क्यों जापानी एनिमेटेड फिल्म ‘रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ सभी को प्रिय है?

'आदिपुरुष' के मेकर्स को इससे कुछ सीखना चाहिए था!

रामायण- द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम

लगभग 20 वर्ष पूर्व कार्टून नेटवर्क पर दीपावली के शुभ अवसर पर एक फिल्म आयी थीं। यह तो वैसे उस वर्ष से भी 9 साल पूर्व ही प्रदर्शित होने वाली थी, पर किन्हीं कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पाया। यूं समझ लीजिए कि कूप मंडूक अधिक थे हमारे देश में। परंतु सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। सो आ गई वो कृति हम सबके समक्ष ‘रामायण- द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ (Ramayana- The Legend of Prince Ram) के नाम से और जो प्रभुत्व चंद्रमौली चोपड़ा यानि रामानंद सागर के बहुचर्चित ‘रामायण’ ने स्थापित किया था उसको भयानक टक्कर दी इस फिल्म ने।

अब जब ओम राउत के हाल ही में में प्रदर्शित ‘आदिपुरुष’ के टीज़र से लोग इतनी बुरी तरह भड़के हुए हैं, तो ऐसे में इस चलचित्र का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। यह फिल्म एक संयुक्त प्रोडक्शन थी, 1992 में भारत और जापान के कूटनीतिक संबंधों के 40 वर्षों के पूरे होने के उपलक्ष्य में। उस समय एनिमे फॉर्मेट जापान में काफी चर्चित था और युगो साको इसके माध्यम से विश्व के सबसे प्रभावशाली महाकाव्यों में से एक को भव्य चित्रण देना चाहते थे।

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भारत और जापान ने मिलकर फिल्म को बनाया

सन् 1983 में जापानी फिल्ममेकर यूगो साको (Yugo Sako) पहली बार भारत आए। यहां उन्हें रामायण की कहानी के बारे में पता चला। उन्हें कहानी इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस पर और रिसर्च करनी शुरू कर दी। उन्होंने जापानी में रामायण के 10 अलग-अलग वर्जन तक पढ़ डालें। तभी उन्हें इस पर फिल्म बनाने की इच्छा हुई। वह इस पर एक एनिमेशन फिल्म बनाना चाहते थे, जिस पर 1990 में फिल्म पर काम शुरू हुआ। 450 एक्टर रामायण- द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम फिल्म के लिए चुने गए। इस फिल्म को बनाने में भारतीय कलाकारों और टेक्नीशियनों का भी अहम योगदान रहा, परंतु इसे विरोध भी झेलने पड़े।

इंडियन एक्सप्रेस के एक भ्रामक खबर के कारण यह फिल्म कभी सिनेमाघरों में तब प्रदर्शित नहीं हो पाई। फिल्म के विकिपीडिया के अनुसार इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि जापानी फिल्म मेकर यूगो साको एक नई तरह की रामायण बना रहे हैं। इस हेडलाइन को लेकर विश्व हिंदू परिषद ने काफी विरोध किया। दिल्ली स्थित जापानी एबेंसी को इसके विरोध में पत्र भी भेजा गया। काफी मुश्किल से यह गलतफहमी दूर हुई, लेकिन ‘रामायण- द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ एनिमेशन फिल्म को भारत में रिलीज और प्रसारित करने को लेकर सहमति नहीं बन पाई। बाद में फिल्म के प्रोडक्शन का पूरा काम जापान में हुआ।

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अमरीश पुरी ने रावण के रूप में आवाज दी

आपको पता है कि इस फिल्म के माध्यम से वो कार्य पूर्ण हुआ, जो रामानंद सागर के रामायण में नहीं हुआ था? कहते हैं कि अरविंद त्रिवेदी रामानंद सागर के रामायण में रावण के लिए प्रथम विकल्प नहीं थे, वे बहुचर्चित अभिनेता एवं खल चरित्रों के लिए विश्वभर में सुप्रसिद्ध अमरीश पुरी को रावण के किरदार के लिए लेना चाहते थे। परंतु अमरीश पुरी उन्हीं दिनों ‘मिस्टर इंडिया’ समेत कई महत्वपूर्ण फिल्मों की शूटिंग कर रहे थे और वे चाहकर भी समय नहीं दे पाए। परंतु इस बार वे मना नहीं किए और संयोग भी देखिए। इस बार भी श्री रामचन्द्र कोई और नहीं वहीं अरुण गोविल थे, जिन्होंने रामानंद सागर जी के रामायण को आज विश्वभर में अमर कर दिया है। उन्होंने ‘रामायण- द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ फिल्म के लिए श्री राम के किरदार को अपनी आवाज दी थीं।

वैसे क्या आपको पता है कि ‘रामायण- द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम” फिल्म के अंग्रेज़ी संस्करण के सूत्रधार जेम्स अर्ल जोन्स थे, जिन्होंने द लायन किंग में मुफासा की आवाज दी। क्या आपको ये ज्ञात है कि ब्रेकिंग बैड में अपने अभिनय से प्रभाव डालने वाले ब्रायन क्रैन्स्टन, जो वॉल्टर व्हाइट के रोल के लिए विश्वप्रसिद्ध हैं, उन्होंने श्रीराम के अंग्रेज़ी डब के लिए अपनी आवाज दी थी? राम सेतु पर आधारित यह गीत इस बात का परिचायक है कि इस चलचित्र का विश्वास और इसका उद्देश्य कितना नेक और कितना स्पष्ट था-

बात जब श्री रघुवर की वानर सेना की हो और इसके अन्य गीतों की बात न हो, तो फिर क्या बात हो? यह फिल्म ऐसे गीतों से भरी थी, जिसे वनराज भाटिया ने सिर्फ संगीत नहीं अमृत रस दिया था। आज भी ‘जननी मैं रामदूत हनुमान’ यदि आप सुन लें तो विश्वास मानिए आपके नेत्रों से स्वत: ही अश्रु धारा बह निकलेगी और ऊपर से उदित नारायण के स्वर तो।

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सत्य कहें तो वाल्मीकि रामायण को सबसे अधिक और सबसे सटीक अगर किसी ने आत्मसात किया तो इसने और अगर कुछ कूप मंडूक न होते, तो ये घर घर में बच्चे बच्चे के मन मस्तिष्क में बैठ गया होता। परंतु आज भी युगो साको की रामायण का अपना प्रभाव, जिसे मिटाए नहीं मिटाया जा सकता!

जय श्री राम!

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