर्थन करना हो, रोहिणी सिंह ने अपने एजेंडा को प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
एक ही चाल को बार-बार चलकर भी द वायर बाज़ नहीं आ रहा है। द वायर जिस प्रकार से अपनी कुनीतियों का जाल बुनता है वो अक्सर उसमें स्वयं ही फंस जाता है। अपने द्वारा फैलाएं जाने वाले रायते को उसे समेटने में जन्मों लग जाएंगे। अपने आप को स्वतंत्र मीडिया का ध्वजवाहक बताने वाला द वायर को अब अपनी टुच्ची नीतियों को छोड़ कुछ अच्छा सोचने की आवश्यकता है।
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