गुजरात, हिमाचल में भाजपा की जीत के लिए पूरी ताकत लगा रही है कांग्रेस

दुनिया में सभी विपक्षी पार्टियां स्वयं जीतने की कोशिश करती हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी इस बार इस पुरानी परंपरा को बदल रही है। कांग्रेस पार्टी तय कर रही है कि किसी भी कीमत पर दोनों राज्यों में भाजपा ही चुनाव जीते।

गुजरात और हिमाचल चुनाव

source tfipost.in

गुजरात और हिमाचल प्रदेश दोनों ही राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल अपने चरम पर है और सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी शक्ति के साथ चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस या यूं कहें कि अपनी समाप्ति की ओर अग्रसर कांग्रेस गुजरात और हिमाचल दोनों ही राज्यों में शिथिल अवस्था में दिख रही है। कांग्रेस के इस प्रकार चुनाव लड़ने के कारण बॉल सीधी भाजपा के पाले में जाती हुई दिख रही है। इस लेख में हम गुजरात और हिमाचल में हो रहे विधानसभा चुनाव का विश्लेषण करेंगे और बताएंगे कि कैसे कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों में चुनाव से पहले ही हार स्वीकार कर ली है।

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हिमाचल का चुनावी विश्लेषण

हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर यानी कल वोटिंग होने वाली है और 8 दिसंबर को चुनाव के परिणाम घोषित किए जाएंगे। ऐसे में प्रश्न यह है कि आखिरकार हिमाचल में सरकार कौन बना रहा है क्योंकि राजस्थान की तरह हिमाचल में भी हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा रही है। लेकिन इस बार यह परंपरा टूटती हुई दिख रही है क्योंकि वहां पर कांग्रेस के ठंडे चुनाव प्रचार के कारण भाजपा को कोई भी टक्कर देने वाला नहीं है।

हिमाचल की सीटों के विभाजन को देखें तो राज्य में कुल 68 सीटें हैं जिसमें से 48 विधानसभा सीटें सामान्य वर्ग की हैं, जबकि 17 सीटें अनुसूचित जाति, 3 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं। इसके अलावा ABP द्वारा हिमाचल के चुनाव को लेकर जमीनी स्तर से जानकारी प्राप्त कर एक ओपीनियन पोल भी जारी किया गया था, जिसके अनुसार 38 प्रतिशत लोगों ने भाजपा के पांच सालों के कार्यकाल को ‘अच्छा’ कहा है, 29 फीसदी लोगों ने औसत बताया तो वहीं 33 फीसदी ने खराब माना है। यानी कुल मिलाकर 71 प्रतिशत लोग भाजपा के कामकाज से संतुष्ट हैं।

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प्रियंका का नेतृत्व है भाजपा की जीत का कारण

हिमाचल में कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत का सबसे पहला कारण जो दिखायी देता है वो है कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा। ऐसा इस कारण क्योंकि हिमाचल के चुनाव की घोषणा होने के बाद प्रियंका गांधी को वहां का चुनाव प्रभारी बनाया गया, लेकिन दीदी तो यूपी की तरह या उससे भी ज्यादा शिथिल हो चुकी हैं। वो खुद ही कांग्रेस की नैया ढुबाने में लगी हुई हैं। एक भाजपा है जो बड़े ही दमखम के साथ चुनाव लड़ रही है और दूसरी ओर प्रियंका हैं जिन्होंने जीतने के लिए नहीं बल्कि हारने के लिए चुनाव प्रभार संभाला है।

दूसरा बड़ा कारण हैं राहुल गांधी जो वैस तो पूरे देश में अपनी छवि को सुधारने किे लिए भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर उन्होंने हिमाचल और गुजरात चुनाव को भाग्य भरोसे छोड़ दिया है। बाकी उनका पहले के चुनावों में कैसा प्रदर्शन रहा यह तो सबने देखा ही है।

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गुजरात का चुनावी विश्लेषण

गुजरात चुनाव की बात करें तो यहां पर दो चरणों में चुनाव होने वाले हैं। जिसमें पहले चरण का मतदान एक दिसबंर और दूसरे चरण का पांच दिसंबर को होने वाला है। इस चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी दावेदारी कर रही है। लेकिन यहां भी स्पष्ट रूप से भाजपा जीतती हुई दिख रही है क्योंकि हिमाचल की तरह गुजरात में भी कांग्रेस का चुनावी प्रचार धरातल पर दिख ही नहीं रहा है। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो कुल 182 सीटों में से भाजपा को 99 और कांग्रेस को 77 सीटें प्राप्त हुई थीं।

भाजपा के चुनाव प्रचार से कांग्रेस के चुनाव प्रचार की तुलना की जाए तो कांग्रेस भाजपा के सामने कहीं भी नहीं ठहरती है। वहीं दूसरी ओर लंबी-लंबी हांकने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की बात की जाए तो वो भी इस चुनाव में जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन रेस में वे तीसरे नंबर पर हैं और कांग्रेस के वोटों में ही सेंध लगाएंगे, इससे अधिक उनकी आप कुछ नहीं कर सकती है।

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‘कांग्रेस छोड़ो यात्रा’

गुजरात में भाजपा के जीतने का कारण कांग्रेस विधायकों का भाजपा में शामिल होना भी है। एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा‘ कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर गुजरात के विधायक ‘कांग्रेस छोड़ो यात्रा’ करने में लगे हुए हैं। अभी हाल ही में मोहनसिंह राठवा कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए जो 11 बार यानी करीब 50 साल से ज्यादा समय से विधायक हैं। यही नहीं पिछले पांच सालों में कांग्रेस के 19 से अधिक विधायक कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी विश्लेषण की बात की जाए तो इसका सीधा सा निष्कर्ष यह है कि इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस ने स्वयं ही हार स्वीकार कर ली है। इसी सोच के साथ वह चुनाव में सक्रिय नहीं दिख रही है।

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