1969 में भारतीय सिनेमा में क्रांति आई थी, तारीख थी 27 सितंबर 1969, इस दिन एक ऐसी फिल्म प्रदर्शित हुई जिसके चलने की आशा कम ही लोगों को थी। होती भी कैसे, हीरो भी नया, निर्देशक भी बहुत उत्सुक नहीं और परिस्थितियां भी विपरीत। संक्षेप में बोलें तो हालात काफी बुरे थे। परंतु एक अभिनेता ने तो मानो तय कर लिया था, “ए न चोलबे!” इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे फिल्म आराधना, जो कभी मूल निर्देशक की साइड प्रोजेक्ट थी, वो एकाएक किशोर कुमार की कृपा से बॉलीवुड के प्रतिबिंबों में से एक बन गई।
समय बड़ा ही रोचक था। भारतीय सिनेमा एक बड़े ही स्पृह पटल पर था। एक ओर तमिल और तेलुगु सिनेमा में MGR और NTR जैसे सुपरस्टार उभर रहे थे, जो धीरे धीरे राजनीति में भी छाने वाले थे तो दूसरी ओर बॉलीवुड पर राज कपूर और यूसुफ खान यानी दिलीप कुमार का वर्चस्व ढ़ीला पड़ रहा था। अब बॉलीवुड आज के कचरा पेटी जैसा नहीं था, यहां प्रतिस्पर्धा होती थी और खूब होती थी। वर्चस्व के लिए कई दावेदार थे, जिनमें उस समय देव आनंद अग्रणी थे और उनके साथ शम्मी कपूर, शशि कपूर, राजेन्द्र कुमार, राज कुमार जैसे चर्चित सितारे भी काफी टक्कर देते थे।
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परंतु ये कथा इस प्रतिस्पर्धा की नहीं है, ये कथा है उस इतिहास के रचना की, जिसपर कम ही लोगों का ध्यान गया है। फिल्म आराधना मूल रूप से राजेश खन्ना के लिए नहीं रची गई थी, इसमें शम्मी कपूर कास्ट होने वाले थे परंतु गीता बाली के असामयिक निधन से उन्हें काफी गहरा झटका दिया, जिससे वो उबर ही नहीं पाए और शक्ति सामंता के साथ उनका वो प्रोजेक्ट अधूरा ही रह गया।
परंतु समस्या यहीं पर समाप्त नहीं हुई। जिस लेखक के साथ वो अपनी स्क्रिप्ट की रचना कर रहे थे, उन्हें पता चला कि वो कपूर परिवार के साथ एक और फिल्म बना रहे थे- एक श्रीमान एक श्रीमती, जिसकी एन्डिंग बिल्कुल शत प्रतिशत सेम थी। बात लगभग फिल्म को रद्द करने पर बन आई थी परंतु शक्ति सामंता के लिए उनके संकटमोचक बने गुलशन नंदा और मधुसूदन कलेलकर। इन्होंने न केवल शक्ति को एक बेहतर एन्डिंग का सुझाव दिया अपितु काफी महत्वपूर्ण बदलाव भी कराया।
परंतु वह पर्याप्त नहीं था। सबसे महत्वपूर्ण था कास्टिंग। यहां पर शक्ति सामंता ने चुना जतिन खन्ना नामक एक युवा अभिनेता को, जो आखिरी खत, बाहरों के सपने जैसे फ्लॉप दे चुके थे। किसी को विश्वास नहीं था कि यह व्यक्ति टिकेगा भी, स्क्रीन पर छा जाना तो दूर की बात है परंतु एक व्यक्ति को पूर्ण विश्वास था कि यह चलेगा और यह कोई और नहीं, अपने अतरंगी सुर सम्राट किशोर कुमार थे, जो मानो इस मोड में ही आ गए थे, कोई नहीं, बनाएगा मैं इसे हीरो और उसे बनाया भी। उसके बाद बनी फिल्म आराधना, जो उस समय की बड़ी हिट साबित हुई और इस फिल्म ने अपना अलग ही कीर्तिमान स्थापित कर दिया। आज भी इस फिल्म को बॉलीवुड की सबसे बेहतर फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है।
और ये जतिन खन्ना वही राजेश खन्ना थे, जो आगे चलकर बॉलीवुड के ‘काका’ बने और जिन्होंने एक समय एक के बाद एक कर लगातार 15 बॉक्स ऑफिस हिट दिए, जो आज भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है। कथा यहीं से प्रारंभ हुई क्योंकि चालक किशोर कुमार ही थे। किशोर कुमार न होते तो फिल्म आराधना लॉन्चपैड से टेकऑफ करने को भी तैयार ना थी। परंतु यह किशोर कुमार के सुर और उनके अतरंगी स्वभाव का ही परिणाम था कि आज आराधना सिर्फ एक ब्लॉकबस्टर नहीं, बॉलीवुड का एक अद्वितीय अध्याय भी है।
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