कुछ ऐसे आपकी आवाज को दबा रहा है अमेरिकी सोशल मीडिया

यहां समझिए कैसे?

सोशल मीडिया

Source- TFI

कोई इस बात से मना नहीं कर सकता कि सोशल मीडिया हमारे जीवन की दैनिक आदत बन गई है। चाहे युवा हो, अधेड़ उम्र का आदमी हो या देश के किसी दूरदराज इलाके में बैठा कोई व्यक्ति, मौजूदा समय में सभी का जीवन मोबाइल फोन और सोशल मीडिया एप्स पर आधारित हो गया है. और तो और सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गई है लेकिन यह हमारे लिए, हमारे देश के लिए, हमारी संस्कृति के लिए और हमसे जुड़ी तमाम चीजों के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. ऐसे में अब समय आ गया है कि सोशल मीडिया कंपनियों के क्रियाकलापों को सुव्यवस्थित और कड़ी निगरानी के दायरे में लाया जाए लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि हम इन कंपनियों के लूप होल को बेहतर ढंग से समझें और तब इसे विनियमित करने हेतु उचित कदम उठाए.

बिग टेक का नाम सुनकर सबसे पहले आपके दिमाग में क्या आता है? निश्चित तौर पर आप फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल, यूट्यूब, रेडिट, विकिपीडिया, अमेजन आदि के बारे में बात करेंगे, इसके अच्छे प्रभाव के बारे में बात करेंगे, इसकी सुविधाओं की बात करेंगे, इससे मिलने वाले फायदे की बात करेंगे. आप बहुत हद तक सही भी हैं लेकिन कहानी कुछ और है. स्थिति तब परिवर्तित हो जाती है जब यही कंपनियां आपके और आपके देश के विरुद्ध उतर जाती हैं. ये कंपनियां स्वयं बाज़ार का निर्माण करती हैं, उसका विस्तार करती हैं और ख़ुद ही उस बाज़ार के नियम-कायदे बनाती हैं और उसी के हिसाब से चलती हैं. यानी इसके फायदे कम और नुकसान अधिक हैं और यह दोधारी तलवार से कम नहीं हैं. कहने को तो यह कंपनिया फ्री-स्पीच की वकालत करती हैं लेकिन इनके कृत्य दोहरे मापदंड की गवाही देते हैं.

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ट्विटर पर एक्शन जरूरी है

अगर हम ट्विटर की बात करें तो इसके कर्मकांड किसी से छिपे नहीं है. आये दिन किसी न किसी मामले को लेकर यह कंपनी खबरों में बनी रहती है. इस सोशल मीडिया कंपनी पर कई बार अपने एजेंडे चलाने के आरोप भी लग चुके हैं. कुछ समय पहले ट्विटर के पुराने कर्मचारी की एक वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें उसने ट्विटर की पोल पट्टी खोलकर रख दी थी. उसने बताया था कि ट्विटर स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं करता. इस कंपनी में काम करने वाले अधिकतर लोग वामपंथी विचारधारा के हैं. प्रबंधन से लेकर आम कर्मचारी और इससे जुड़ी हुई सारी संस्थाएं वामपंथी विचारधाराओं को प्रसारित करने में अहम भूमिका अदा करती हैं.

ध्यान देने वाली बात है कि ट्विटर लोगों को अपने विचार व्यक्त करने का प्लेटफॉर्म देता है लेकिन वैसे लोगों के विचारों को ही प्राथमिकता दी जाती है, जो उनके एजेंडे में फिट बैठते हैं. और वैसे यूजर्स या अकाउंट्स जो उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठते उस पर यह कंपनी या तो शैडो बैन लगा देती है या अकाउंट ही सस्पेंड कर देती है. ट्विटर का झुकाव ‘वेस्ट लिबरलिज्म’ की ओर है यह किसी से छिपा नहीं है. अकसर यह कंपनी राइटविंग से जुड़े लोगों के अकाउंट्स को प्रभावित करती दिख जाती है. इसके अलावा फेक न्यूज और एजेंडे को बढ़ावा देने में इस कंपनी का कोई सानी नहीं है. हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं इसके पीछे हमारे पास पूरा डेटा पड़ा है.

