झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो और इतना झूठ बोलो, इतना प्रोपेगेंडा फैलाओ की 1 दिन उसे सच बना दो। पर, कोई कितना भी झूठ को सच बनाने की कोशिश करें, वह निरर्थक ही साबित होगा क्योंकि एक दिन जब सच परिस्थितियों का सीना चीर कर बाहर आएगा तो झूठ की ताकत धरी की धरी रह जाएगी। ट्विटर भी एक ऐसी ही झूठ फैलाने वाली सोशल मीडिया है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे ट्विटर ने झूठ फैलाने से पहले अपनी सत्यता, निष्पक्षता और प्रामाणिकता का आडंबर बनाया और लोगों के अकाउंट वेरीफिकेशन, आपत्तिजनक ट्वीट हटाने, निजता तथा निष्पक्षता का सम्मान करने का झूठा ढोंग रचा और अंततः उसका झूठ पकड़ा गया।
एक वरिष्ठ इंजीनियर ने ट्विटर की पोल खोल दी
दरअसल, अब इस सोशल मीडिया कंपनी के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ इंजीनियर ने इसकी पोल खोलकर रख दी और कहा कि ट्विटर स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं करता। इस कंपनी में काम करने वाले ज्यादातर लोग वामपंथी विचारधारा के हैं। प्रबंधन से लेकर आम कर्मचारी और इससे जुड़ी हुई सारी संस्थाएं वामपंथी विचारधाराओं को प्रसारित करने में अहम किरदार अदा करती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी में काम करने वाले लोग इस बात से बहुत दुखी हैं। एलन मस्क 14 अरब अमेरिकी डॉलर में ट्विटर खरीद सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक हैं।
Breaking from Project Veritas
Twitter employee confirms bias at Twitter
Seems I was right
Because conservatives tolerate leftist speech and leftist won't tolerate the right, Twitter opts to censor the right as "balance"@elonmusk pic.twitter.com/zjAYwcIbol
— Tim Pool (@Timcast) May 16, 2022
अमेरिकी फार-फाइट एक्टिविस्ट ग्रुप प्रोजेक्ट वेरिटास (Project Veritas) ने एक वीडियो जारी किया जिसमें कथित तौर पर एक वरिष्ठ ट्विटर इंजीनियर सिरू मुरुगेसन को यह स्वीकार करते हुए दिखाया गया है कि कंपनी के पास एक मजबूत वामपंथी पूर्वाग्रह है और यह कि दक्षिणपंथियों को खुले तौर पर सेंसर करता है। ट्विटर स्वतंत्र भाषण पर विश्वास नहीं करता है।
और पढ़ें- आखिरकार एलन मस्क ने ट्विटर को खरीद ही लिया
स्टिंग ऑपरेशन के तहत बातचीत में मुरुगेसन यह कहते पाए गए कि “ट्विटर ऑफिस की राजनीति लेफ्ट की ओर से इतनी झुकी हुई है कि माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट पर काम करने वाले लोगों ने मौजूदा माहौल को समायोजित करने के लिए अपने मूल विचारों को बदल दिया है।”
अभी कुछ दिन पहले ही ट्विटर ने सार्वजनिक रूप से शोध निष्कर्षों को साझा किया है। ये शोध दर्शाते हैं कि इस सोशल मीडिया के एल्गोरिदम दक्षिणपंथी राजनेताओं के ट्वीट्स और दक्षिणपंथी समाचार आउटलेट्स की सामग्री की तुलना में वामपंथी विचारों को बढ़ावा देते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने सात देशों – यूके, यूएस, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और जापान में निर्वाचित अधिकारियों के ट्वीट्स की जांच की। इसने यह भी अध्ययन किया कि क्या समाचार संगठनों की राजनीतिक सामग्री को ट्विटर पर बढ़ाया गया था? पर, निष्कर्ष में यह पाया गया कि मुख्य रूप से केवल फॉक्स न्यूज, न्यूयॉर्क टाइम्स और बज़फीड जैसे अमेरिकी समाचार स्रोतों पर ही ध्यान केंद्रित किया गया था।
और पढ़ें- मस्क ने ट्विटर स्टंट के चक्कर में अपनी ही कंपनी टेस्ला को बर्बाद कर दिया
शोध में और क्या पाया गया?
शोध में पाया गया कि सात में से छह देशों में, जर्मनी के अलावा, दक्षिणपंथी राजनेताओं के ट्वीट्स को एल्गोरिदम से वामपंथियों की तुलना में अधिक प्रवर्धन मिला। वामपंथी समाचार संगठनों की तुलना में दक्षिणपंथी समाचार संगठन अधिक प्रवर्धित थे। 27-पृष्ठ के शोध दस्तावेज़ के अनुसार, ट्विटर ने जर्मनी को छोड़कर सभी देशों में वामपंथ की तुलना में “राजनीतिक दक्षिणपंथ के विचारों, पोस्ट और आलेखों को हतोत्साहित किया।
ट्विटर की मशीन लर्निंग, नैतिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही टीम के प्रमुख रुम्मन चौधरी ने प्रोटोकॉल के साथ एक साक्षात्कार में इस शोध निष्कर्ष को साझा करने के दौरान कहा। उन्होंने कहा- “हम देख सकते हैं कि यह हो रहा है। हम पूरी तरह से सुनिश्चित नहीं हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसमें से कुछ उपयोगकर्ता के आपत्तिजनक पोस्ट के कारण हो सकता है तो कुछ प्लेटफॉर्म पर लोगों की कार्रवाई के कारण पर, हमें स्पष्ट रूप से यकीन नहीं है कि यह क्या है। यह महत्वपूर्ण है इसलिए हम इस जानकारी को साझा कर रहे हैं। हमारी मेटा टीम इस पक्षपातपूर्ण कारणों की खोज के लिए इस पूरे शोध का विश्लेषण करने की योजना बना रही है। पर, इसके लिए उस विश्लेषण में संभावित रूप से परीक्षण योग्य परिकल्पना बनाना शामिल होगा कि लोग प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग कैसे करते हैं जो यह दिखाने में मदद कर सकता है कि क्या उपयोगकर्ताओं के बातचीत करने का तरीका ट्विटर और उसके पूर्वाग्रह जनित एल्गोरिथ्म का कारण बन रहा है।“
अंततः, ट्विटर ने स्वीकार किया है कि यह वामपंथी स्रोतों की सामग्री की तुलना में दक्षिणपंथी राजनेताओं और समाचार आउटलेट्स के अधिक ट्वीट्स को बढ़ाता है। इससे जनता स्वयं समझ सकती है कि ट्विटर की प्रमाणिकता कितनी है। ऐसे पूर्वाग्रहजनित सोशल मीडिया की ताकत हम आम लोगों का समर्थन और विश्वास ही है और इसी के आड़ में ऐसी संस्थाएं भारत विरोधी प्रोपगैंडा रचती हैं।