200 वर्षों से इन ब्राह्मणों ने नहीं मनाई दिवाली, बल्कि उस दिन शोक में डूब जाते हैं

कारण जानते हैं आप?

Tipu Sultan

पूरे देश में दीपावली का त्यौहार बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। दीये जलाकर घरों को दुल्हन की तरह सजाया गया। अपने आस पड़ोस में मिठाइयां बांटकर लोगों ने एक दूसरे के साथ खुशियां बांटीं। यहां तक कि विदेशों में भी दीपावली मनायी गयी लेकिन क्या आप इस बात से परिचित हैं कि भारत में एक ऐसा भी गांव है जहां दीपावली के दिन शोक मनाया जाता है। अब आप ये पढ़कर अवश्य थोड़े असहज हो गए होंगे कि आखिर भारत में वो कौन सी जगह है जहां हिंदू दीपावली का त्यौहार तो नहीं ही मनाते हैं बल्कि इस दिन शोक भी मनाते हैं। इस लेख में हम आपको इस बारे में पूरे विस्तार से बताएंगे।

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दीपावली के दिन ही क्यों होता है शोक का वातावरण?

दरअसल, कर्नाटक के मांडया जिले में मेलकोटे नामक एक गांव है जहां लोगों के घाव 200 साल पुराने हैं, यहां के वासियों के ये घाव दीपावली के दिन हरे हो जाते हैं। इस गांव के लोग अपने पूर्वजों की याद में दीपावली के दिन शोक मनाते हैं। इस गांव में लगभग 200 साल पहले एक ऐसा नरसंहार हुआ था जिसका क्रूर दृश्य आज भी यहां के लोगों के मन मस्तिष्क से निकल नहीं पाया है। कुछ इतिहासकारों के द्वारा कट्टरवादी मुस्लिम शासक टीपू सुल्तान को महान बताया गया है और उसकी महानता के गुणगान किए गए लेकिन इन्हीं इतिहासकारों ने टीपू सुल्तान से जुड़ी कई बातों को लेकर लोगों को अंधकार में रखा है। जिसमें से एक काला इतिहास मेलकोटे गांव और टीपू सुल्तान के बीच के संबंध का है और इस इतिहास को बड़ी की चतुराई से छुपा दिया गया।

कर्नाटक के मेलकोटे गांव में दीपावली के दिन टीपू सुल्तान के आदेश पर 800 ब्राह्मणों का नरसंहार किया गया था। जिसके चलते दीपावली के दिन इस गांव के लोग खुशियां नहीं मनाते बल्कि शोक में डूब जाते हैं। आज भी यहां के लोग उस नरसंहार के बारे में सोचकर ही सहम जाते हैं। बताया जाता है कि कई सालों पहले यहां ब्राह्मणों को एक साथ इकट्ठा किया गया और उन्हें मार डाला गया। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्यों कुछ दरबारी इतिहासकारों ने इतने बड़े नरसंहार के बारे में बताया ही नहीं।

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टीपू सुल्तान ने ऐसा क्यों किया?

टीपू सुल्तान एक कट्टर इस्लामिक कट्टरपंथी था जिसे इस्लाम के सामने कुछ और दिखता ही नहीं था। वो हिंदूओं का हत्यारा था, वो काफिरों को मारना चाहता था, उसने हिंदूओं के प्रति अपनी घृणा के कारण उनकी हत्या की, वो हिंदूओं का धर्म परिवर्तन कराना चाहता था। जिन लोगों की टीपू सुल्तान ने हत्या की उनमें बच्चे, महिलाएं और बूढ़े भी शामिल थे। आप इसी से आंक सकते हैं कि टीपू सुल्तान कितना क्रूर था। मेलकोटे गांव के लोगों को टीपू सुल्तान के नाम से भी घृणा आती है, आए भी क्यों न क्योंकि टीपू सुल्तान ने उनके अपनों के साथ कुछ ऐसा किया था जिसे पीढ़ियां याद करके और जिसके बारे में सोचकर ही कांप जाती हैं।

800 घरों में अंधकार सोचिए कि जिस दिन पूरा भारत जगमगा रहा होता है, उसी दिन टीपू सुल्तान ने लगभग 800 घरों में अंधकार भर दिया। इसी टीपू सुल्तान को कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों ने देशभक्त के रूप में प्रस्तुत किया है। आप सोचिए कि टीपू सुल्तान को महान बताने वाले लोग किस मानसिकता के हैं जिन्होंने एक दरिंदे को महान बना दिया। सोचिए कि कुछ इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों में टीपू की जो कहानी बतायी है उसमें कितनी सच्चाई होगी। इतिहासकारों ने उसे सर्वधर्म समभाव की सोच रखने वाले शासक के रूप में दिखाने का प्रयास किया लेकिन सत्य तो कुछ और ही है। इसी घटना को देख लीजिए, कितने भारतीयों को इस बारे में पता है, बहुत कम या किंचिंत किसी को नहीं। ऐसे में तनिक अनुमान लगाइए कि इतिहासकारों के द्वारा किस स्तर पर एक क्रूर व्यक्ति का महिमामंडन किया गया है।

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टीपू सुल्तान और अन्य मुगल शासकों ने हिंदूओं के साथ जितनी क्रूरता की है उसे छुपाने के लिए कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी और इतिहासकारों ने बहुत मेहनत की है। इन इस्लामी आक्रांताओं और क्रूर शासकों को बढ़ा चढ़ाकर पेश करते आए हैं। इन इस्लामी आक्रांताओं ने हमारे धार्मिक प्रतीकों को भी ध्वस्त किया और हिंदूओं के रक्त बहाए।

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