कोरोना वैक्सीन और फेक न्यूज- जब पूरा विश्व महामारी से ग्रस्त था, हालात बद से बदतर हो चले थे, जनता में त्राहिमाम मचा था, लोग तड़प-तड़प कर मर रहे थे, ऐसी स्थिति में भी इस कंपनी ने अपने एजेंडे को ही सर्वोपरि रखा था. मिसाल के तौर पर देखें तो भारत में महामारी के दौरान वैक्सीन-विरोधी विचार रखने वाले ट्विटर यूज़र्स को काफ़ी बढ़ावा मिला था. वहीं, कुछ मौकों पर कई कम ख़तरनाक अकांउट के ट्विटर पोस्ट पर भी ठप्पा लगा दिया गया. भारत की वैक्सीन को लेकर भी जमकर भ्रामक खबरें फैलाई गईं और ट्विटर उसे बढ़ावा देता रहा. भ्रामक खबरें फैलाने वालों पर ट्विटर की ओर से स्वत: कोई एक्शन नहीं लिया गया.

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा और ट्विटर- पिछले वर्ष यानी वर्ष 2021 में दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में जमकर हिंसा देखने को मिली थी. कट्टरपंथियों ने जमकर उपद्रव मचाया था और निर्दोष हिंदुओं को निशाना बनाया था. कई जगहों पर पांडाल को क्षतिग्रस्त करने की खबरें भी सामने आई थीं. उसके बाद हिंदू संगठनों ने इस मामले को सोशल मीडिया पर उठाया. ट्विटर पर हिंसा की फोटो और वीडियो वायरल होने लगी, जिसके बाद ‘हिंदूफोबिक’ ट्विटर ने इस मामले को उठाने वाले कई अकाउंट को सस्पेंड कर दिया था. इस्कॉन की ओर से भी इस मामले को ट्विटर पर उठाया गया और ट्विटर ने इस्कॉन का अकाउंट भी उड़ा दिया था. अब आप सोच सकते हैं कि फ्री-स्पीच की वकालत करने वाली यह कंपनी अंदर से कितनी खोखली और विकृत मानसिकता वाली है.

मां काली पोस्टर विवाद- कुछ महीने पहले मां काली के विवादित पोस्टर को लेकर बवाल मचा था, जिसे लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक पेटीशन दायर की गई थी और कोर्ट ने ट्विटर से इस पोस्ट को हटाने का आदेश दिया था. लेकिन ट्विटर ने अपने बहरे कानों से इसे अनसुना कर दिया और यहां भी उसने अपने एंटी हिंदू एजेंडे को आगे रखा. हालांकि, बाद में सरकार की ओर से एक्शन लेने के बाद ट्विटर को यह पोस्ट हटाने पर मजबूर होना पड़ा था. ध्यान देने वाली बात है कि ट्विटर ने सिर्फ इंडिया के डोमेन से इस पोस्ट को हटाया, जो उसके दोहरे चरित्र को प्रदर्शित करता है. अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि ‘आत्ममुग्ध’ ट्विटर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने हेतु किस स्तर तक जा सकता है.

कई अकाउंट्स को उड़ा दिया

अब आइए राइटविंग के सिपाहियों के इन अकाउंट्स पर भी गौर करते हैं, जिन्हें ट्विटर ने जानबूझ कर सस्पेंड कर दिया क्योंकि ये उसके एजेंडे में फिट नहीं बैठ रहे थे.

