जो पहले से ही बर्बाद हो भला उसे कौन बर्बाद कर सकता है। हाल के समय में यह पंक्ति कांग्रेस पार्टी के लिए सटीक जान पड़ती है। कौन नहीं जानता है कि कांग्रेस पार्टी मृत्यु शैय्या पर विराजमान है। वहीं कांग्रेस के कुलदीपक राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस पार्टी में उजाला करने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस में उजाला कम और अंधेरा अधिक छा रहा है। अपने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने ऐसे कई लोगों से मुलाकात की है जो या तो देशविरोधी हैं या फिर सनातन विरोधी। जैसे-जैसे यह यात्रा बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे राहुल गांधी का संतुलन भी बिगड़ने लगा है।
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कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति
अगर बात करें कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति की तो यहां यह पार्टी पूरी तरह से तबाह हो चुकी है। अगर सही अर्थों में देखें तो कर्नाटक में कांग्रेस के बर्बाद होने के पीछे उनकी ही पार्टी के नेताओं के बीच व्याप्त मतभेद है। डी के शिवकुमार इस समय कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष है और हाल ही में नेताओं ने भारत जोड़ो यात्रा में कितना योगदान दिया है इसकी उन्होंने रिपोर्ट मांगी है। दरअसल, शिवकुमार कांग्रेस पार्टी के नेताओं के एक वर्ग से काफी ज्यादा नाराज हैं जिन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व वाले पैदल मार्च में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया है। यह तो साफ दिख रहा है कि कांग्रेस के ही नेताओं से उनकी बन नहीं रही है।
शिवकुमार ने एक संवाददाता सम्मेलन में संवाददाताओं से ये कहा है है कि “मुझे इस बात की रिपोर्ट मिलेगी कि राहुल गांधी के नेतृत्व वाले पैदल मार्च में किसने कितनी सक्रियता से हिस्सा लिया है, कर्नाटक चरण रविवार को ही संपन्न हुआ है। मुझे इस बात की रिपोर्ट मिलेगी कि किसने कितना कार्य किया है।”
स्थितियों पर ध्यान दिया जाए तो समझा जा सकता है कि कांग्रेस के एक ऐसे तारणहार जो भारतीय राजनीति में रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स के जनक कहे जाने वाले डीके शिवकुमार कांग्रेस से अलग हो सकते हैं, अब आप कहेंगे ऐसा कैसे हो सकता है, डीके तो घोर कांग्रेसी है। तो उनके अलग होने का कारण भी वही होगा जो अब तक के असंख्य नेताओं का रहा है, जहां उन्हें पद तो दे दिया जाता है पर उनके हाथों में शक्तियां नहीं होती। कुछ ऐसा ही डीके शिवकुमार के साथ भी हो रहा है। ऐसे में जल्द ही डीके शिवकुमार अपनी एक अलग पार्टी ही बना लें, इस बात से मना नहीं किया जा सकता है।
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2 करोड़ रुपये का खर्च
सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक में 22 दिन चलने वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर प्रतिदिन 2 करोड़ रुपये का खर्च आया। एक सूत्र की माने तो, “कुछ जगहों पर पार्टी नेताओं ने लोगों को जुटाने का अपना कार्य पूरा नहीं किया,” शिवकुमार ने इस पर कहा कि कर्नाटक में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कैसे हुई, यह दिखाने के लिए कांग्रेस हर एक जिले में एक फोटो प्रदर्शनी आयोजित करने वाली है। शिवकुमार राज्य में इस पूरी यात्रा के प्रभाव का ठीक तरह से अध्ययन करने के लिए अपने कार्यकारी अध्यक्ष आर ध्रुवनारायण के नेतृत्व में एक समिति का भी गठन करने वाले है। उन्होंने कहा, “हम अपने घोषणापत्र में उन विचारों को शामिल करना चाह रहे है, जो यात्रा के दौरान राहुल गांधी से मिलने वाले नागरिकों के द्वारा व्यक्त किए गए थे।”
कर्नाटक में साल 2019 तक कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी और एच डी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री थे, उसके बाद सरकार अल्पमत में आई और पुनः भाजपा राज्य की सत्ता में आ गई। उस समय कांग्रेस के सामने सरकार जाने के बाद पार्टी स्तर पर स्वयं को मजबूत रखने की चुनौती थी। मज़बूत न रहती तो विपक्ष की भूमिका निभाने में असफल हो जाती और कांग्रेस दो दिन की मेहमान बनकर रह जाती। यही कारण था कि कांग्रेस आलाकमान ने अपने पुराने विश्वासपात्र डीके शिवकुमार को कांग्रेस की कर्नाटक इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया और यह तय किया कि भाजपा को घेरने के लिए डीके शिवकुमार के अतिरिक्त और कोई विकल्प था ही नहीं। लेकिन डीके शिवकुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के ही नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बनकर खड़े हो गए।
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डीके शिवकुमार एक बड़ा चेहरा हैं
सिद्धारमैया के बाद कर्नाटक कांग्रेस में एक बड़े चेहरे के रूप में डीके शिवकुमार का नाम लिया जाता है। वे दक्षिणी कर्नाटक में पार्टी का खास चेहरा हैं। दोनों कांग्रेस पार्टी में होने के बाद भी हमेशा ही एक दूसरे से दूरी बनाए हुए ही दिखाई देते हैं। हमेशा दोनों के बयान एक दूसरे से अलग ही होते हैं। सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शिवकुमार अब वहां के मुख्यमंत्री बनने के लिए और शक्ति प्राप्ति के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।
चूंकि शिवकुमार घोर कांग्रेसी हैं इसीलिए वो कभी भी बीजेपी के साथ तो नहीं आएंगे और अगर इसमें वोक्कालिगा समुदाय की बात करें तो वो पहले से ही जेडीएस है जोकि कुमारस्वामी की है। अगर एक बार को ये मान लिया जाए तो शिवकुमार वोक्कालिगा पार्टी में कार्य करते हैं तो उनको एक सेकेंडरी नेता की तरह काम करना होगा जिसका अर्थ है कि शिवकुमार वहां भी नहीं जाएंगे। अब तो न तो शिवकुमार बीजेपी में जाएंगे न ही जेडीएस में और जैसा कि सभी को दिखाई दे रहा है कि शिवकुमार का कांग्रेस से भी मोह भंग हो चुका है।
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अब ऐसी स्थिति में यह अनुमान लगाना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि शिवकुमार अपनी स्वयं की एक पार्टी बना सकते हैं। शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं जहां इनका अच्छा खासा दबदबा है। अब शिवकुमार अपनी पार्टी बनाते हैं या फिर नहीं यह समय ही बताएगा।
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