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उपर्युक्त अकाउंट्स काफी बड़े अकाउंट्स थे और इनके द्वारा वामपंथियों की जमकर लंका लगाई जाती थी, कट्टरपंथियों पर तर्कसंगत सवाल उठाए जाते थे और देशविरोधियों को लपेटा जाता था. लेकिन इनके बढ़ते वर्चस्व और सकारात्मक नैरेटिव को नहीं पचा पाने वाले ट्विटर ने इनका मुंह बंद करते हुए इनके अकाउंट्स को ही सस्पेंड कर दिया. इनमें से कुछ अकाउंट्स वापस आए लेकिन अभी तक कई अकाउंट्स ट्विटर के एजेंडे की बलि चढ़ चुके हैं. इसके अलावा ट्विटर वो कंपनी है, जो स्थानीय नियम और कानूनों को भी अनदेखा कर देती है या उसे मानने से सीधे तौर पर मना कर देती है. बता दें कि वर्ष 2018 में जब हमारे ट्विटर अकाउंट tfipost.in का नाम rightlog.in हुआ करता था, तब ट्विटर ने बिना कारण बताए हमारे इस अकाउंट पर 24 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया था.

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फेसबुक भी बड़ी ‘मछली’ है!

अगर हम फेसबुक की बात करें तो इसकी हालत भी ट्विटर से कुछ ज्यादा भिन्न नहीं है. इस प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज को बढ़ावा देने, न्यूड कंटेंट को बढ़ावा देने, अपने एजेंडा को सर्वोपरि रखने, भारत विरोधी बातों को प्रमुखता से आगे लाने आदि के आरोप लगते आए हैं. यह दोमुंहे सांप की भांति है, जो हर ओर से काटना जानता है. इसके भी अपने नियम, कायदे और कानून हैं और इसे भी स्थानीय कानूनों की परवाह नहीं होती. इस कंपनी के भारत में सबसे ज्यादा यूजर्स हैं और इसके बावजूद यह भारत को ही आंख दिखाता नजर आता है. भारत में मौजूदा समय में फेसबुक के 41 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं, जबकि इससे ज्यादा लोग व्हाट्सएप इस्तेमाल करते हैं.

ज्ञात हो कि ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जब फेसबुक ने भारत विरोधियों की आवाज को बढ़ावा दिया है, हिंदू देवी देवताओं के अपमान करने वाले कंटेंट को हटाने की बजाय उसे ज्यों का त्यों रखा है. बताते चलें कि हिंदू धर्म भारत का बहुसंख्यक धर्म है परंतु यह एक सदृश्य धर्म नहीं है, जिसका एक भगवान, एक ग्रंथ और एक मंदिर हो. सामंजस्य की परंपरा सनातन है और भारत में हिंदू धर्म जीने का एक तरीका है. दार्शनिक रूप से भारत ने इस परंपरा को कायम रखा है जो संपूर्ण विश्व की एक परिवार की तरह कल्पना करती है- वसुवैध कुटुंबकम! लेकिन पश्चिमी देश और उसके ‘गुलाम’ इसे समझ नहीं पाते हैं और हमारी संस्कृति पर घातक प्रहार करने की हिमाकत करते रहते हैं. फेसबुक भी यह करने में पीछे नहीं हटता है.

ज्ञात हो कि नवंबर 2021 में जब डाटा लीक का मामला सामने आया था तब केंद्र सरकार ने फेसबुक को तलब करते हुए उससे अल्गोरिदम और अन्य व्यवस्थाओं की पूरी जानकारी मांगी थी. आपको बता दें कि लीक हुए डेटा के जरिए यह खुलासा हुआ था कि फेसबुक में अल्गोरिदम इस तरह से डिजाइन होती हैं कि यूजर्स ज्यादा से ज्यादा समय प्लेटफॉर्म पर बिताए. फिर चाहे इसके लिए उसे दिखाए जाने वाला कंटेंट ज्यादा से ज्यादा खतरनाक, भड़काऊ और हिंसात्मक ही क्यों न हो. कंपनी की अल्गोरिदम यूजर की न्यूज फीड में सिर्फ एक बार देखे गए ऐसे किसी कंटेंट को भी जबरदस्त तरह से प्रमोट करती हैं.

ध्यान देने वाली बात है कि अल्गोरिदम भले ही स्वचालित हैं लेकिन यह स्वायत्त नहीं हैं. यानी अल्गोरिदम अपने प्रोग्राम के हिसाब से तो चलती हैं लेकिन इसके निर्देश इंसानों की तरफ से ही दिए जाते हैं, जो कि इशारा करते हैं कि किस चीज पर ध्यान देना है और इससे क्या नतीजे हासिल करने हैं. इससे आप फेसबुक के पूरे खेल को समझ सकते हैं कि कैसे यह प्लेटफॉर्म किसी भी तरह के कंटेंट को अपने फायदे और एजेंडे के लिए बढ़ावा देता है. ज्ञात हो कि फेसबुक राइटविंग की आवाज दबाने वाले सबसे बड़े प्लेटफॉम्स में से एक है. जो भी कंटेंट उसके एजेंडे में फिट नहीं बैठता वह उसके रीच को रोक देता है या उस अकाउंट पर ही शैडो बैन लगा देता है. फेसबुक हेट स्पीच, फेक न्यूज और भड़काऊ सामग्री रोकने के लिए कुल जितनी राशि तय करता है, उसका 87 फीसदी अकेले अमेरिका में ही खर्च होता है. जबकि बाकी दुनिया में फेक कंटेंट को रोकने के लिए मात्र 13 फीसदी राशि का इस्तेमाल करता है. अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि अमेरिका से इतर यह कंपनी अन्य देशों को किस दृष्टि से देखती है और उन्हें लेकर इसके विचार क्या हैं.

सरकार को उठाना चाहिए कदम

कुछ ऐसी ही स्थिति इंस्टाग्राम, गूगल, यूट्यूब, रेडिट, विकिपीडिया, अमेजन, व्हाट्सएप जैसे प्लेफॉर्म्स की भी है. ये सारी अमेरिकी कंपनियां भारत में सिर्फ और सिर्फ अपनी कथित पॉलिसी के आधार पर और अपने आकाओं के इशारे पर काम करती हैं. ध्यान देने वाली बात है कि लेफ्ट लिबरलों ने इन प्लेटफॉर्म्स पर अपना एक अलग ही इकोसिस्टम तैयार कर लिया है और अपने हिसाब से चीजों को प्रदर्शित करते रहते हैं और उन्हें इन कंपनियों का पूरा समर्थन मिलता है. वे सोशल मीडिया पर कोई भी एजेंडा शुरु करते हैं और देखते ही देखते वह एक व्यापक स्वरूप ले लेता है, भले ही उस एजेंडा का आधार ही निराधार क्यों न हो. इसके बावजूद भी यह कंपनियां न तो उन्हें नियंत्रित करती है और न हीं उन पर किसी भी तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं, जो हमारे कथन को सत्य प्रमाणित करते हैं.

ऐसे में अब समय आ गया है कि भारत सरकार सख्त से सख्त कानून बनाते हुए सोशल मीडिया के परिचालन को नियम और कानून के दायरे में ले आए, इन पर शिकंजा कसे, इनकी हेकड़ी निकाले और इसका संचालन अपने हिसाब से करे. आपको बता दें कि मोदी सरकार जब यूपीआई लेकर आई तो किसी को पता नहीं था कि इसका असर इतना गहरा हो जाएगा कि भारत तो छोड़िए, पूरा विश्व ही इसके पीछे चल पड़ेगा. ऐसे में अगर मोदी सरकार इन विदेशी कंपनियों का विकल्प लेकर सामने आ जाए, जो पूर्णत: देसी हो और देश की अस्मिता को बढ़ावा दे, तो आश्चर्यचकित मत होइएगा.

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